

पश्चिम बंगाल आंचलिक श्रावक सम्मेलन का भव्य आयोजन
श्रावक का जीवन अन्य व्यक्तियों से विलक्षण होना चाहिए – मुनिश्री जिनेश कुमार जी
साउथ कोलकाता
युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमार जी ठाणा-3 के सानिध्य में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्वावधान में पश्चिम बंगाल आंचलिक श्रावक सम्मेलन का आयोजन साउथ कलकत्ता श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के द्वारा तेरापंथ भवन में आयोजित हुआ। जिसका मुख्य विषय धर्मसंघ और हमारा दायित्व था। इस अवसर पर पश्चिम बंगाल की 22 सभाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। सम्मेलन में मुख्य अतिथि महासभा अध्यक्ष मनसुखलाल जी सेठिया थे। मुख्य न्यासी सुरेशचंद गोयल, पंचमंडल सदस्य भंवरलाल बैद, उपाध्याक्ष नेमचंदजी बैद, महामंत्री विनोद जी बैद, कोषाध्यक्ष मदन कुमार मरोटी, न्यासी बाबुलाल बोथरा, आंचलिक प्रभारी तेजकरण बोथरा आदि गणमान्य व्यक्तियों की गरिमामयी उपस्थिति रही।
सम्मेलन में उपस्थित जनसमुदाय को संबंधित करते हुए, मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने कहा द्रष्टा का हर व्यवहार आम आदमी से भिन्न हो विशिष्ठ हो। श्रावक एक मनुष्य है पर अन्य मनुष्यो की तुलना में उसका व्यवहार विलक्षण हो यह आवश्यक है। जिनशासन के चार अंग है, उसमें एक है- श्रावक । श्रावक वह होता है जो अल्पारंभी व अल्प परिग्रही हो जो श्रद्धावान है, विवेकवान है, कियाशील है, कर्तव्य के प्रति जागरुक है, नशामुक्त है तत्त्वज्ञानी है, स्वाध्यायशील है, हदृधर्मी है सबके हितों की सुरक्षा करता है वह श्रावक समाज के लिए उपयोगी होता है। श्रावक व्रत साधना के साथ साथ समाजो उत्थान कार्य भी करता है। श्रावक को माता पिता के समान होना चाहिए।श्रावक केवल श्रमणों के उपासक ही नहीं होते हैं वे संरक्षक भी होते हैं श्रावक छिद्रावेषी, अस्थिर विचार वाला व अहंकारी न होकर शुद्ध व स्वच्छ हृदय वाला हो। मुनिश्री ने आगे कहा- जिस प्रकार बगीचे की शोभा फूल से होती है फूल की शोभा बगीचे से होती है उसी प्रकार व्यक्ति की शोभा संघ से होती है और संघ की शोभा व्यक्ति से होती है दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। संघ आश्वासन व विश्वास देने वाला है संघ शीत घर के समान होता है। संघ माता पिता के समान होता है उस संघ की शरण में आना चाहिए। जिस प्रकार पावर हाऊस से जुड़ा हुआ बल्व ही प्रकाश को प्राप्त होता है। उसी प्रकार संघ से जुड़ा हुआ व्यक्ति ही प्रकाश को प्राप्त होता है समाधि को प्राप्त होता है। श्रावक अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक रहे। सभा संस्थाएं तभी तेजस्वी हो सकती है जब व्यक्ति के भीतर संस्था के प्रति श्रद्धा हो, संघ संघ पति के प्रति आस्था हो, और नीतिरीति से परिचित हो और आपस में सामंजस्य का भाव हो।
बाल मुनिश्री कुणाल कुमार जी ने सुमधुर गीत का संगान किया।इस अवसर पर महासभा के अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा हम व्यक्तिगत, पारिवारिक, – व्यापारिक व सामाजिक जीवन को संस्कार मय बनाएं यह हमारा दायित्व है। श्रावक निष्ठा पत्र के सात संकल्प प्रत्येक श्रावक को हृदय में अंकित करने चाहिए।
इस अवसर पर मुख्य न्यासी सुरेशचंद गोयल, पंचमंडल सदस्य भंवरलाल बैद, उपाध्यक्ष नेमचंद बैद, महामंत्री विनोद बैद, कोषाध्यक्ष मदन कुमार मरोटी, न्यासी बाबूलाल बोथरा आंचलिक प्रभारी तेजकरण बोथरा, महासभा के पूर्व अध्यक्ष राजकरण सिरोहिया, तेरापंथ महासभा के पूर्व उपाध्यक्ष मूलचंद डागा, कोलकाता सभा अध्यक्ष अजय जी भंसाली, सुमेरमलजी सुराणा, लक्ष्मीपत बाफना, सुरेन्द्र बोथरा, अशोकभूतोड़िया, बालचंदजी दुगड़, विनोद बैद, प्रमिल बाफणा, अशोक पारख, कोलाघाट से आसकरण बैगानी, आदि ने अपने विचार व्यक्त किये। विभिन्न सभाओं से समागत प्रतिनिधियों ने अपनी बात रखी। स्वागत भाषण साउथ कलकता सभा के अध्यक्ष विनोद कुमार चौरड़िया ने दिया। आभार ज्ञापन सहमंत्री कमल किशोर कोचर ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ महिला मंडल के मंगलाचरण से हुआ। श्रावण निष्ठा पत्र का वाचन महासभा अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया ने किया। अतिथियों का पचरंगी पट्टी से सम्मान किया गया।
कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री परमानंदजी व सभा के मंत्री कमल जी सेठिया ने किया। इस अवसर पर पश्चिम बंगाल की 22 सभाओं के पदाधिकारी व प्रतिनिधि कार्यक्रम में सम्भागी बनें। सम्मेलन तीन सत्रों में समायोजित हुआ।






