🌸 *कर्त्तव्य के प्रति रहें जागरूक : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण* 🌸*-13 कि.मी. का विहार कर पिंप्री खुर्द में पधारे शांतिदूत**-ज्योतिचरण के पदार्पण से पावन हुआ आदर्श बालक विद्या मंदिर**20.06.2024, गुरुवार, पिंप्री खुर्द, जलगांव (महाराष्ट्र) :*महाराष्ट्र के खान्देश को अपने आध्यात्मिक आलोक से आलोकित कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता अपनी धवल सेना के साथ गुरुवार को प्रातः पालधी से गतिमान हुए। मार्ग के दोनों ओर खेतों में किसान फसलों की तैयारी में जुटे हुए नजर आ रहे थे। आसमान में बादलों और सूर्य के बीच संघर्ष भी चल रहा था। सूर्य की तीव्र किरणें बादलों को छिन्न-भिन्न कर प्रखरता के साथ धरती को तप्त बना रही थीं। प्राकृतिक अनुकूलता-प्रतिकूलता में भी निस्पृह रहने वाले शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी निरंतर गतिमान थे। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पिंप्री खुर्द में स्थित वेदमाता गायत्री बहुद्देशीय संस्था के आदर्श बालक विद्या मंदिर व आदर्श प्राथमिक माध्यमिक विद्यालय में पधारे।विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि अपने जीवन में साधु यह अनुभव करे कि मैं श्रमण हूं, मैं साधु हूं, इसलिए मेरी प्रत्येक प्रवृत्ति में साधुता झलके। साधु के चलने में सावधानी हो। साधु की गति मंद होनी चाहिए, इससे उसकी ईर्या समिति की पालना अच्छी हो सकती है। साधु का उठना, बैठना, सोना, खाना, सब में साधुता दिखाई दे। साधु यह प्रयास करे कि उसकी साधुता सुरक्षित रहे।आदमी के जीवन में कर्त्तव्य बोध का बहुत महत्त्व होता है। इसी प्रकार साधु को भी कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य को जानकर अपने कर्त्तव्यों का सम्यक् रूप में पालन करने का प्रयास करना चाहिए। कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य सबका एक समान नहीं होता। जो लोग अपने कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य को नहीं जानते, उनका अनिष्ट भी हो सकता है। इसलिए आदमी को भी अपने कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। साधु का प्रथम कर्त्तव्य होता है कि वह अपनी साधुता की रक्षा करे। इसके लिए उसे विशेष जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। साधु का दूसरा कर्त्तव्य सेवा का होता है।इसी प्रकार श्रावक, वकील, शिक्षक, गृहस्थ, चिकित्सक, सरकार आदि-आदि सबका अपना-अपना कर्त्तव्य होता है। सरकार व न्यायपालिका द्वारा सज्जनों की रक्षा, दुर्जनों को दण्डित करने और उन पर शासन करने का कर्त्तव्य होता है। प्रजा की सेवा व सुरक्षा का कर्त्तव्य राजा का होता है। इसी प्रकार गृहस्थ को भी अपने कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। जो आदमी अपने कर्त्तव्यों का पालन नहीं करता, उसकी कर्त्तव्य च्युति हो सकती है। इसलिए आदमी को सदैव अपने कर्त्तव्य के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए।आचार्यश्री के आगमन से हर्षित विद्या मंदिर के ऑनर श्री प्रमोद चौधरी तथा वैद्य किशोर सोलंकी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।