🌸 क्षण मात्र भी प्रमाद करने से बचे मानव : मानवता के मसीहा महाश्रमण 🌸
-विक्रोली प्रवास का दूसरा दिन, आचार्यश्री ने जनता को समय के सदुपयोग की दी प्रेरणा
-आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे उपप्रवर्तक डॉ. रामुनिजी
-विक्रोलीवासियों ने अपने आराध्य की अभिवंदना में दी अपनी विभिन्न प्रस्तुतियां
09.01.2024, मंगलवार, विक्रोली, मुम्बई (महाराष्ट्र) : हमारी दुनिया में नित्यता भी है और अनित्यता भी है। किसी अपेक्षा से दुनिया नित्य और किसी अपेक्षा से दुनिया अनित्य भी है। इसमें अनेकांत का दर्शन कर सकते हैं। दुनिया में शाश्वत तत्त्व भी हैं जो पांच अस्तिकाय के रूप में हैं। पांचों अस्तिकाय कभी समाप्त नहीं होते। अनित्यता को इस रूप में देख सकते हैं कि पर्याय का परिवर्तन होता रहता है। परिवर्तनशीलता के कारण दुनिया में अनित्यता भी देखी जा सकती है। मात्र दुनिया नित्य है अथवा दुनिया अनित्य ही है, ऐसा कहना उचित नहीं है। इसलिए एक बात कह सकते हैं कि दुनिया नित्यानित्य है। इस दृष्टिकोण से मनुष्यों के जीवन के बारे में बताया गया है कि मनुष्य का जीवन वृक्ष के पत्ते के समान होता है। जैसे वृक्ष का पत्ता पककर एक दिन गिर जाता है, उसी प्रकार एक दिन आदमी भी मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। इसलिए मनुष्य को अपने जीवन में क्षण मात्र भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। क्षण-क्षण का प्रयोग करने का प्रयास होना चाहिए। मानव जीवन कितना अनित्य है। किसी की आयु 100 वर्ष तो कोई अल्पायु वाला अथवा कोई-कोई तो जन्म लेते ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। आयुष्य कितना आए नहीं आए, किन्तु आदमी को हर समय जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। साधु के लिए भी संदेश दिया गया कि साधु को भी अपनी साधना और पंच महाव्रतों सहित सभी नियमों के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। अशुभ योग रूप प्रमाद से बचने का प्रयास हो। नहीं बोलने वाला शब्द बोलना, अनावश्यक समय व्यतीत करना, अनर्गल प्रलाप में लग जाना आदि प्रमाद है। इसलिए साधु हो या गृहस्थ सभी को प्रमाद से बचते हुए अपने समय का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में धर्म-ध्यान हो, इसका प्रयास करना चाहिए। जैन श्रावकों को प्रतिदिन नवकार मंत्र का जप करने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ भी भगवान महावीर के गौतम स्वामी के नाम दिए गए इस संदेश को जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ अपने व्यापार में किसी ग्राहक को ठगने अथवा कोई ग्राहक दुकानदार को ठगने का प्रयास न करे। इस प्रकार भी प्रमाद से बचने का प्रयास करना चाहिए। बाह्य वस्तुओं जैसे- मोबाइल, कम्प्यूटर आदि-आदि के अनावश्यक प्रयोग से बचना भी प्रमाद से बचने का प्रयास हो सकता है। नशीले पदार्थों से बचने का प्रयास हो। दूसरों को कष्ट हो, ऐसे कार्यों से भी बचने का प्रयास हो। साधु-संतों द्वारा धर्मोपदेश सुनने को मिले तो उसे श्रवण करने का प्रयास हो। कुल मिलाकर मनुष्य को अपने जीवन को शुभ योगों में रहने का प्रयास करना चाहिए। चौबीस घंटे में से कुछ समय धर्म-ध्यान की आराधना में लगाने का प्रयास करें तो भगवान महावीर के संदेश को आत्मसात किया जा सकता है। उक्त पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अणुव्रत यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने विक्रोली प्रवास के दूसरे दिन श्री सिद्धि विनायगर इंग्लिश स्कूल के प्रांगण में बने प्रवचन पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान कीं। मंगल प्रवचन के दौरान ही स्थानकवासी संप्रदाय के उपप्रवर्तक डॉ. राममुनिजी का आगमन हुआ। दोनों संतों का मिलन जन-जन को प्रसन्न बना रहा था। आचार्यश्री ने उनके शुभागमन के संदर्भ में कहा कि आज राममुनिजी का पधारना भी हो गया। गुडगांव और आगरा में मिलना हुआ था। आज पुनः नौ वर्षों बाद मिलना हुआ। जितना संभव हो सके धर्मोद्योत होता रहे। स्थानकवासी संप्रदाय के उपप्रवर्तक डॉ. राममुनिजी निर्भय जी ने आचार्यश्री के मिलने के उपरान्त अपने उद्बोधन में कहा कि पूजनीय आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन कर बड़ी प्रसन्नता हो रही है। संतों का मिलना तो परम सौभाग्य की बात है। आपके दर्शन से बड़े आनंद की अनुभूति हो रही है। ऐसा अवसर हमें बार-बार मिलता रहे। विक्रोली तेरापंथी सभा के कार्याध्यक्ष श्री लक्ष्मीलाल चण्डालिया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ युवक परिषद के सदस्यों ने गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल ने गीत का संगान करने के उपरान्त अपनी प्रस्तुति भी दी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अनेक प्रकार के दिव्यांग बच्चों ने अणुव्रत गीत को प्रस्तुति दी। तदुपरान्त स्थानीय पूर्व विधायक श्री मंगेश सांगले ने भी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।