🌸 धन ही नहीं, धर्म का भी करें संचय : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-घाटकोपर प्रवास के दूसरे दिन आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को पढ़ाया सरलता का पाठ
-महाराष्ट्र भाजपा प्रदेशाध्यक्ष, मुम्बई के अध्यक्ष व सांसद कोटक ने भी किए पूज्यश्री के दर्शन
04.01.2024, गुरुवार, घाटकोपर (पूर्व), मुम्बई (महाराष्ट्र) :
जन-जन का कल्याण करने वाले, जन-जन के मानस को आध्यात्मिकता से भावित बनाने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, अणुव्रत यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को प्रातःकाल घाटकोपर में भ्रमण को निकले। अपने आराध्य के इस भ्रमण का घाटकोपरवासियों से पूर्ण लाभ प्राप्त किया। अनेकानेक श्रद्धालुओं को अपने-अपने घरों/व्यावसायिक प्रतिष्ठानों अथवा घर के आसपास व अपनी सोसायटी आदि के आसपास अपने आराध्य के दर्शन करने और उनके श्रीमुख से मंगलपाठ सुनने का अवसर मिला। मानों आज उनके घर स्वयं गंगा चल कर आई थी, जिसमें वे गोते लगाकर स्वयं को धन्य बना रहे थे। जन-जन पर कृपा बरसाने का आलम यह रहा कि आचार्यश्री को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में पधारने में सुबह के ग्यारह बज गए।
प्रवास स्थल से करीब एक किलोमीटर दूर स्थित बने महाश्रमण समवसरण में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पधारे तो उनके दर्शन के लिए महाराष्ट्र भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष श्री चन्द्रशेखर बावनकुले, मुम्बई के अध्यक्ष श्री आशीष सेलार व मुम्बई उत्तर-पूर्व के सांसद श्री मनोज कोटक पहले से ही प्रतीक्षारत थे। आचार्यश्री के समक्ष करबद्ध होकर तीनों गणमान्यों ने अपनी प्रणति अर्पित की व आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। तदुपरान्त सभी गणमान्य गंतव्य को रवाना हो गए।
महाश्रमण समवसरण में उपस्थित जनता को अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि मानव को जीवन जीने के लिए कितना कुछ करना होता है। काम करना, भोजन का प्रबन्ध करना, भोजन बनाना, खाना, रहना, सोना, बैठना, दौड़ना-भागना, कमाना, उसके लिए तैयारी करना और न जाने कितने सारे कार्य वह जीवन जीने के लिए करता है। वह भी ऐसे जीवन के लिए जिसका कोई भरोसा ही नहीं है। कब किसका जीवन समाप्त हो जाए, यह भरोसे की बात नहीं है। फिर इस संदर्भ में यह प्रश्न किया गया कि फिर आदमी जीवन क्यों जीए? धार्मिक शास्त्रों में उत्तर प्रदान किया गया कि पूर्वकृत कर्मों का क्षय करने व मोक्ष की प्राप्ति के लिए मानव को जीवन जीना चाहिए। पुनः प्रश्न हुआ कि मोक्ष कौन प्राप्त कर सकता है? उत्तर प्रदान किया गया कि जिसके जीवन में धर्म हो, जो आत्म साधक हो, जो धर्म का आराधक हो, वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है। अध्यात्म की साधना का परम लक्ष्य ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रतिप्रश्न किया गया कि कैसा हो धर्म का आराधक तो प्रत्युत्तर दिया गया कि शुद्ध हृदय वाला हो। शुद्ध हृदय उसका होता है जो सरल हो, ऋजु हो। जो सरल होता है, उससे यदि कोई गलती हो भी जाती है तो अपने गुरु अथवा प्रायश्चितदाता से प्रायश्चित्त प्राप्त कर शुद्ध हो जाता है।
भूल चाहे साधु से हो या गृहस्थ से दोनों को प्रायश्चित्त कर लेना चाहिए। जो आदमी सरल होता है, उसमें ईमानदारी के गुण भी होते हैं। अपने जीवन में ईमानदार बनने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन भी सदाचार और धर्माचरण से युक्त रहे, ऐसा प्रयास करना चाहिए। माया और मृषा आदमी को तीर्यंच गति का बंध कराने वाली होती है। मानव को अपने जीवन में सरलता रखने और धर्म के अनुकूल आचरण करने का प्रयास करना चाहिए। धर्म के अनुकूल आचरण होता है तो पुण्यार्जन भी हो सकता है, जो वर्तमान जीवन के साथ आगे के जीवन को अच्छा बना सकता है। इसके लिए आदमी केवल धन का ही अर्जन न करे, बल्कि धर्म का भी संचय करने का प्रयास करे। धर्म के संचय से वर्तमान जीवन व उसके आगे का जीवन भी अच्छा हो सकता है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुम्बई चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के मुख्य प्रबन्धक श्री मनोहर गोखरू ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल व तेरापंथ कन्या मण्डल की सदस्याओं ने संयुक्त रूप से गीत का संगान किया। घाटकोपर से संबद्ध उपासक श्रेणी के सदस्य तथा अणुव्रत समिति-मुम्बई के सदस्यों ने भी पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा प्रभु पार्श्व प्रणति सामायिक जप अनुष्ठान से संबंधित बैनर आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया।