अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जलगांव में बहाई ज्ञान की गंगाजलगांव प्रवास के दूसरे दिन आचार्यश्री ने श्रवण से कल्याण पथ अग्रसर होने की दी पावन प्रेरणा**-संसारपक्ष में जलगांव से संबद्ध मुनिद्वय ने अर्पित की विनयांजलि**-श्रद्धालुओं ने भी अपनी भावनाओं की दी अभिव्यक्ति**-जलगांव एसपी व पूर्व महापौर ने भी आचार्यश्री के दर्शन कर प्राप्त किया आशीर्वाद**18.06.2024, मंगलवार, जलगांव (महाराष्ट्र) :*जलगांव प्रवास का दूसरा दिन। मंगलवार को सूर्योदय के पूर्व से ही जलगांववासी जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में उपस्थित हो गए थे। प्रातःकाल की अर्हत् वंदना, बृहद् मंगलपाठ आदि का भी श्रद्धालुओं ने लाभ उठाया। निर्धारित समयानुसार नूतन मराठा महाविद्यालय परिसर में बने मर्यादा समवसरण में जलगांव और उसके आसपास के क्षेत्रों के सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु राष्ट्रसंत की मंगलवाणी का श्रवण करने के उपस्थित हो चुके थे। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ दूसरे दिवस के कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ।कार्यक्रम में उपस्थित जनता को साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने संबोधित किया। तदुपरान्त मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि पंचेन्द्रिय प्राणियों में हम सभी मनुष्य है। पंचेन्द्रिय होने की कसौटी होती है कि जिसके पास सुनने के लिए कान उपलब्ध होता है, वह पंचेन्द्रिय प्राणी होता है। श्रवण की क्षमता होने पर ही कोई प्राणी पंचेन्द्रिय कहला सकता है। कान से मानवों के पास हैं और उससे सुनते हैं। शास्त्र में बताया गया कि सुनने से लाभ भी होता है। सुनकर आदमी कल्याण को जान लेता है और सुनकर पाप को भी जान लेता है। कल्याण और पाप दोनों को सुनकर जाना जा सकता है। सुनने के बाद जो त्याज्य है, गलत है, उसे छोड़ देना और जो अच्छा हो, श्रेय हो और कल्याणकारी हो उसे स्वीकार कर लेने से सुनने की सार्थकता सिद्ध हो सकती है।जिस प्रकार आदमी डॉक्टर को दिखा लेता है, जानकारी ले लेता है, दवा भी लेता है और यदि उस अनुसार दवा न खाए तो उसकी बीमारी भला कैसे ठीक हो सकती है। उसी प्रकार धर्मगुरु, संतों आदि से जीवनोपयोगी और कल्याणकारी बातें जानने के बाद भी आदमी उस अनुरूप कार्य नहीं करता, व्यवहार नहीं करता है तो भला उसका कल्याण कैसे हो सकता है? इसलिए आदमी को धर्मगुरुओं द्वारा बताए गए अच्छे रास्ते पर चलने का प्रयास करे तो उसका कल्याण हो सकता है।सुनने से आदमी को ज्ञान प्राप्त होता है। आज के आधुनिक युग में सोश्यल मीडिया, मोबाइल, कम्प्यूटर आदि के माध्यम से घर बैठे, कार में बैठे, बस में बैठे कहीं से भी अच्छी वाणी का श्रवण कर सकते हैं। इन सोश्यल मीडिया का उपयोग भी है तो दुरुपयोग भी हो सकता है। आधुनिक तकनीकी यंत्रों का नशा भी न हो, इसका भी विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। सुनने से आदमी को रास्ता मिल सकता है। प्रवचन श्रवण व बातचीत से ऐसा प्रकाश अथवा पथदर्शन प्राप्त हो जाता है कि आदमी के जीवन का कल्याण हो सकता है। आदमी को अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में मानसिक संतुलन, समता को बनाए रखना ही धर्म की साधना होती है। समस्याओं के आने पर भी आदमी को शांति बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। यह जीवन जीने की कला होती है। आदमी को अपने कत्तर्व्यों के प्रति भी जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए और जितना संभव हो, जीवन को धर्म-ध्यान से युक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज जलगांव प्रवास का दूसरा दिन है। यहां के सभी लोगों में खूब धार्मिक जागरणा बनी रहे।संसारपक्ष में जलगांव से संबद्ध मुनि जितेन्द्रकुमारजी व मुनि नयकुमारजी ने अपने सुगुरु के चरणों में अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। आचार्यश्री ने मुनिद्वय को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ कन्या मण्डल, तेरापंथ किशोर मण्डल, ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाएं, भिक्षु भजन मण्डली व श्री विशाल कुचेरिया, श्रीमती कंचनदेवी व श्रीमती गौरांदेवी छाजेड़ ने पृथक्-पृथक् गीत को प्रस्तुति दी। टी.पी.एफ. के अध्यक्ष श्री संजय चोरड़िया, अणुव्रत मंच के श्री पवन सामसुखा व बालक मोक्ष बरड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आज के कार्यक्रम में आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जलगांव के पुलिस अधीक्षक डॉ. महेश्वर रेड्डी, पूर्व महापौर श्रीमती जयश्री महाजन ने आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।