सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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मोरबी (गुजरात) ,जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी गुजरात के एक नए जिले मोरबी की धरा को पावन बना रहे हैं। डायमण्ड व सिल्क नगरी सूरत में चतुर्मास के उपरान्त आचार्यश्री ने सूरत, अहमदाबाद, सुरेन्द्रनगर, राजकोट जिले को पावन बनाने के उपरान्त अब मोरबी जिले को आध्यात्मिकता से भावित बना रहे हैं। सोमवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में टंकारा के बाहरी भाग में स्थित श्री मांगीलाल पी. दोसी विद्यालय से गतिमान हुए। जन-जन को मंगल आशीष देते हुए आचार्यश्री अब कच्छ-भुज की ओर गतिमान हैं। मार्ग में अनेक स्थानों पर ग्रामीण लोगों को आचार्यश्री के दर्शन का अवसर प्राप्त हुआ। लगभग दस किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री वीरपर में स्थित श्री चंपापुरी तीर्थ में पधारे। तीर्थ से जुड़े हुए लोगों आदि ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया।शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने श्री चंपापुरी तीर्थ परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि नौ तत्त्वों में पांचवा तत्त्व आश्रव है। जितना भी कर्म ग्रहण होता है, पुण्य अथवा पाप के रूप में, आत्मा के कर्म लगता है, उसमें आश्रव की उत्तरदायिता संपूर्णतया होती है। पुण्य कर्मों का ग्रहण भी होता है और पाप कर्मों का ग्रहण भी होता है। जो कर्म बंधते हैं, उसका यथाविधान फल भी प्राणी को मिलता है। पुण्य का फल भी प्राप्त होता है और पाप का फल भी मिलता है। पीछले किस कर्मों का फल कब मिलता है, यह कहा नहीं जा सकता। पूर्वकृत पुण्य कर्म आदमी की रक्षा करते हैं। कर्मवाद का सिद्धांत है कि ‘जैसी करनी, वैसी भरनी।’ आदमी जैसा कर्म करेगा, उसे वैसा फल भी प्राप्त होगा। इसलिए आदमी को पाप कर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए।हिंसा चोरी, झूठ, हिंसा, हत्या आदि-आदि अशुभ कार्य हैं, उनसे ज्यादा से ज्यादा बचने का प्रयास करना चाहिए और आत्मशुद्धि के अच्छा कर्म करने का प्रयास करना चाहिए। किए हुए कर्मों को वेदने अथवा तपस्या के माध्यम से निर्जरा करने से कर्म कटते हैं। पुण्य कर्म का संचय होता है और उसका प्रभाव होता है तो एक सामान्य परिवार का व्यक्ति देश का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी बन सकता है। इससे आदमी पाप कर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में धर्म, अध्यात्म आदि के सत्पथ पर चलने का प्रयास करे। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने कहा कि आज भगवान वासुपूज्य से जुड़े हुए स्थान में आए हैं। वे हमारे बारहवें तीर्थंकर हुए हैं। आचार्यश्री ने भगवान वासुपूज्य की अभ्यर्थना में एक गीत का आंशिक संगान भी किया। तीर्थ की ट्रस्टी श्रीमती दीपाबेन शाह ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।