




बडौत,पापी मे परमात्मा देख सके:वही सच्ची आत्मा- आचार्य विशुद्ध सागर
जैन आचार्य श्री विशुद्धसागर जी मुनिराज ने ऋषभ सभागार मे धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि- साधक के भाव पवित्र होने चाहिए, संयमी का भेष सहज होना चाहिए, संयमी का व्यवहार मनोहर होना चाहिए ।संयमी का भाषण मधुर और गंभीर होना चाहिएब। साधक की चर्या आगम अनुकूल होनी चाहिए।साधक तन मन आत्मन मनोहर होना चाहिए। साधक का जीवन सरल एवं सहज होना चाहिए ।संयमी साधक जितना निस्पृह ,शांत विरक्त और वैराग्य मुक्त होगा उतना ही उसका प्रभाव फैलेगा।
आकांक्षा, इच्छा, चाह इंसान को नीचे गिरा देती है आकांक्षाएं व्यक्ति को अंधा कर देती हैं। जहां में व्यक्ति चैन से नहीं जी पाता। इच्छा ही अशांति है व्यक्ति जितना जितना चाहेगा उतना इतना दुखी होगा ।अपेक्षा ही दुख है उपेक्षा ही सुख है। पुण्य से बढ़कर समय से उसे पहले किसी को कुछ नहीं मिलता जिसका जैसा नियोग होता है, उसे वैसा पद,प्रतिष्ठा यश, सम्मान वैसा जी मिल ही जाता है भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता । पुरुषार्थ और कर्तव्य करो, परिणाम विशुद्ध रखो, समता भाव धारण करो,परोपकार करो, परंतु आकांशा मत करो।चाहने से कुछ नही मिलता,पुण्य से सब कुछ मिलता है।
सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।सभा मे प्रवीण जैन, अतुल जैन, सुनील जैन, मनोज जैन,वरदान जैन, राकेश सभासद,वकील चंद जैन, जय प्रकाश जैन, सुरेश जैन,अशोक जैन,दिनेश जैन, राजेश जैन, शुभम जैन आदि उपस्थित थे।
वरदान जैन मीडिया प्रभारी
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