सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
Key Line Times
वैदिक विलेज शिकारपुर,आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में तथा प्रेक्षा फाउन्डेशन के तत्वावधान में अष्ट दिवसीय प्रेक्षाध्यान शिविर का वैदिक विलेज में शुभारंभ हुआ। जिसमें करीबन 60 शिवरार्थी है। इस अवसर पर मुनिश्री जिनेश कुमार जी ने कहा- जीवन को मंगलमय, आनंदमय, और सुखमय बनाने के लिए व्यक्ति को धर्माराधना करनी चाहिए’ विश्व में धर्म की महिमा अपरंपार है। जिन जिन उपायों से आत्मा की शुद्धि होती हो उसका नाम धर्म है। धर्म दो प्रकार का है संवर और निर्जरा। निर्जरा का एक भेद है-ध्यान ध्यान आभ्यन्तर तप है, मन की तन्मयता ध्यान है, मन का मौन ध्यान है, अनंत अनुभवों व चेष्टाओं का विराम ध्यान है निर्विचारता, निर्विकल्पता का नाम ध्यान है। ध्यान एक दर्पण है जिसमें अन्तर का रूप निहारा जा सकता है। ध्यान से अभूतपूर्व निर्जरा होता है, कर्मो का क्षय होता है, आनंद की अनुभूति व चैतन्य का जागरण होता है ध्यान स्वभाव व व्यवहार परिवर्तन की साधना है। ध्यान में अनुशासन की आवश्यकता रहती है। अनुशासन का विकास संयम से होता है शिवरार्थी अनुशासन में रहते हुए ध्यान की गहराई में डुबकी लगाकर अपने जीवन को संवारे। मुनि श्री ने आगे कहा – संसार में अनेक ध्यान पद्धतियों प्रचलीत है। उनमें एक महत्वपूर्ण पद्धति है प्रेक्षाध्यान प्रेक्षाध्यान का प्रारंभ गुरुदेव तुलसी की सान्निधि में आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी द्वारा किया गया। इस ध्यान साधना पद्धति से तनावग्रस्त लोगों को नई ऊर्जा मिल रही है। इस अवसर पर मुम्बई से समागत. प्रेक्षा प्रशिक्षिका मीना साभद्रा व प्रेक्षा प्रशिक्षिका मंजु सिपाणी ने विचार रखे कार्यक्रम का शुभारंभ मुनिश्री के नवकार मंत्र से हुआ। कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री कुणाल कुमार जी ने किया।