तप से पूर्वाजित कर्मो का क्षय होता है मुनिश्री जिनेश कुमार जी
मासखमण तप अभिनंदन कार्यक्रम संपन्न
साउथ हावडा
आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में तेरापंथ सभा के तत्वावधान में श्रीमति मोनिका अमित बांठिया का मासखमण तप अभिनंदन का कार्यक्रम तेरापंथ भवन में आयोजित हुआ। इस अवसर पर मुनिश्री जिनेश कुमारजी ने कहा मानव जीवन का परम उद्देश्य है आत्म साक्षात्कार और आत्म परिमार्जन। आत्म साक्षात्कार का उपाय धर्म है। धर्म मंगल है। धर्म से बढ़कर दूसरा कोई मंगल नहीं हो सकता। धर्म सब रोगों की चिकित्सा करने में सक्षम है यह अनुपम औषधि है। परम सहायक है, विपुल बल वाला और रक्षा करने वाला है। धर्म का एक प्रकार है तपस्या। तपस्या अनुत्तर है। तपस्या कर्म मुक्ति बंधन मुक्ति का उपाय है। तप से शुद्धि होती है। तपस्या का अर्थ केवल आहार परिहार ही नहीं है। तपस्या का वास्तविक अर्थ है आसक्ति का त्याग केवल पदार्थ की ही नहीं अपितु सब वस्तुओं की आसक्ति का त्याग है। तप जिनशासन की प्रभावना का हेतु है। तपस्या के द्वारा आत्मा को पवित्र बनाया जा सकता है। मुनिश्री ने आगे कहा- तप शरण है तप से आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है। तप से सभी प्रकार के मनोरथ फलते हैं। तप की महिमा अपरंपार है। तप से पूर्णजित कर्मो का क्षय होता है। तप गंगा की बहती धारा व शीतल छाया है। विरले व्यक्ति ही तपस्या कर सकते है। बहिन मोनिका ने छोटी वय में मासखमण कर अद्भूत साहस का परिचय दिया है। तप करना सरल है लेकिन पारणे में संयम रखना कठिन है। तप के बाद संयम की साधना जरूरी है। मुनिश्री परमानंद जी ने कहा जहां तप का दीप का जलता है वहां घर आंगन महक उठता है। मुनिश्री कुणाल कुमारजी ने सुमधुर तप गीत का संगान किया। तप अनुमोदना कार्यक्रम में साऊथ कोलकाता तेरापंथ सभा मंत्री कमल सेठिया, तेरापंथ सभा कलकत्ता के अध्यक्ष अजय भंसाली, अशोक कोठारी, प्रवीण कुमार आंचलिया, अमित बांठिया, परिवार की बहिनों ने भावों की प्रस्तुति दी। साध्वी प्रमुखा विश्रुतविभा जी के तप संदेश का वाचन डा० प्रतिमा कोठारी व अभिनंदन पत्र का वाचन तेरापंथ सभा के पूर्व अध्यक्ष विजय सिंहजी चौरड़िया ने किया। तपस्वी बहिन का तेरापंथ सभा के द्वारा सम्मानित किया गया। संचालन मुनिश्री परमानंदजी ने किया।