🌸 *तेरापंथ धर्मसंघ के अद्वितीय व पुरुषार्थी आचार्य थे गुरुदेव तुलसी : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण* 🌸*-अमलनेर से 12 कि.मी. का विहार कर महातपस्वी पहुंचे जानवे गांव**-आचार्यश्री ने अपने सुगुरु के 28वें महाप्रयाण दिवस पर अर्पित की विनयांजलि**24.06.2024, सोमवार, जानवे, जलगांव (महाराष्ट्र) :*एक आदमी संग्राम में दस लाख योद्धाओं को जीत लेता है और एक आदमी केवल अपनी आत्मा को जीतता है तो उनमें बड़ा विजेता अपनी आत्मा को जीतने वाला होता है। अपनी आत्मा को जीतने वाले की परम जय होती है। साधु बनना एक प्रकार से अध्यात्म समरांगण में प्रवृष्ट हो जाना होता है। इससे आत्म विजय वाले योद्धा बनने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाता है। जीवन में सम्यक् चारित्र का आ जाना बहुत बड़ी उपलब्धि होती है।आज आषाढ़ कृष्णा तृतीया है। परम पूजनीय आचार्यश्री तुलसी का 28वां महाप्रयाण दिवस अथवा 27वीं वार्षिकी पुण्यतिथि है। आज के 27 वर्ष पूर्व गंगाशहर में अपने जीवन का अंतिम श्वास लिया था। 83वें वर्ष में उनका महाप्रयाण हुआ था। हमारे धर्मसंघ में सबसे कम उम्र में आचार्य बनने वाले प्रथम आचार्य थे। आचार्यश्री तुलसी करीब 22 वर्ष की अवस्था में धर्मसंघ के अधिनेता थे। हमारे धर्मसंघ में सबसे अधिक आचार्यकाल उनका ही रहा। लगभग 57 वर्ष आचार्यकाल रहा। वे हमारे धर्मसंघ के कीर्तिमान आचार्य थे। उन्होंने सुदूर क्षेत्रों की यात्रा करने वाले भी हमारे धर्मसंघ के प्रथम आचार्य थे। दक्षिण भारत की यात्रा करने वाले प्रथम आचार्य थे। कोलकाता पधारने वाले भी धर्मसंघ के प्रथम आचार्य थे। उनके आचार्यकाल में नए-नए उन्मेष दिए थे। उन्होंने अपने युवाचार्य के रहते हुए एक और साधु को ‘महाश्रमण’ के स्थान पर बिठा दिया और मुझे युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी का अंतरंग सहयोगी भी घोषित कर दिया। ऐसा निर्णय भी पूर्ववर्ती आचार्यों ने नहीं किया था।उनका व्यक्तित्व आकर्षक था। आचार्यश्री तुलसी का अपना सौंदर्य भी था। उन्होंने अणुव्रत आन्दोलन का प्रारम्भ किया। प्रेक्षाध्यान भी सामने आया, जीवन विज्ञान सामने आया। समण श्रेणी की स्थापना तेरापंथ धर्मसंघ में एक अभूतपूर्व कदम था। तेरापंथ धर्मसंघ में पहली बार अपने जीवनकाल में ही आचार्य पद को छोड़कर अपने उत्तराधिकारी को आचार्य बना दिया। यह तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास का अद्वितीय प्रसंग था। वे पुरुषार्थी आचार्य थे। यात्राएं करना, प्रवचन करना, लोगों के साथ इतनी बातचीत मानों वे जनता के ही आचार्य थे। वे राजनीतिक लोगों के सम्पर्क में भी रहे थे। उनके शासनकाल में ही पारमार्थिक शिक्षण संस्था का प्रारम्भ हुआ, जो आज मुमुक्षुओं का आश्रय स्थल बना हुआ है। धर्मसंघ के महान व्यक्तित्व का गंगाशहर में महाप्रयाण हो गया था। आज की तिथि गुरुदेवश्री तुलसी से जुड़ा हुआ है। गंगाशहर में नैतिकता का शक्तिपीठ उनका समाधिस्थल है। उनके जीवन से हम सभी को प्रेरणाएं मिलती रहें, हम सभी खूब धार्मिक-आध्यात्मिक विकास करते रहें। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने तेरापंथ धर्मसंघ के नवमाधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी के महाप्रयाण दिवस पर अपनी विनम्र विनयांजलि समर्पित की। उक्त कार्यक्रम जानवे गांव में स्थित जिला परिषद प्राथमिक केन्द्रशाला आयोजित हो रहा था।आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। इसके पूर्व सोमवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमलनेर से मंगल प्रस्थान किया। रात्रि में हुई वर्षा और सुबह में आसमान में छाए बादलों के कारण वातावरण में शीतलता व्याप्त थी, किन्तु दिन चढ़ने के साथ ही उमस बढ़ती गई। इस कारण शरीर पसीने से तरबतर बन रहा था। जन-जन को आशीष प्रदान करते हुए लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी जानवे स्थित जिला परिषद प्राथमिक केन्द्रशाला में पधारे। जहां विद्यालय के शिक्षकों आदि ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया।