🌸 तपस्या के प्रकारों के प्रयोग से करें आत्मकल्याण : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-आचार्यश्री ने व्युतसर्ग के प्रकारों का किया वर्णन
-साध्वीवर्याजी ने भी जनता को किया उद्बोधित
-प्रमुख उद्योगपति श्री सज्जन जिंदल व उनकी मां सावित्री जिन्दल ने किए पूज्यश्री के दर्शन
24.11.2023, शुक्रवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : 68 वर्षों बाद मायानगरी मुम्बई में पंचमासिक चतुर्मास में अब सम्पन्नता की ओर है। मुम्बईवासियों को भगवती सूत्र आगम के माध्यम से नियमित धार्मिक-आध्यात्मिक प्रेरणा प्रदान कर लोगों के जीवन को सर्वोत्तम प्रेरणा प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ 28 नवम्बर को नन्दनवन परिसर से मंगल विहार करेंगे। आचार्यश्री का यह विहार मुम्बई महानगर के शेष उपनगरों की ओर होगा। हालांकि आचार्यश्री की यह उपनगरीय यात्रा व प्रवास फरवरी माह तक मुम्बई महानगर के ही विभिन्न क्षेत्रों में होगा। शुक्रवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र के माध्यम से पावन सम्बोध प्रदान करते हुए कहा कि तप के बारह भेद बताए गए हैं। जिनमें छह बाह्य तप और छह आभ्यान्तर तप। इसे निर्जरा का भेद भी कहा जा सकता है। आभ्यान्तर तप का छठा तप है व्युतसर्ग। इसमें चार प्रकार के व्युतसर्ग बताए गए हैं। पहला है गण व्युतसर्ग। वर्तमान समय में यह व्यवस्था लागू नहीं है। प्राचीन समय में विशेष एकाकी साधना के लिए साधु अथवा आचार्य संघ-संप्रदाय का भी परित्याग कर एकाकी साधना के लिए प्रस्थान कर जाते थे। पहले आचार्य एकाकी साधना को जाते भी थे तो उससे पहले गण की व्यवस्था अपने उत्तराधिकारी साधु को प्रदान करके जाया करते थे। वर्तमान में ऐसी व्यवस्था मान्य नहीं है। दूसरा बताया गया है शरीर व्युतसर्ग। इसमें कायोत्सर्ग के द्वारा शरीर को शिथिल छोड़ देना, शरीर में कोई कष्ट भी हो जाए अथवा कोई बीमारी भी हो जाए तो हॉस्पिटल या डॉक्टर के पास नहीं जाना, किसी प्रकार की चिकित्सा के प्रति उदासीन हो जाना। कभी स्वतः निवारण हो तो अलग बात है। तीसरा प्रकार उपधि व्युतसर्ग बताया गया है। अपने उपकरणों का अल्पीकरण कर देना अथवा उसका भी त्याग कर देना उपधि व्युतसर्ग होता है। चौथा प्रकार बताया गया कि जब लगे कि शरीर साथ नहीं दे रहा तो अपने शरीर को छोड़ देना चाहिए। इसके लिए संलेखना, संथारा की ओर गति कर लेना भक्तपान व्युतसर्ग होता है। यह सभी द्रव्य व्युतसर्ग के अंतर्गत आते हैं। अपने कषायों का व्युतसर्ग कर दिया जाए तो जीवन बहुत अच्छा हो सकता है। इस प्रकार आदमी तपस्याओं के प्रकारों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करे तो उसकी आत्मा का कल्याण हो सकता है। साध्वीवर्याजी ने भी उपस्थित जनता को संबोधित किया। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-मुम्बई के स्वागताध्यक्ष श्री सुरेन्द्र बोरड़ पटावरी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। जैन विश्व भारती द्वारा आचार्य तुलसी अनेकांत सम्मान व जैन विद्या पुरस्कार वर्ष 2023 समारोह का आयोजन किया गया। जिसमें जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा आचार्य तुलसी अनेकांत सम्मान श्री बनेचंद मालू को तथा जैन विद्या पुरस्कार वर्ष 2023 श्रीमती प्रेमलता सिसोदिया को दिया गया। दोनों सम्मान प्राप्तकर्ताओं का परिचय श्री जयंतीलाल सुराणा ने किया। श्रीमती कमला बांठिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। पुरस्कारप्राप्तकार्ताओं ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में प्रमुख उद्योगपति श्रीमती सावित्री जिन्दल व उनके पुत्र श्री सज्जन जिन्दल पूज्यसन्निधि में पहुंचे। आचार्यश्री के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त श्रीमती सावित्री जिन्दल व श्री सज्जन जिन्दल ने अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। श्री कमल मेहता ने श्रीमती सावित्री जिन्दल व श्री सज्जन जिन्दल का परिचय प्रस्तुत किया।