सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट
Key Line Times
सुद्रासणा, साबरकांठा (गुजरात), गुजरात की विस्तृत करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी निरंतर नवीन, गांव, कस्बे और जिले को अपने चरणों से पावन बना रहे हैं। बुधवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मेहसाणा जिले के उंढाई से मंगल प्रस्थान किया। नित्य की भांति अगले गंतव्य की ओर गतिमान हुए। विहार के दौरान आचार्यश्री ने मेहसाणा जिले की सीमा को अतिक्रांत कर गुजरात के साबरकांठा जिले में मंगल प्रवेश किया। जन-जन को मंगल आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर सुद्रासणा में स्थित बी.एच. गरड़ी हाईस्कूल में पधारे। उपस्थित लोगों ने शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी का भावभीना अभिनंदन किया।युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने हाईस्कूल परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन में उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आगम में कहा कहा गया है कि किए हुए कर्मों से जीव को छुटकारा नहीं मिलता है। उसे अपने कर्म भोगने ही होते हैं अथवा निर्जरा के द्वारा कर्मों को काट लिया गया हो तो कर्म समाप्त हो सकते हैं। आदमी जैसा कर्म करता है, वैसा फल भी पाता है। कर्मवाद का प्राण तत्त्व है कि जैसी करनी, वैसी भरनी। जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल भी प्राप्त होगा। जैनिज्म में आठ कर्मों की बात बताई गई है। इनका वर्णन भी प्राप्त हो सकता है। मानव जीवन आठ कर्मों के जाल से फंसा हुआ है। सभी प्राणी इस कर्म के जाल में फंसे हुए हैं। इन आठ कर्मों में सबसे मुख्य मोहनीय कर्म होता है। पाप कर्मों का बंध कराने में सबसे बड़ा योगदान मोहनीय कर्म का ही होता है।इस जाल से मुक्त होना ही मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। कर्मों के जाल से मुक्त होने के लिए आदमी को बुरे कर्मों से यथासंभव बचने का प्रयास करना चाहिए। अपने जीवन में किसी का भी बुरा करने का प्रयास तो दूर, विचार भी नहीं करना चाहिए। पाप के आचरणों से जितना संभव हो सके, बचने का प्रयास होना चाहिए। अच्छे आचरणों का पालन करने का प्रयास करना चाहिए।आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त हाईस्कूल के प्रमुख श्री लिलाचंद सेठ, गांव के सरपंच श्री कांति ठाकुर ने पूज्यप्रवर के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी व मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री महेशभाई ने अपनी प्रस्तुति दी।