सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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उम्मेदगढ़, साबरकांठा (गुजरात),जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान, शांतिदूत, भगवान महावीर के प्रतिनिधि अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में गुजरात के साबरकांठा जिले को अपनी चरणरज से पावन बना रहे हैं। गुजरातवासियों पर अपने आशीष की वर्षा करने वाले व अपने मंगल पाथेय से लाभान्वित करने वाले आचार्यश्री के प्रति लोगों की आस्था देखते ही बनती है। आचार्यश्री जहां भी पहुंचते हैं, उनकी सन्निधि में लोग उपस्थित होते हैं और प्राप्त सुअवसर का लाभ उठाते हैं।गुरुवार को प्रातःकाल सूर्योदय के कुछ समय बाद युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सुद्रासणा से मंगल विहार किया तो ग्रामवासियों ने उन्हें वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। गुजरात के साबरकांठा जिले में गतिमान आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर आगे बढ़े। गर्मी के मौसम में देश के विभिन्न हिस्सों में आए आंधी, तूफान और बरसात का कुछ असर इधर के मौसम पर दिखाई दे रहा था। आचार्यश्री लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर उम्मेदगढ़ में स्थित श्री जे.एम. पटेल विद्यालय में पधारे। लोगों ने आचार्यश्री का भावभरा अभिनंदन किया।शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि प्राणियों के साथ मैत्री का भाव रखने का प्रयास होना चाहिए। दुनिया में युद्ध भी चलता है, कहीं मारपीट, लड़ाई, झगड़ा, गाली-गलौच भी हो जाता है। आदमी के भीतर अनेक वृत्तियां होती हैं। आक्रोश भी एक वृत्ति होती है। जब तक कषाय सुसुप्त अवस्था में होता है तो कोई खतरा नहीं होता, किन्तु जब आवेश आ जाए तो कितना और किस स्तर का नुक्सान करेगा, इसका कोई अनुमान नहीं होता। जहां मैत्री की भावना है, वहां गुस्से का कोई स्थान नहीं होता है। जिसके प्रति प्रीति होती है, उसके प्रति गुस्सा भी आ सकता है। ज्यादा निकट रहने वाले पर भी ज्यादा गुस्सा आ सकता है, लेकिन जितना संभव हो सके, आदमी को अपने गुस्से को त्यागने का ही प्रयास करना चाहिए।आदमी अपने जीवन में ऐसा प्रयास करे कि सभी प्राणियों के प्रति मैत्री का भाव रख सके। छोटे-छोटे प्राणियों के दोस्ती करनी आवश्यक नहीं, बल्कि यह भाव हो जाए कि मैं किसी भी प्राणी की संकल्पपूर्वक हिंसा नहीं करूंगा। किसी प्राणी की हत्या नहीं करने का संकल्प करना मैत्री की न्यूनतम सीमा होती है। आदमी को जान-बूझकर किसी का अहित करने से बचने का प्रयास करना चाहिए।कोई दुश्मन है, उसको भी मित्र मान लेना कठिन कार्य होता है, किन्तु उसका अहित न करने का चिंतन भी मित्रता की बात होती है। स्वयं की अहिंसा स्वयं के लिए कल्याणकारी होती है। कहीं विरोध भी हो तो उसे विनोद मान लेना चाहिए। कोई कुछ कहे भी तो आदमी को अपने भीतर शांति रखने का प्रयास करना चाहिए। एक को गुस्सा आए तो दूसरे को शांत हो जाने का प्रयास करना चाहिए। अनावश्यक लड़ाई-झगड़े से बचने का प्रयास करना चाहिए।श्री जे.एम. पटेल हाईस्कूल के प्रमुख श्री हितेन्द्रभाई पटेल व प्रधानाचार्य श्री भानू प्रसाद पटेल ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।