🌸 *अध्यात्म का आधारभूत सिद्धांत है आत्मा और शरीर की भिन्नता : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण* 🌸*-बारह किलोमीटर का विहार कर सामोडे में पधारे शांतिदूत**-कन्या विद्यालय में पावन प्रवास, सामोडेवासियों ने किया भावभीना स्वागत**-सामोडेवासियों ने दी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति**01.07.2024, सोमवार, सामोडे, धुळे (महाराष्ट्र) :*दो प्रकार की विचारधाराएं बताई गई हैं- तत् जीव, तत् शरीर और दूसरी अन्य जीव अन्य शरीर विचारधारा। तत् जीव, तत् शरीर विचारधारा नास्तिक विचारधारा है। जहां शरीर और आत्मा को अलग-अलग नहीं माना गया है। आत्मा और शरीर के भिन्नता की विचारधारा आस्तिकवाद की विचारधारा है। अध्यात्म का जगत इस बात पर टिका हुआ है कि आत्मा अलग है और शरीर अलग है। आत्मा शाश्वत, अविनाशी और अमर है, शरीर नश्वर है। इसके आधार पर ही अध्यात्मवाद टिका हुआ है। इसी के आधार पर अध्यात्म की साधना भी होती है। दिखाई देने वाले इस शरीर के भीतर भी दो शरीर और बताए गए हैं- तैजस शरीर और कार्मण शरीर। तैजस शरीर सूक्ष्म बताया गया है और कार्मण शरीर सूक्ष्मतर होता है। कार्मण शरीर कारण शरीर है। आदमी के सुख-दुःख का कारण कार्मण शरीर होता है। बहुत कुछ इस कार्मण शरीर से ही होता है। इस जीव को चलाने वाला भी कार्मण शरीर होता है। किस जीव का जन्म कहां आदि सारा अधिकार कार्मण शरीर के पास होता है। दिखाई देने वाला यह शरीर स्थूल शरीर है।मनुष्य के इस औदारिक शरीर से उदारता रहती है। इस शरीर के द्वारा ही जीव साधना करके मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। किसी के भी मोक्ष जाने के लिए मनुष्य का जन्म और औदारिक शरीर को छोड़ने के बाद ही प्राप्त हो सकता है। मनुष्य जन्म से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। आत्मा और शरीर अलग-अलग है, यह अध्यात्म का आधारभूत सिद्धांत है। आदमी यह सोचे कि आत्मा शाश्वत है, उसके लिए क्या किया जा रहा है और अशाश्वत शरीर के लिए कितना किया जा रहा है? आदमी को अपनी आत्मा के कल्याण के लिए, हित के लिए आदमी को धर्मोपासना करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को धर्म का संग्रह करने का प्रयास करना चाहिए, जो आत्मा के लिए कल्याणकारी बन सकता है। आदमी अपने जीवन में धर्म की साधना करे। गृहस्थ भी अपने जीवन में धर्म की साधना करे। कभी इस गृहस्थ शरीर से भी मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।उक्त पावन प्रेरणा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सामोडे में स्थित कन्या विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित जनता को प्रदान कीं। लगभग बीस वर्षों के बाद अपने आराध्य को अपने आंगन पाकर और उनकी मंगलवाणी का श्रवण कर सामोडे की जनता हर्षविभोर थी।इसके पूर्व कारखाना फाटा- साक्री से युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवलसेना के साथ मंगल प्रस्थान किया। यात्रापथ में परिवर्तन के उपरान्त आचार्यश्री सामोडे की ओर पधार रहे थे। जहां कभी आचार्यश्री युवाचार्य के रूप में परिभ्रमण कर चुके हैं। जनता भी ऐसे अवसर को प्राप्त कर आह्लादित थी। आसमान में छाए सघन बादल सूर्य को आच्छादित किए हुए था तथा यदा-कदा होने वाली वर्षा से मौसम शीतलतायुक्त बना हुआ था। ऐसे अनुकूल वातावरण में लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री सामोडे में स्थित कन्या विद्यालय में पधारे। जहां विद्यार्थियों व स्कूल प्रबन्धन, प्रशासन से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।विद्यालय परिसर में आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखाजी ने सामोडेवासियों को उद्बोधित किया। विद्यालय की मुख्याधापिका श्रीमती मनीषा शिन्दे, ब्रह्माकुमारी सुरेखा दीदी, श्रीमती ज्योति गोगड़ व श्री दिनेश गोगड़ ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय महिला मण्डल, श्री नथमल गोगड़, व गोगड़ परिवार की बेटियां ने अपने-अपने गीत का संगान किया।