




🌸 मन को बनाएं सुमन – आचार्य महाश्रमण🌸
- नव दिवसीय जाप अनुष्ठान का हुआ समापन
- सघन साधना शिविर के संभागियों दी विचारों की प्रस्तुति
23.10.2023, सोमवार, घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र)
जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के अनुशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी ज्ञानमय वाणी से प्रवचन द्वारा नित्य शास्त्र वचनों को व्याख्यायित कर रहे है। आचार्यप्रवर के संयम ग्रहण के 50 वर्ष के उपलक्ष्य में दीक्षा कल्याण महोत्सव भी इस वर्ष मनाया जा रहा है। जिसके तहत अनेकानेक संघीय कार्यक्रम आयोजित हो रहे है। आज नवरात्रि के अंतिम दिवस जाप अनुष्ठान का आचार्यवर द्वारा समापन किया गया। साथ ही आज तेरापंथी महासभा द्वारा संचालित नव दिवसीय सघन साधना शिविर का भी समापन हुआ। मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने शिविर से संबद्ध जानकारी गुरुदेव को निवेदन की। इस अवसर पर अमृत वाणी को यूट्यूब पर एक लाख सब्सक्राइब होने पर प्राप्त सिल्वर प्ले बटन को संस्था के पदाधिकारियों द्वारा गुरु चरणों में भेंट किया गया।
मंगल देशना में आचार्य श्री ने कहा– मन की निर्वृति चार प्रकार की होती है। सत्य, असत्य, सत्य मिश्र और असत्य मिश्र। मन व भाषा में काफी समानता व नैकट्य होता है। भाषा की पूर्व भूमिका मन में होती है। कई बार मन की बात मन ही में रख की जाती है और कई बार मन की बात को भाषा का जामा पहना दिया जाता है। पंचेंद्रीय से नीचे के असंज्ञी जीवों के मन नहीं होता। विकास की दृष्टि से मनुष्य बहुत श्रेष्ट प्राणी है। मन का होना, संज्ञी होना विकास का द्योतक है।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि मनस्विता से सुगति भी प्राप्त हो सकती है व दुर्गति भी, इससे मन को सुमन भी बनाया जा है व दुर्मन भी। एक चाकू से किसी का गला भी काटा जा सकता है व सब्जी भी। सब विचारों के अंतर के कारण होता है। अपने मन के चिन्तन व भाव धारा से आदमी नरक में भी जा सकता है व मोक्ष का वरण भी कर सकता है। हम अपने मन की चंचलता को कम करें व साथ में तन को भी स्थिर रखने का प्रयास करते रहें। तन व मन की चंचलता को कम करने के लिए अपने भावों को भी एकाग्र बनाना जरूरी है।
कार्यक्रम में महासभा से श्री अशोक तातेड, प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष श्री मदन तातेड, अमृत वाणी अध्यक्ष श्री रूपचंद दुगड़, महामंत्री श्री अशोक पारख, श्री पन्नालाल पुगलिया आदि ने अपने विचार रखे। साधना शिविर के संभागियों ने गीत का संगान किया।




