🌸 केवली से सीखें बोलना : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-भगवती सूत्र से निरंतर ज्ञानगंगा प्रवाहित कर रहे युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
-कालूयशोविलास में अस्त हुए तेरापंथ के आठवें सूर्य पूज्य कालूगणी
06.09.2023, बुधवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की मान्य परंपरा में उल्लिखित 32 आगमों में सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण भगवती सूत्र है। वर्तमान समय में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के अधिशास्ता, युगप्रधान, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी भगवती सूत्र के माध्यम से निरंतर ज्ञानगंगा प्रवाहित कर रहे हैं। इस ज्ञानगंगा में गोते लगाने के लिए नियमित रूप से हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते हैं और इसका लाभ प्राप्त करते हैं। इसके साथ ही लोगों को गुरुमुख से आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित कालूयशोविलास के आख्यान के रोचक आख्यान के श्रवण का सुअवसर भी प्राप्त हो रहा है। बुधवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्रा के माध्यम से पावन वचनामृत का पान कराते हुए कहा कि भगवती सूत्र में छदमस्थ, केवल और सिद्धों से संदर्भित प्रश्न किए गए हैं। जिनके समाधान भगवान महावीर ने प्रदान किए हैं। भगवान महावीर से प्रश्न किया गया कि केवलज्ञानी छदमस्थ को देखता और जानता है क्या? भगवान महावीर ने कहा कि हां, केवलज्ञानी छदमस्थ को देखता और जनता है। पुनः प्रश्न किया गया कि क्या सिद्ध भी सदमस्थ को देखता और जानता है? उत्तर देते हुए भगवान महावीर ने कहा हां, सिद्ध भी छदमस्थ प्राणी को देखता व जानता है। यहां देखना और जानना दो अलग-अलग बातें हैं। किसी को जानने के लिए ज्ञान और देखने का अर्थ दर्शन से जुड़ा हुआ है। ज्ञान से जान लिया जाता है और दर्शन से देखा जाता है। केवलज्ञानी एक समय पर देखता है और एक समय पर जानता है। देखना और जानना एक साथ नहीं होता। बल्कि एक चरणबद्ध रूप में एक समय पर केवली देखते हैं और एक समय पर जानते हैं। इसी प्रकार सिद्ध भी देखते और जानते हैं। भगवान महावीर से पुनः प्रश्न किया गया कि केवलज्ञानी बोलते और व्याकरण करते हैं क्या? भगवान महावीर ने कहां हां। पुनः प्रतिप्रश्न आता है कि क्या सिद्ध भी बोलते हैं और व्याकरण करते हैं? भगवान महावीर ने प्रत्युत्तर प्रदान करते हुए कहा कि नहीं। ऐसा इसलिए कि जो केवली मनुष्य होते हैं, उनमें उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पराक्रम होता है, इसलिए वह बोलते हैं और व्याकरण करते हैं। सिद्धों में बल, वीर्य, उत्थान, पराक्रम नहीं होते, इसलिए वे नहीं बोलते। जीवों के लिए उपयोगी अर्हत् ही होते हैं। सिद्धों को नमन अथवा स्तवना तो की जा सकती है, किन्तु सीधे तौर पर काम करने वाले वे नहीं होते हैं। केवल ज्ञानी बोलते हैं। इस ज्ञान की उपलब्धि सबके पास नहीं होती है। कई प्राणियों के पास बोलने की शक्ति होती है। मनुष्यों के पास बोलने की शक्ति होती है। केवली जो बोलते हैं, वे राग-द्वेष से रहित होकर बोलते हैं। मनुष्य को भी केवली से यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि वह भी जब भी बोले तो राग-द्वेष के विकारों को दूर रखकर बोलने का प्रयास करे तो उसका स्वयं की जीवन भी उन्नत हो सकता है। राग-द्वेष से मुक्त होकर बोलने से वीतरागता भी पुष्ट हो सकती है। दसवेंआलियं का सातवां अध्ययन बोलने के ही संदर्भ में है। आदमी को कैसे बोलना चाहिए और कैसे नहीं बोलना चाहिए। अच्छा, राग-द्वेष से मुक्त बोलने की प्रेरणा केवली से प्राप्त की जा सकती है। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने कालूयशोविलास में वर्णित भाद्रपद शुक्ला षष्ठी को सायं काल पूज्य कालूगणी की अंतिम स्थिति मुनि मगनजी द्वारा चौविहार संथारे का प्रत्याख्यान कराना, सात मिनट बाद महाप्रयाण के होने आदि का आचार्यश्री ने सरसशैली में वर्णन किया। तेरापंथ कन्या मण्डल- मुम्बई ने अपनी प्रस्तुति देते हुए गीत का संगान किया। बालक प्रबल कोटड़िया ने गीत का संगान किया।