
सतीश चंद लुणावत,राष्ट्रीय उपसंपादक
Key Line Times
बिजयनगर,श्री प्राज्ञ महाविद्यालय बिजयनगर के रसायन विज्ञान विभाग द्वारा 8 दिसंबर को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हाल में हो रहे नवाचारों, शोध प्रवृत्तियों और सतत विकास से जुड़ी चुनौतियों पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य और सफल आयोजन किया गया। इस आयोजन का उद्देश्य विद्वानों, विशेषज्ञों, शोधार्थियों और नीति-निर्माताओं को एक साझा मंच प्रदान कर भविष्य के विकसित भारत की दिशा में विज्ञान और तकनीक के योगदान पर सार्थक संवाद स्थापित करना था। संगोष्ठी की शुरुआत नवकार मंत्र के साथ हुई, जिसके बाद सभी अतिथियों का स्वागत किया गया। महाविद्यालय परिसर में उपस्थित छात्रों, प्राध्यापकों और शोधकर्ताओं ने पूरे उत्साह के साथ इस ज्ञानवर्धक कार्यक्रम में भाग लिया। संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर करुणेश सक्सेना (वाइस चांसलर, संगम यूनिवर्सिटी भीलवाड़ा) ऑनलाइन उपस्थित हुए उन्होंने नई शिक्षा नीति 2020 के संदर्भ में अपने विचार रखते हुए कहा कि आज की शिक्षा प्रणाली विद्यार्थियों को केवल अकादमिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि नवाचार की दिशा में चिंतन करने और समस्याओं के समाधान ढूंढने की क्षमता विकसित करने के अवसर प्रदान कर रही है। उन्होंने बताया कि विकसित भारत 2047 का लक्ष्य तभी पूरा होगा जब हमारा युवा वर्ग शोध, तकनीकी नवाचार और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाते हुए आगे बढ़े। उन्होंने छात्रों को सतत सीखने, प्रयोग करने और समाज व राष्ट्र के कल्याण के लिए विज्ञान का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया। गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप मे डॉ. आलोक चतुर्वेदी, प्रोफेसर ऑफ केमिस्ट्री (कमिशनेरेट कॉलेज एजूकेशन जयपुर)उपस्थित रहे। उन्होंने श्री प्राज्ञ महाविद्यालय द्वारा इस महत्वपूर्ण और सामयिक विषय पर संगोष्ठी आयोजित करने की सराहना की। उन्होंने अपने विस्तृत संबोधन में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन, पर्यावरणीय प्रदूषण, ऊर्जा संरक्षण, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विस्तार, ओज़ोन परत क्षरण, पेड़ लगाने के महत्व और कार्बन अवशोषण जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि जिस तेजी से विश्व पर्यावरणीय संकटों का सामना कर रहा है, उस दृष्टि से विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने कहा कि स्थायी विकास की दिशा में नवीकरणीय ऊर्जा और हरित तकनीकों का उपयोग अनिवार्य है।कार्यक्रम के पहले कीनोट स्पीकर के रूप में नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी, काठमांडू, नेपाल) से प्रोफेसर डॉ. देबा बहादुर खड़का ने अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने रासायनिक भौतिकी, स्पेक्ट्रोस्कोपी, रमन प्रभाव, डाइपोल–डाइपोल अंतःक्रिया, परमाणुओं और अणुओं के बीच टकराव के दौरान होने वाली ऊर्जा-परिवर्तन प्रक्रियाओं, प्रायोगिक क्रॉस सेक्शन, ऑप्टिकल मॉडल गणना और क्वांटम यांत्रिकी के मूल सिद्धांतों पर अत्यंत ज्ञानवर्धक प्रस्तुति दी। उन्होंने जटिल वैज्ञानिक अवधारणाओं को सरल भाषा में समझाया और बताया कि आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगों के माध्यम से ऊर्जा, पदार्थ और इलेक्ट्रॉनिक संरचनाओं के बीच संबंधों को किस प्रकार समझा जा सकता है। उनका व्याख्यान शोधकर्ताओं और विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत प्रेरणादायक रहा। दूसरे कीनोट स्पीकर के रूप में राजस्थान विश्वविद्यालय के बॉटनी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. जय सिंह ने भारतीय ज्ञान प्रणाली, जैव-विविधता संरक्षण और प्रकृति के प्रति मानव की जिम्मेदारी पर प्रकाश डाला। उन्होंने राजस्थान में पाए जाने वाले ऑर्किड की विविधता पर विशेष ध्यान आकर्षित किया और बताया कि ये पौधे पर्यावरणीय संतुलन, औषधीय गुणों, उद्यानिकी और इको-टूरिज्म के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि जैव-संसाधनों का संरक्षण केवल पर्यावरणीय दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्तर पर भी आवश्यक है, क्योंकि आने वाले समय में प्राकृतिक संसाधन ही वैश्विक अर्थव्यवस्था के संतुलन को निर्धारित करेंगे। संगोष्ठी के दौरान आमंत्रित वक्ताओं ने भी अपने-अपने शोध क्षेत्रों से जुड़े महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए। इनमें डॉ. ज्योति आर्या, डॉ. रुचि सिंह, डॉ. निधि अरोड़ा, डॉ. प्रियंका सिंह, डॉ. कुमुद तंवर, डॉ. नीतू सिंह कुशवाहा, डॉ. तृप्ति गुप्ता और डॉ. सोनालिका सिंह शामिल थीं। इन विद्वानों ने नैनोविज्ञान, पर्यावरण संरक्षण, औषधीय पौधों के अध्ययन, रोगाणुरोधी गतिविधियों, एआई आधारित डायग्नोस्टिक्स, हाइड्रोपोनिक खेती, ग्रीन टेक्नोलॉजी, सतत विकास, ऊर्जा भंडारण, अपशिष्ट प्रबंधन और जल संरक्षण जैसे विषयों पर अपने शोध और अनुभव साझा किए। उनकी प्रस्तुतियों ने विद्यार्थियों को आधुनिक तकनीक और शोध की दिशा में प्रेरित किया। संगोष्ठी के मुख्य विषयों में साइट्रस पील एक्सट्रैक्ट से नैनोकणों का पर्यावरण-अनुकूल संश्लेषण और उनकी कैंसररोधी संभावनाएँ, प्लास्टिक प्रदूषण के बीच हाइड्रोपोनिक खेती का भविष्य, फाइटोफार्माकोलॉजी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का एकीकरण, सिल्वर नैनोपार्टिकल्स की रोगाणुरोधी प्रभावशीलता, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विस्तार, ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, जल संरक्षण तकनीकें, बायोटेक्नोलॉजी का बढ़ता उपयोग, मशीन लर्निंग और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल रहे। इन विषयों पर हुई चर्चा ने स्पष्ट किया कि भविष्य की चुनौतियाँ वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीकी नवाचार के माध्यम से ही हल हो सकती हैं। संगोष्ठी की अध्यक्षता राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय राजगढ़, अलवर के प्रोफेसर अशोक काकोडिया ने की। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि ऐसे आयोजनों से न केवल विद्यार्थियों, बल्कि अध्यापकों और शोधकर्ताओं को भी नई दिशा और प्रेरणा मिलती है। उन्होंने कहा कि सतत विकास केवल सरकारी नीतियों का विषय नहीं है, बल्कि समाज के हर वर्ग की जिम्मेदारी है, और विज्ञान इसमें मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है। उन्होंने महाविद्यालय के इस प्रयास की सराहना की और कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम शोध संस्कृति को मजबूत करते हैं और विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करते हैं। कार्यक्रम के अंत में महाविद्यालय प्रशासन ने सभी अतिथियों, वक्ताओं और प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। महाविद्यालाय प्राचार्या डॉ दुर्गा कंवर मेवाड़ा ने संगोष्ठी के सफल आयोजन पर खुशी व्यक्त की, इसे देश के स्थायी और समावेशी भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने कहा कि ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी’ जैसा समय की मांग वाला विषय आज के परिदृश्य में अत्यंत महत्वपूर्ण है।उन्होंने सभी विद्वानों, वक्ताओं और प्रतिभागियों को उनके अमूल्य योगदान और ज्ञान के प्रभावी आदान-प्रदान के लिए धन्यवाद दिया। प्राचार्या ने आशा व्यक्त की कि संगोष्ठी से उत्पन्न हुए विचार शोध और नवाचार को नई दिशा देंगे और देश के सस्टेनेबल डेवलपमेंट लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने में सहायक होंगे।

