



कारण कार्य मीमांसा -आचार्य विशुद्ध सागर
लोक में विविध आयामों पर विचार करना चाहिए, जिससे स्व पर का विवेक जाग्रत होकर वर्धमान हो। अन्य किसी के आश्रित न जीना पड़े, स्वतंत्रता का जीवन आनन्द का जीवन है। परतंत्रता का जीवन कष्ट का जीवन है।परतंत्र चाहे पशु हो, चाहे मानव हो, चाहे नारकी हो, सभी दुःखी ही हैं। परतंत्रता सुख नहीं; सुख तो स्वतंत्रता में ही है।
यहाँ विशेष समझने की बात है कि जैसे कोई व्यक्ति विशिष्ट-धनी हो तो वह कहता है, हमारा पुण्योदय है। विशिष्ट विद्वान् चारित्रवान् हो, तो वह भी पुण्योदय का परिणाम है। उसी प्रकार से स्वतंत्रता का जीवन पुण्योदय पर ही प्राप्त होता है। परतंत्रता नियम से पापोदय का परिणाम है। स्वयं परोक्ष प्रमाणभूत नैगमनय में जाओ तो आप पायेंगे; वर्तमान की परतंत्रता कार्य है। भूत में हमने अन्य की परतंत्र किया था, उसी का फलोदय वर्तमान है। कारण के बिना कार्य- उत्पत्ति के दर्शन नहीं होते, इस सिद्धान्त का सदा ध्यान रखना चाहिए। जो लोग कार्य की उत्पत्ति तो स्वीकारते हैं, परन्तु कारण नहीं मानते अथवा कारण को समझ नहीं पाते, अपना भिन्न पुरुष परमात्मा विशेष को कारण कर्ता भूत बना लेते हैं, उन्हें लोक व्यवहार भी समझ नहीं आ पाया, फिर परमार्थ वे क्या समझ पायेंगे?
जब कृषक धान्य स्व. खेत में उगाता है, तब पुरुषार्थ किसका होता है? कृषक या अन्य का? वह कृषक खेत में बीज डालता है या बीज के बिना ही गेहूँ, चना, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, मटर, आम आदि फल और फसल की प्राप्ति हो जायेंगी? फिर अलग-अलग बीज क्यों बोये जाते हैं? किसी भी बीज से, कोई भी धान्य व फल उत्पन्न’ हो जायेंगे। बकरे -बकरी के माध्यम से बकरा ही जन्म लेता है; परन्तु सिंह, जन्म नहीं ले लेगा। सिंह के माध्यम से सिंह जन्म लेता है; हाथी नहीं। हाथी से हाथी का जन्म होगा; मनुष्य का नहीं, मनुष्य से ही मनुष्य का जन्म होगा। सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।
सभा मे प्रवीण जैन, सुनील जैन, अतुल जैन, धनेंद्र जैन,वरदान जैन, विनोद जैन, दिनेश जैन, राकेश जैन आदि थे
वरदान जैन मीडिया प्रभारी






