🌸 दुर्लभ मानव जीवन रूपी पूंजी को धर्म-ध्यान से बढ़ाने का हो प्रयास : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-12 कि.मी. का विहार कर रोहिणखेड़ स्थित नवजीवन विद्यालय में पधारे ज्योतिचरण
-मानव जीवन को धार्मिकता से भावित बनाने को किया अभिप्रेरित
08.06.2024, शनिवार, रोहिणखेड़, बुलढाणा (महाराष्ट्र) : जन-जन के मानस के आतप को हरने के लिए भीषण आतप में भी गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ राजूर से मंगल प्रस्थान किया। इधर कई दिनों से मौसम में हुए बदलाव, तेज हवा के साथ यदा-कदा होने वाली बरसात तथा प्रायः बादलों के आसमान में भ्रमण से सूर्य के आतप में कुछ कमी देखी जा सकती है। इसलिए सुबह का मौसम सुहावना बना हुआ है। प्राकृतिक अनुकूलता और प्रतिकूलता से अप्रभावित आचार्यश्री महाश्रमणजी मानवता के कल्याण के लिए निरंतर गतिमान हैं। शनिवार को प्रातः राजूर से अगला गंतव्य मार्ग भी आरोह से युक्त तथा घुमाव लिए हुए था। मार्ग के दोनों ओर स्थित वृक्षों से आने वाली हवा लोगों को राहत प्रदान कर रही थी। मार्ग में आने वाले गांवों के ग्रामीण राष्ट्रसंत के दर्शन व पावन आशीर्वाद से लाभान्वित बन रहे थे। लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी नलगंगा नदी के तट पर बसे रोहिणखेड़ गांव में कुछ ऊंचाई पर स्थित नवजीवन विद्यालय में पधारे। जहां ग्रामवासियों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। इन क्षेत्रों मंे प्रायः आचार्यश्री की अगवानी में वारकरी संप्रदाय की भजन मण्डली भजन के माध्यम से आचार्यश्री की अभिवंदना करती नजर आ रही है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र में महाराष्ट्र के प्रख्यात संत ज्ञानेश्वर का प्रभाव अधिक है। नवजीवन विद्यालय परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि चौरासी लाख जीव योनियों में मानव जन्म मिलना बहुत ही बड़ी बात होती है। आदमी जीवन किस प्रकार का जीता है, यह महत्त्वपूर्ण बात होती है। हिंसा, चोरी, भोग, नशा, अपराध, हत्या आदि-आदि अधर्म करने वाला मानव अगले जन्म में नरक अथवा तिर्यंच गति को प्राप्त हो जाता है। जो आदमी ज्यादा अधर्म नहीं करता तो धर्म-कर्म में भी उसकी ज्यादा रुचि नहीं होती, वह अगले जन्म में पुनः मनुष्य बन सकता है, किन्तु जिसका जीवन धर्म, ध्यान, साधना, आराधना, सेवा, परोपकार, सत्य, अचौर्य आदि-आदि धार्मिकता से युक्त होता है तो वह स्वर्ग अथवा विशेष साधना के प्रभाव से मोक्ष को भी प्राप्त कर सकता है। यदि ऐसा हो जाए तो यह मानव जीवन के लिए सर्वोत्तम बात हो सकती है। आचार्यश्री ने एक कथानक के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए यह मानव जीवन रूपी पूंजी है। इसे अधर्म में लगाने वाला गंवा देता और नरक अथवा तिर्यंच गति में चला जाता है, सामान्य जीवन जीकर पुनः मनुष्य जीवन प्राप्त कर लेने वाला अपनी मूल पूंजी को बरकरार रखने वाला होता है, किन्तु जो मानव जीवन में धर्म, ध्यान, साधना, योग, सेवा, परोपकार आदि धर्म से युक्त बना लेता है, वह मानव जीवन रूपी पूंजी को वृद्धिंगत कर लेता है तथा वह उसके माध्यम से स्वर्ग अथवा उससे भी ऊंची गति कभी मोक्ष को भी प्राप्त कर सकता है। इसलिए आदमी को अपनी मानव जीवन रूपी पूंजी को धार्मिकता के माध्यम से वृद्धिंगत करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त नवजीवन विद्यालय के चेयरमेन श्री रमेश नाना इंडोले ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी।