🌸 *जलगांव जिले को पावन बना धुळे जिले में मानवता के मसीहा महाश्रमण का मंगल प्रवेश* 🌸
*-12 कि.मी. का विहार कर फागणे में स्थित सी.एस. बाफना स्कूल में पधारे शांतिदूत*
*-श्रद्धालु जनता ने सुगुरु का किया भावभीना अभिनंदन*
*-सदात्मा बनने का प्रयास करे मानव : मानवता के मसीहा महाश्रमण*
*-शहादा व फागणे के श्रद्धालुओं ने दी भावनाओं को अभिव्यक्ति*
*25.06.2024, मंगलवार, फागणे, धुळे (महाराष्ट्र) :*
महाराष्ट्र राज्य की विस्तारित यात्रा करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग मंगलवार को जलगांव जिले से महाराष्ट्र एक नये जिले धुळे में पावन प्रवेश किया। कई दिनों से पूज्यचरणों से पावन बन रहा जलगांव जिले की सीमा कृतज्ञभाव अर्पित करते हुए पीछे छुटी, खान्देश के धुळे जिले में ज्योतिचरण का भावभीना अभिनंदन किया।
महाराष्ट्र राज्य में एक वर्ष से अधिक समय से यात्रा व प्रवास करते हुए राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी मंगलवार को जलगांव जिले के चोपडाई कोंडावल में स्थित सत्गुरु पब्लिक स्कूल से गतिमान हुए। विहार के दौरान आचार्यश्री ने जलगांव जिले की सीमा को अतिक्रान्त कर महाराष्ट्र के धुळे जिले में प्रविष्ट हुए। आज आचार्यश्री के अभिनंदन में आसपास के उन क्षेत्रों के लोग भी पहुंचे हुए थे, जो इस बार की यात्रा पथ से अछुते रहे हैं। लोगों ने भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। आचार्यश्री 12 किलोमीटर का विहार कर धुळे जिले के फागणे गांव में स्थित सी.एस. बाफना हाईस्कूल एवं कनिष्ठ महाविद्यालय परिसर में पधारे।
उपस्थित श्रद्धालुओं को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में अनंत आत्माएं होती हैं। इन अनंत आत्माओं को चार भागों में बांटा गया हैं- परमात्मा, महात्मा, सदात्मा और दुरात्मा। सिद्धत्व को प्राप्त कर चुकी आत्माएं परमात्मा कहलाती हैं। दुनिया में संत-महात्मा भी बहुत हैं। महात्मा के मन, वचन और काया में एकरूपता होती है। दूसरों को कल्याण का मार्ग दिखाने वाले, सभी जीवों पर दया करने वाले महात्मा होते हैं।
वह आत्माएं जो महात्मा तो नहीं बन पाती हैं, किन्तु उनके भी जीवन में संयम, निष्ठा, अनुशासन व सेवा की भावना होती हैं, वैसी आत्माएं सदात्मा होती हैं। दूसरों का अहित करने वाली, हिंसा आदि में लिप्त रहने वाली, झूठ, चोरी, बेईमानी के मार्ग पर चलने वाली आत्माएं दुरात्माएं कहलाती हैं। कहा जाता है कि दुर्जन का ज्ञान समस्या को जन्म देने वाला होता है तो सज्जन का ज्ञान समस्या का समाधायक होता है। दुर्जन के पास अत्यधिक धन हो जाए तो वह अहंकार का कारण बनता है, दूसरी ओर सज्जन का धन दान व दूसरों के कल्याण में लगने वाला होता है। दुर्जन के पास शक्ति होती है तो किसी को कष्ट देने, सताने व हिंसा में लगाता है, किन्तु सज्जन की शक्ति सेवा में, किसी का सहयोग करने में उपयोग होती है।
इन आत्माओं का वर्णन करते हुए मानव के लिए सुन्दर प्रेरणा प्रदान की गई है कि यदि आदमी परमात्मा, महात्मा नहीं बन सकते तो अपनी आत्मा को दुरात्मा बनने से बचाते हुए सदात्मा बनने का प्रयास करना चाहिए। दुर्जनों की संगति से बचने का प्रयास करना चाहिए तथा यथावसर सज्जनों की संगति करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के मन में दया, करुणा की भावना हो, सेवा के संस्कार हों तो आदमी सदात्मा बन सकता है। आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज यहां आना हुआ है। यहां के लोगों में व विद्यार्थियों में अच्छे संस्कारों का विकास होता रहे।
आचार्यश्री के स्वागत में श्री सतीश ओस्तवाल व विद्यालय के चेयरमेन श्री मधुकरराव पाटील ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय बहू मण्डल ने गीत का संगान किया। शहादा तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री कैलाश संचेती, खान्देश के आंचलिक प्रभारी श्री ऋषभ गेलड़ा ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। शहादा तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी विविध प्रस्तुति दी व आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यश्री ने शहादावासियों को भी मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।