🌸 आश्रवों से बचें तो आत्मा का उन्नयन संभव : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-भाण्डुप प्रवास के दूसरे दिन आचार्यश्री ने हिंसा, चोरी व झूठ रूपी आश्रवों से बचने की दी प्रेरणा
-हर्षित भाण्डुपवासियों ने अपने आराध्य की अभिवंदना में दी भावनाओं को अभिव्यक्ति
13.01.2024, शनिवार, भाण्डुप (वेस्ट), मुम्बई (महाराष्ट्र) :
भाण्डुप प्रवास के दूसरे दिन जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अणुव्रत यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शनिवार को प्रमोद महाजन ग्राउण्ड में बने वीतराग समवसरण में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि पांच आश्रवों की बात बताई गई है। जैन तत्त्व विद्या में जो नव तत्त्व बताए गए हैं, उनमें एक है आश्रव। आश्रव के पांच प्रकार होते हैं। हमारी आत्मा संसार में परिभ्रमण करती है। उसका कारण आश्रव है। जन्म-मरण की परंपरा का हेतु आश्रव होता है। जीव में आश्रव न रहे तो मुक्ति उसी जन्म के बाद प्राप्त हो जाती है।
साधुओं के जीवन में आश्रवों का बहुत त्याग होता है। प्रमाद, कषाय भी रहता है। साधुओं का जीवन पंच महाव्रतों वाला होता है। गृहस्थ आश्रवों से कैसे बचाव कर सके तो इसके लिए व्यवहार रूप में देखा जाए कि हिंसा, झूठ और चोरी तीनों ही आश्रव हैं। आदमी यह देखे कि आदमी हिंसा से कितना विरत हो सकता है, पूर्णतया न भी हो तो हिंसा का संयम हो सके, उसे करने का प्रयास हो। झूठ से भी बचने का जितना संयम हो सके और चोरी का भी जीवन में त्याग हो कुछ अंशों में गृहस्थ जीवन में भी आश्रवों का निरोध किया जा सकता है।
गृहस्थ जीवन में हिंसा, चोरी और झूठ का संयम या विरमण होना ही चाहिए। यह बात जैन हो अथवा अजैन हो, समस्त मानवों के लिए यह लाभदायी होता है। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन चलाया तो उससे भी कितने-कितने अजैन लोग भी संपृक्त हुए। दुनिया का कोई भी धर्म भी हो, हिंसा का त्याग व झूठ और चोरी से बचने की बात करते हैं। आदमी अपने जीवन में पूर्णतया हिंसा से नहीं बच सकता, किन्तु किसी को शिकार के रूप में न मारना, संकल्पपूर्वक प्राणियों की हिंसा न करना, संकल्प होना कि नॉनवेज का सेवन नहीं करने का भाव हो तो हिंसा से कितना बचाव हो सकता है। आदमी के जीवन में संकल्प हो कि मैं किसी का सामान चोरी नहीं करूंगा। किसी दूसरे के पैसे को चोरी के रूप में नहीं रखना आदि। आदमी यह भी प्रयास करे कि वह किसी पर झूठा आरोप न लगाए। अपनी जुबान अथवा लेखनी से किसी पर झूठ आरोप न लगाने का प्रयास हो।
आदमी आश्रवों से जितना बच सकेगा, आत्मा का उतना उन्नयन हो सकता है। मोक्ष की प्राप्ति न हो, किन्तु उस दिशा में गति तो हो ही सकती है। मानव जीवन में मोक्ष की आराधना करने का प्रयास करना चाहिए। मोक्ष की साधना ही मानव जीवन की बड़ी सार्थकता होती है। इसलिए उस दिशा में गति करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी परिवार, समाज में रहते हुए अनासक्त रहने का प्रयास हो और जितना संभव हो, धर्म-ध्यान में समय लगाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने तेरापंथी श्रावक-श्राविकाओं को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जीवनशैली में सामायिक एक अंग बन जाए। जितना संभव हो सके प्रतिदिन सुबह-सुबह एक सामायिक हो जाए तो जीवन कितना कल्याण हो सकता है। परिवार, समाज, व्यापार आदि का अनेक काम तो निरंतर होता रहता है, किन्तु उसमें से भी कुछ समय सामायिक में लगाने का प्रयास करना चाहिए। सुबह-सुबह नाश्ते से पहले एक सामायिक का क्रम बन जाए तो धर्म का संचय हो सकता है। इससे प्राप्त मानव जीवन का लाभ उठाया जा सकता है। इसके अलावा थोड़ा ध्यान देकर हिंसा, चोरी व झूठ से बचने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार मानव जीवन को जितना सार्थक बना सकें, वह कल्याणकारी हो सकता है।
भाण्डुप तेरापंथ ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री सुरेश कोठारी और तेरापंथ किशोर मण्डल की ओर से श्री भाविन कोठारी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि ज्ञानशाला के द्वारा अणुव्रत आचार संहिता के नियमों पर बाल सुलभ प्रस्तुतिकरण किया गया है। अणुव्रत अमृत महोत्सव वर्ष व अणुव्रत यात्रा भी चल रही है। मानों अणुव्रत यात्रा के उपक्रम बच्चों द्वारा प्रस्तुत की गई हैं। बड़े होने पर भी इसका प्रभाव बच्चों के जीवन में हो, धार्मिक ज्ञान भी बढ़ता रहे। ज्ञानशाला का धार्मिक आध्यात्मिक विकास होता रहे। मुम्बई प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मदनलाल तातेड़ ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल ने गीत का संगान किया। भाण्डुप के पचास लोगों द्वारा महाश्रमण अष्टकम् को प्रस्तुति दी गई। मूर्तिपूजक समाज की ओर से श्री भीमराज मादरेचा ने गीत का संगान किया।
बिजेपी की पूर्व नगरसेविका श्रीमती चारू शीला ने कहा कि मैं भाण्डुप की जनता की ओर से आपका स्वागत करती हूं। आपने भाण्डुप में पधारकर हमारी धरती को पावन बना दिया। ऐसी कृपा प्रदान करने के लिए मैं आपका बहुत-बहुत धन्यवाद देती हूं।