




प्रवचन 5-11-23
आत्मिक शक्तियों की जागृति के लिए ‘ध्यान’ करो- आचार्य विशुद्ध सागर
आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने कहा कि- ” व्यक्ति को हताश नहीं होना चाहिए,अपने लक्ष्य की ओर साहस करके बढ़ना चाहिए।
दिगम्बराचार्य श्री विशुद्धसागर जी गुरूदेव ने ऋषभ सभागार मे धर्मसभा में सम्बोधन करते हुए कहा कि बाधायें आयें तब भी डरें न, साहस के साथ आगे बढ़ते रहो। डर कर मार्ग मत छोड़ो, शक्ति पूर्वक अपने लक्ष्य की ओर चलना चाहिए। सही-दिशा की ओर बढ़ाया गया एक पग भी मंजिल प्राप्त करने में सहायक होता है। लक्ष्य बनाओ, पल-पल लग्न पूर्वक लक्ष्य की ओर बढ़ो।”
उत्कृष्ट – ध्यान के लिए, ज्ञान आवश्यक है। ज्ञान प्राप्ति के लिए अभ्यास जरूरी है। विद्यार्थी के लिए प्रमाद महाशत्रु होता है। आलस छोड़कर काम-वासना से विरक्त, इन्द्रिय-भोगों से परिग्रह रहित, सात्विक जीने वाले साधक को ही शांति-प्रदाता ध्यान शून्य, होता है।
‘संयमधारी, वीतरागी, भद्र-परिणामी, वैरागी, शांत परिणामी, सम्यक्त्वी, ज्ञानी, मुमुक्षु जिज्ञासु एकाग्र ध्याता को ही मुक्ति में सहायक धर्म- ध्यान होता है। ध्यान से आत्मा की सुप्त-शक्तियाँ जाग्रत होती हैं । ध्यान मुक्ति का साधन है। ध्यान से प्रज्ञा-प्राञ्जल होती है। भवों-भवों में संग्रहीत कर्म के बंधन ध्यान से क्षण भर में क्षय को प्राप्त होते हैं। ध्यान ही श्रमणों की मुख्य-साधना है। ध्यान ही मंगल है, ध्यान ही उत्तम है, ध्यान ही कल्याणकारी है। ध्यान में लीन साधक ही सिद्धि का अधिकारी होता है । मौन, साधक के लिए अत्यंत हितकारी है। मौन से वचन सिद्धि होती है। वार्ता से चित्त अशांत होता है, अशांत चित्त ध्यान में स्थिर नहीं हो सकता है। ध्यान के लिए एकाग्रता होना चाहिए। साधना साध्य नहीं है, साध्य शांति प्राप्ति है। साधन से साध्य की सिद्धि होती है।
ध्याता के लिए वात्सल्य, मैत्री, संयम की पवित्रता, अनशन, एकाग्रता, संतोष, क्षमा भाव की अनिवार्यता है। जितने कर्मों की निर्जरा अज्ञानी करोड़ों वर्षों में नहीं कर पाता है, उससे भी अधिक कर्मों का क्षय ज्ञानी क्षण मात्र में कर देता है।
सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे प्रवीण जैन, अतुल जैन,मुकेश जैन, सुनील जैन, सुरेश जैन, मनोज जैन, राकेश जैन,शुभम जैन, दिनेश जैन, सतीश जैन, सुभाष जैन, राजकुमार जैन आदि उपस्थित थे।
वरदान जैन मीडिया प्रभारी




