🌸 महातपस्वी महाश्रमण का मुम्बई महानगर में महाश्रम 🌸
-जन-जन के कल्याण को निर्धारित विहार से दुगुने से भी अधिक की दूरी तय कर रहे शांतिदूत
-लोगों पर कृपा बरसाते हुए आचार्यश्री दोपहर एक बजे पहुंचे भाण्डुप के निर्धारित प्रवास स्थल
-अकेलेपन का चिंतन कर पापों से बचे मानव : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
12.01.2024, शुक्रवार, भाण्डुप (वेस्ट), मुम्बई (महाराष्ट्र) : मुम्बई महानगर के उपनगरों में जन-जन के कल्याण के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी महाश्रम कर रहे हैं। एक उपनगर से दूसरे उपनगर की निर्धारित दूरी कम होने के बावजूद भी आचार्यश्री जनभावनाओं को फलित करने के लिए दुगुने से भी अधिक अतिरिक्त दूरी तय कर रहे हैं। शुक्रवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पवई से भाण्डुप के लिए मंगल प्रस्थान किया। पवई से भाण्डुप स्थित प्रवास स्थल की निर्धारित दूरी लगभग साढ़े चार किलोमीटर की ही थी, किन्तु दशकों से प्यासे श्रद्धालु भक्तों की प्यास को बुझाने के लिए अपने आशीष की वृष्टि करते हुए आचार्यश्री ने कई किलोमीटर का अतिरिक्त विहार स्वीकार किया। इस दौरान आचार्यश्री ने साकीनाका, मरोल, एल एण्ड टी, अंधेरी ईस्ट आदि क्षेत्रों को भी अपनी चरणरज से पावन किया। अपने आराध्य के दर्शनों को लालायित लोग मार्ग में यत्र-तत्र खड़े थे। जैसे ही आचार्यश्री के करकमलों से तथा मुखारविंद से आशीष की वृष्टि होती, श्रद्धालु अपनी घंटों की प्रतीक्षा को भूलकर निहाल हो जाते। इस प्रकार जनकल्याण करते हुए आचार्यश्री दोपहर लगभग एक बजे भाण्डुप वेस्ट में स्थित पेट्रा टॉवर्स में पधारे। जहां आचार्यश्री का द्विदिवसीय प्रवास निर्धारित है। अल्प समय के उपरान्त ही आचार्यश्री पुनः प्रवास स्थल से प्रमोद महाजन ग्राउण्ड में बने प्रवचन पण्डाल में जनता को मंगल देशना देने के लिए पधार गए। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी का यह महाश्रम जन-जन को आस्था से अभिभूत बनाने वाला था। प्रमोद महाजन ग्राउण्ड में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनमेदिनी को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी दुनिया मंे अकेला जन्म लेता है और अकेला ही जीवन जीकर एक दिन चला जाता है। अकेला ही कर्मों का संचय करता है और अकेले ही उसका फल भी भोगता है। मैं अकेला हूं, यह निश्चय नय की बात है। इस दुनिया में परस्पर सहयोग की बात भी होती है। आदमी परिवार के साथ रहता है, समाज के साथ रहता है। इसमें आदमी एक-दूसरे का सहयोग करता है भी और एक-दूसरे से सहयोग लेता भी है। तत्त्वार्थसूत्र में कहा गया है कि ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्।’ सभी जीवों के द्वारा एक-दूसरे का सहयोग मिलता है। परस्पर सहयोग से ही जीवन चलता है। जीवन में कितनों का सहयोग मिलता है। एक-दूसरे के सहयोग से ही जीवन चलता है। किसान खेतों में अन्न को उपजाता है। कोई व्यापारी उसे खरीदकर बाजार लाया होगा। कोई उससे खरीदकर घर लाया होगा। कोई उसे पकाया होगा, कोई परोसा होगा, तब जाकर किसी की थाली में खाने को मिलता है। आदमी वस्त्र पहनता है, उसमें भी कितने हाथों का सहयोग हुआ होगा, तब कहीं जाकर वस्त्र का निर्माण होता है। जीवन में मां-बाप, भाई-बहन, गुरु, दोस्त-मित्र, नाते-रिश्तेदार आदि-आदि कितने-कितने लोगों का सहयोग होता है। व्यवहार के जगत में भले आदमी कितनों के साथ है, लेकिन निश्चय नय में जहां जन्म, मृत्यु और अपनी करनी की बात आती है, वहां आदमी अकेला ही होता है। आदमी जैसा कर्म करता है, उसका वैसा ही फल उसे स्वयं ही भोगना होता है। आदमी की मृत्यु हो जाती है तो भला उसके साथ कौन जाता है। श्मशान तक भले कोई चला जाए, लेकिन साथ कौन जाता है। यहां तक की आदमी का यह स्थूल शरीर भी साथ नहीं जाता। अपने कर्म स्वयं आदमी को भोगना पड़ता है। व्यवहार की बात अलग है, किन्तु निश्चय बहुत बड़ी बात होती है। व्यवहार में कभी अपने विरोधी भी बन सकते हैं। निश्चय में आदमी की आत्मा ही स्वयं की होती है। आदमी का धर्म, कर्म, साधना ही उसकी होती है, जो उसके वर्तमान जीवन के साथ-साथ आगे सुगति अथवा दुर्गति में साथ देती है। इसलिए आदमी को पाप कर्मों के बन्धन से बचने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने भाण्डुपवासियों को मंगल आशीर्वाद भी प्रदान किया। भाण्डुपवासियों को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी अभिप्रेरित किया। आचार्यश्री के स्वागत में भाण्डुप तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री मनोज कुमार बोथरा ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने स्वागत गीत का संगान किया।