सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
Key Line Times
कुचियादर, राजकोट (गुजरात), जनमानस के मानस को आध्यात्मिकता से अभिसिंचित करने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, शांतिदूत, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को सौराष्ट्र की धरा पर महाश्रम करते हुए एक दिन में दो विहार कर लगभग सोलह किलोमीटर की पदयात्रा की। रविवार को बोरियानस से आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल विहार किया। विहार के दौरान आचार्यश्री सुरेन्द्रनगर जिले की सीमा को अतिक्रांत कर राजकोट जिले की सीमा में मंगल प्रवेश किया। राजकोट जिला मुख्यालय में आचार्यश्री का त्रिदिवसीय प्रवास भी निर्धारित है और इस दौरान राजकोट में वर्धमान महोत्सव भी समायोजित होना है। इस महनीय आयोजन से दो दिन पूर्व ही आचार्यश्री ने राजकोट जिले की सीमा में पावन प्रवेश किया तो राजकोट व आसपास के श्रद्धालुओं का हर्षोल्लास मानों अपने चरम पर पहुंच गया। विहार के प्रथम चरण में आचार्यश्री ने नौ किलोमीटर की यात्रा के उपरान्त गुड़ला गांव में स्थित एक चाय प्वाइंट पर अल्पकालिक प्रवास किया तदुपरान्त विहार का दूसरा चरण प्रारम्भ किया। इस चरण में आचार्यश्री ने लगभग सात किलोमीटर की पदयात्रा कर कुचियादर में स्थित स्वामी विवेकानंद इंस्टिट्यूट के परिसर में पधारे। इंस्टिट्यूट परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी कभी घमण्ड करता है, कभी क्रोध में आ जाता है तो कभी और कोई चित्त वृत्ति से प्रभावित हो जाता है। एक सूक्त में कहा गया है कि अभिमान मदिरापान के समान है। इसके माध्यम से यह प्रेरणा दी गई कि आदमी को बहुत ज्यादा घमण्ड नहीं करना चाहिए। घमण्ड अथवा अभिमान से बचने का प्रयास करना चाहिए। घमण्ड से अगर भीतर में और व्यवहार में उद्दण्डता आ जाए तो वह दुःख प्रदान करने वाला मार्ग हो जाता है। जो भी आत्मा अविनीत हो जाती है, वह दुःखी और सुविनीत आत्मा सुखी रहते हैं। पशु भी अविनीत हो सकते हैं। जैसे कोई घोड़ा है और वह चलता नहीं है तो उसे उसका मालिक मारता है, पीटता है और अगर यदि चलता है तो भला उसका मालिक उसे क्यों मारेगा। बैल भी यदि ढंग से खेत में काम करता है तो भला उसे मालिक क्यों मारेगा और बल्कि प्रसन्न होगा। कोई नौकर है, वह विनीत है, निष्ठा से काम करने वाला होता है तो मालिक भी उससे प्रसन्न रहता है, उसे कभी पारितोषिक भी दे सकता है और यदि वह अविनीत हो जाए, काम समय पर नहीं करे तो मालिक उसे काम से निकाल भी सकता और प्रताड़ना भी दे सकता है। इसलिए आदमी को अभिमानी, घमण्डी नहीं, बल्कि सुविनीत बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने जीवन में सुविनीत बनने का प्रयास करे। जो आदमी गुस्सैल होता है, वाचाल होता है, अनावश्यक बोलता है, उसे तो कोई भी अपने यहां से निकाल सकता है और जो सुविनीत, विनम्रता रखने वाला है, उसे आदर और सम्मान भी प्राप्त हो सकता है। कुछ ज्ञान हो जाए तो आदमी उसका घमण्ड कर ले तो वह बुरी बात हो सकती है। सामान्य आदमी के जीवन में अज्ञान का अंधकार होता भी है। आज स्वामी विवेकानंद से जुड़े विद्या संस्थान में आना हुआ है। विद्या संस्थान में विद्यार्थी पढ़ते हैं, ज्ञानी भी बनते हैं। विद्यार्थियों ने ज्ञान के साथ विनय भी आए तो अच्छी बात हो सकती है। विद्या विनय से शोभित होती है। विद्या और साथ विनय हो तो वह विद्या विभूषित हो सकती है। यदि विनय है तो जीवन में आनंद की प्राप्ति भी हो सकती है। विनय के साथ विवेक भी जाए तो और भी कितनी अच्छी बात हो सकती है। इन दोनों के होने पर मानों आनंद को आना ही होता है। इससे मानों विनय, विवेक और आनंद तीनों का संगम हो जाता है। विद्यार्थियों के जीवन में ये संस्कार भी पुष्ट हो जाएं, जीवन आनंदित हो सकता है। जीवन में ज्ञान का विकास होने पर मौन, शक्ति होने पर भी क्षमाशीलता हो और त्याग करने वाला होने पर भी नाम, ख्याति की इच्छा न हो। इसलिए आदमी को घमण्ड से बचने का प्रयास करना चाहिए। स्वामी विवेकानंद इंस्टिट्यूट के चेयरमेन श्री मोहितजी और प्रिंसिपल श्री नमिराज जैन ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी।