*
मीठापुर, अहमदाबाद (गुजरात) ,जन-जन के मानस में मानवीय मूल्यों को स्थापित करते, जन-जन को सन्मार्ग दिखाते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी गुजरात राज्य की विस्तृत यात्रा कर रहे हैं। वर्ष 2024 का चतुर्मास सूरत शहर में करने के उपरान्त आचार्यश्री कच्छ के क्षेत्र में तेरापंथ धर्मसंघ के सबसे बड़े महामहोत्सव मर्यादा महोत्सव मनाएंगे। इसके पूर्व आचार्यश्री राजकोट आदि क्षेत्रों की गतिमान हैं। गुजरात के गांव-गांव, नगर-नगर और डगर-डगर को पावन बनाते हुए आचार्यश्री गुजरातवासियों को अपनी अमृतवाणी से मंगल अभिसिंचन प्रदान कर रहे हैं। गुरुवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बगोदरा से गतिमान हुए। ग्रामीण जनता को अपने आशीष से आच्छादित करते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर बढ़ चले। उत्तर भारत में पड़ने वाली कड़ाके की ठंड का असर गुजरात के इन क्षेत्रों में भी देखने को मिल रहा है, किन्तु मौसम की अनुकूलता और प्रतिकूलता में समभाव रहने वाले अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री निरंतर गतिमान हैं। लगभग दस किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी मीठापुर गांव में स्थित प्राथमिकशाला में पधारे। प्राथमिकशाला से संबंधित लोगों आदि ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत-अभिनंदन किया। प्राथमिकशाला परिसर में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं- महात्मा, सदात्मा व दुरात्मा। साधु, संन्यासी, संत लोग महात्मा की श्रेणी में लिए जाते हैं। वे पूजनीय और वंदनीय होते हैं। वे महान नियमों का पालन करने वाले होते हैं। गृहस्थों में कुछ सदात्मा अर्थात् सज्जन लोग होते हैं। वे घर-परिवार में रहते हैं। वे सदाचारी, परोपकार करने वाले होते हैं, वो सदात्मा होते हैं। तीसरी श्रेणी है दुरात्मा की। दुरात्मा वे मनुष्य होते हैं जो दूसरों की हत्या कर देते हैं, डकैती करते हैं, चोरी करते हैं, झूठ बोलते हैं, कपट करते हैं, नशे आदि के आदती होते हैं, वे दुरात्मा होते हैं। कब शब्दों में कहा जाए तो जिनके व्यवहार व चिंतन में अच्छाई से सदात्मा और जिनके व्यवहार और चिंतन में बुराई होती है, वे दुरात्मा होते हैं।महात्मा तो सभी बन जाएं, सभी साधुता स्वीकार कर लें, यह कठिन हो सकता है, किन्तु शास्त्र में कहा गया है कि आदमी महात्मा न भी बन सके तो कम से कम सदात्मा तो बनने का प्रयास करना चाहिए। उसे दुरात्मा होने से बचने का प्रयास करना चाहिए। जो आदमी खुद की आत्मा का नुक्सान करने वाला होता है, उसे भला दूसरों का गला उतारने में कितना समय लगता होगा। स्वयं की दुरात्मा तो आदमी को भव-भव नुक्सान पहुंचाने वाली होती है। यों कहा जा सकता है कि प्रत्येक आदमी अपना बुरा भी स्वयं करने वाला होता है और अपना भला करने वाला भी स्वयं होता है। इसलिए आदमी को स्वयं का भला भी करने का प्रयास करना चाहिए और दूसरों का भी भला करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में ज्ञान के साथ-साथ ध्यान देने का भी प्रयास करना चाहिए। बताया गया है कि जो अभिवादनशील, विनयवान होता है, वृद्धों और गुरुजनों की सेवा करने वाला होता है, उसकी आयु, विद्या, यश औल बल में निरंतर वृद्धि होती है। कितने-कितने शिक्षकों के द्वारा विद्यार्थियों में ज्ञान और शिक्षा के सद्संस्कार दिए जाते हैं तो विद्यार्थी का जीवन भी अच्छा हो सकता है। विद्यार्थी भी अपने जीवन में सद्गुणों का विकास कर सदात्मा बनने का प्रयास और दुरात्मा बनने से बचने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने बच्चों से प्रवचन से संदर्भित प्रश्न किए तो बच्चों ने अपने बालसुलभ उत्तर प्रदान किए। आचार्यश्री ने बच्चों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। विद्यालय की ओर से श्री तुषार भाई राठौड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।