🌸 पुरुषादानीय कहे गए हैं भगवान पार्श्वनाथ : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-घाटकोपर प्रवास का चतुर्थ दिवस: प्रभु पार्श्वनाथ की जयंती पर आचार्यश्री ने दी पावन प्रेरणा
-आचार्यश्री ने घाटकोपरवासियों को आत्मानुशासन की दी पावन प्रेरणा
06.01.2024, शनिवार, घाटकोपर (पूर्व), मुम्बई (महाराष्ट्र) : भगवान महावीर के प्रतिनिधि, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में मुम्बई महानगर के उपनगरों में यात्रा व प्रवास कर रहे हैं। आचार्यश्री की यह प्रभावक यात्रा व प्रवास आम से लेकर खास लोगों के जीवन को आध्यात्मिकता से भावित बना रही है। राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट गणमान्यों के साथ सामान्य जनों की उपस्थिति, दर्शन और आशीर्वाद के बाद उनके चेहरे पर आत्मतोष की भावना स्पष्ट देखी जा सकती है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में राजनेता, अभिनेता, प्रशासनिक अधिकारी, डाक्टर्स, इंजीनियर, गायक, लेखक आदि सभी वर्ग और समाज के लोग भी उपस्थित होकर पावन पाथेय प्राप्त करने अपने जीवन को आध्यात्मिकता से भावित बना रहे हैं। वर्तमान में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी घाटकोपर में पंचदिवसीय प्रवास व यात्रा कर रहे हैं। जन-जन की भावनाओं को पूर्ण करने के लिए आचार्यश्री महाश्रमणजी नित्य प्रति अपने प्रातःकाल भ्रमण के दौरान श्रद्धालु जनता पर विशेष रूप से कृपा बरसा रहे हैं। शनिवार को भी प्रातःकाल आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रातःकाल भ्रमण के दौरान कितने-कितने श्रद्धालुओं को अपने दर्शन और मंगल आशीर्वाद से लाभान्वित किया। तदुपरान्त आचार्यश्री मंगल प्रवचन कार्यक्रम के लिए महाश्रमण समवसरण में पधारे। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को मंगल सम्बोध प्रदान करते हुए कहा कि उत्तरज्झयणाणि जो एक जैन आगम है। उसमें 36 अध्ययन हैं। किसी अध्ययन में तत्त्वज्ञान, किसी अध्ययन में प्रमाद न करने की प्रेरणा दी गई है, अनेक प्रसंग व किसी अध्ययन में आध्यात्मिक साधना का निर्देश भी प्रदान किया गया है। इसमें स्वयं के द्वारा स्वयं पर शासन करना अर्थात आत्मानुशासन की बात बताई गई है। आत्मानुशासन करने के लिए दो विधान बताए गए -संयम और तप। अपनी आत्मा का स्वयं के द्वारा दमन करने के लिए संयम की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। शरीर, इन्द्रिय, वाणी और मन पर नियंत्रण रहे तो आत्मानुशासन सध सकता है। हम अपने इन चार चीजों पर अनुशासन कर लें तो मानना चाहिए कि आत्मानुशासन एक सीमा तक उपलब्ध हो सकता है। जीवन में ऐसा न हो कि अपने पर कोई दूसरा शासन का प्रयास करे, स्वयं से स्वयं पर अनुशासन करने वाले पर कोई भला क्या अनुशासन कर पाएगा। इस आत्मानुशासन की बहुत ऊंची साधना तीर्थंकरों ने की है। चौबीस तीर्थंकरों में तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ हुए। भगवान पार्श्व विलक्षण तीर्थंकर से हैं। चौबीस तीर्थंकरों में सबसे ज्यादा स्तुति और पाठ भगवान पार्श्व के हैं। इसी प्रकार पार्श्व के मंदिर भी अन्य तीर्थंकरों की तुलना में बहुत ज्यादा हैं। इस तरह कहा जा सकता है कि भगवान पार्श्व प्रभु एक लोकप्रिय तीर्थंकर हैं। जिनके लिए पुरुषादानीय विशेषण का प्रयोग किया गया है। पौष कृष्णा दशमी है, जो उनकी जयंती है। ऐसे तीर्थंकर मानों संसार का कल्याण व मार्गदर्शन देने के लिए आते हैं। इनके जीवन, साधना, उपासना आदि से कितने-कितने लोगों का कल्याण हो जाता है। कठिनाइयां तो तीर्थंकरों के जीवन में भी पैदा हो सकती हैं। उनके मंत्रों का कितना-कितना लोग पाठ करते हैं। दुनिया का भाग्य है कि यहां हमेशा तीर्थंकर होते हैं। संत अगर दुनिया में हैं तो लोगों में संतुलन बना हुआ है। हम सभी के भीतर प्रभु पार्श्व की तरह वीतरागता का विकास होता रहे, यह काम्य है। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने प्रभु पार्श्व से संबंधित गीत का आंशिक संगान किया। बारडोली चतुर्मास सम्पन्न कर गुरुचरणों में पहुंची साध्वी सोमयशाजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए सहवर्ती साध्वियों संग गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने साध्वियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। तेरापंथ युवक परिषद-घाटकोपर के सदस्यों ने स्वागत गीत का संगान किया। नगरसेविका श्रीमती राखी जाधव ने भी अपनी भावनाओं को व्यक्त कर आशीर्वाद प्राप्त किया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ-घाटकोपर के चेयरमेन श्री नितेशचन्द्रा आदि ने भी आचार्यश्री के दर्शन किए। स्थानीय ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।