Surendra munot, Associate editor all india
Key Line Times
कोबा, गांधीनगर (गुजरात),जन-जन के मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में प्रतिदिन श्रद्धालु आध्यात्मिक प्रेरणा का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। सोमवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया।महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आत्मा पर कर्मों का कब्जा है और उस कब्जे से आत्मा को स्वतंत्र बनाने के लिए युद्ध की आवश्यकता है। अनादि काल से कर्मों ने आत्मा पर अपना कब्जा जमा रखा है। वे कब्जा ही नहीं करते, बल्कि आत्मा की शक्तियों को प्रतिहत कर आत्मा को जन्म-मरण करा रहे हैं, इनके माध्यम से ही आत्मा दुःखी बन जाती है। इसके लिए आवश्यक है कि अपनी आत्मा को कर्मों के कब्जे से मुक्त किया जाए। इस स्थिति को पाने के लिए युद्ध की आवश्यकता होती है। धर्म और अध्यात्म की साधना और आराधना एक प्रकार से कर्मों से आत्मा को मुक्त कराने की प्रक्रिया है। तात्त्विक भाषा में कहें तो आत्मा को कर्मों से मुक्त कराने के लिए संवर और निर्जरा की साधना अपेक्षित होती है।यह युद्ध बड़े रूप में केवल मनुष्य जीवन में ही हो सकता है। और अन्य किसी भी योनी मंे संवर और निर्जरा की साधना नहीं हो सकती। संवर की थोड़ी साधना तिर्यंच गति में भी हो सकती है, किन्तु उसे अपर्याप्त ही माना जाता है। आदमी को धार्मिक बातों का श्रवण होना मुश्किल होता है। अभी कुछ समय पहले ही पर्युषण पर्वाधिराज की आयोजना हुआ। इसमें धर्म की उत्कृट साधना चली। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ परंपरा में ज्ञानशाला की व्यवस्था है। श्रावण-भाद्रव का मास तो धर्म की साधना के लिए बहुत उपयोगी होता है।मनुष्य जीव अभी हमें उपलब्ध है। इस मानव जीवन में आदमी धर्म की आराधना और साधना का प्रयास करते रहना चाहिए। तेरापंथी श्रावक-श्राविकाओं के लिए सप्ताह में एक दिन सामायिक करने का प्रयास हो। कुछ त्याग-प्रत्याख्यान रखने का अभ्यास होना चाहिए। जीवन के व्यवहार मंे अहिंसा का पालन होता रहे। जीवन में जितना संभव हो सके, धर्म से युक्त कार्य करते रहना चाहिए। जहां तक संभव हो सके ध्यान, साधना, उपवास, तपस्या, त्याग, प्रत्याख्यान, स्वाध्याय आदि के माध्यम से धर्म की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। जहां तक हो सके आदमी को प्रसन्न रहना चाहिए। दिमाग में बहुत ज्यादा उलझन नहीं रखना चाहिए। मानव जीवन में धर्म के लिए समय लगाने का प्रयास करना चाहिए। सामायिक न हो सके तो कम से कम नवकार मंत्र का कुछ जप करने का प्रयास होना चाहिए। संवर और निर्जरा की साधना के लिए अपनी आत्मा की शुद्धि का प्रयास करना चाहिए।आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त नवरंगपुर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। मुनि मदनकुमारजी ने तपस्या के संदर्भ में जानकारी दी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में रतनगढ़-कोलकाता के स्व. बुद्धमल दूगड़ का परिवार आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आध्यात्मिक संबल हेतु उपस्थित था। आचार्यश्री ने उपस्थित परिजनों को पावन पाथेय के साथ आध्यात्मिक संबल प्रदान किया। साध्वीप्रमुखाजी व मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने भी दूगड़ परिवार को आध्यात्मिक संबल प्रदान किया। मुनि दिनेशकुमारजी, मुनि कुमारश्रमणजी, मुनि योगेशकुमारजी, मुनि कीर्तिकुमारजी, मुनि विश्रुतकुमारजी, मुनि ध्यानमूर्तिजी ने भी इस संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति दी।