



सामायिक साधु जीवन की बानगी है मुनिश्री जिनेश कुमारजी
अभिनव सामायिक का भव्य कार्यक्रम हुआ
साउथ कोलकाता
आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में तथा तेरापंथ सभा के तत्वावधान में पर्युषण पर्व का तीसरी दिन सामायिक दिवस के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक द्वारा निर्देशित स्थानीय शाखाओं द्वारा आयोजित अभिनव सामायिक, कार्यक्रम में सैकड़ों सैकड़ों भाई बहिनों ने भाग लिया । इस अवसर पर मुनिश्री जिनेश कुमारजी ने कहा- पर्युषण पर्व जैन धर्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाता है। पर्युषण पर्व स्वबोध, स्वसंवाद संबोध का पावन पर्व है। पर्युषण पर्व ज्योति का प्रकाश का, उल्लास व आनंद का पर्व है। मनुष्य की दिशा व दशा को बदलने वाला पर्व है।, कृष्ण पक्ष से शुक्ल पक्ष की यात्रा कराने वाला पर्व है। पर्युषण पर्व समता का पर्व है। समता की साधना का अभिन्न अंग है सामायिक। सामायिक अहं से अर्हम् की यात्रा है। विभाव से स्वभाव की यात्रा है। सामायिक अध्यात्म का पासपोर्ट व मुक्ति का विजा है। सर्व समस्यों का समाधान सामायिक से संभव है। मुनिश्री ने आगे कहा सामायिक में श्रावक 48 मिनिट तक पापकारी प्रवृत्ति से निवृत्त होकर धर्म चेतना को जागृत करता है। सामायिक से 84 का चक्कर मिटता है। सामायिक संयम व्रत की बानगी है 14 पूर्वो का सार है। जैन एकता को बढाने वाला उपक्रम है। सामायिक की आराधना करने वाला साधक आराधक पद को प्राप्त होता मुनिश्री ने भगवान महावीर का जीवन दर्शन बताते हुए कहा- क्रोध प्रीति का नाश करता है। क्रोध से शारीरिक मानसिक भावनात्मक बीमारियां बढ़ती है परस्पर प्रेम पर पूर्ण विराम होता है, मर्यादा व व्रतभंग होता है। विश्व भूति ने क्रोध के कारण जो साधना सुमेरु होने वाली थी। वह गुब्बारा बनकर रह गई। व्यक्ति क्रोध को उपशम से जीते ध्यान जप का प्रयोग करें। मुनिश्री परमानंदजी ने भगवान ऋषभ के पूर्व भव धन्ना सार्थ वाह के बारे में बताया। मुनिश्री कुणाल कुमार जी ने गीत का संगान किया। रिसड़ा व उत्तरपाड़ा तेरापंथ महिला मंडल ने मंगला चरण किया। संचालन मुनि श्री परमानंद जी ने किया।




