🌸 मानव जीवन के कल्याणकारी है ईमानदारी, अहिंसा, संयम व धर्मोपासना : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-11 कि.मी. का विहार कर बुलढाणा नगरी को पावन बनाने पधारे महातपस्वी महाश्रमण
-बुलढाणावासियों ने महासंत का किया भावभीना अभिनंदन
-आचार्यश्री के अभिवादन को पहुंचे एडिशनल जिला कलेक्टर व एसपी सहित अनेक समाज के लोग
06.06.2024, गुरुवार, बुलढाणा (महाराष्ट्र) : गत कई दिनों से बुलढाणा जिले के अनेक गांवों व तहसीलों को पावन बनाते-बनाते अपनी धवल सेना के साथ गुरुवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ केळवद से बुलढाणा जिला मुख्यालय की ओर गतिमान हुए। अपने आराध्य की प्रतीक्षा करने वाले श्रद्धालु उत्साह व उल्लास से सराबोर नजर आ रहे थे। आसमान में छाए बादल और रात्रि में हुई बरसात के कारण मौसम अनुकूल बना हुआ था। आचार्यश्री जैसे-जैसे बुलढाणा के निकट होते जा रहे थे, लोगों का उत्साह और संख्या दोनों ही बढ़ते जा रहे थे। लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री ने जैसे ही बुलढाणा नगर की सीमा में प्रवेश किया, बुलढाणावासियों ने बुलंद जयघोष के आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। स्वागत जुलूस में कीर्तन मण्डली भजन गाते हुए चल रही थी तो अन्य जैन एवं जैनेतर लोग जयघोष करते हुए गतिमान थे। स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री बुलढाणा जिला मुख्यालय पर स्थित शारदा ज्ञानपीठ परिसर में पधारे। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुलढाणा के शारदा ज्ञानपीठ परिसर में बने प्रवचन पण्डाल में उपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी जीवन जीता है, न केवल आदमी संसार का हर प्राणी जीवन जीता है। जीवन जीना एक सामान्य बात है। जीवन को बहुत धार्मिक तरीके से जीना विशेष बात हो जाती है। मनुष्य जीवन को जिसे बहुत महत्त्वपूर्ण और दुर्लभ बताया गया है, जो वर्तमान में हम सभी को उपलब्ध है। इस मानव जीवन में जो उत्कृष्ट साधना की जा सकती है, वह अन्य जन्म में नहीं हो सकता है। जीवन में धर्म की कला का विकास हो तो विशेष बात हो सकती है। शास्त्र में कहा भी गया है कि 72 कलाओं में पंडित बन जाते के बाद भी अपंडित रह जाते हैं, जब तक लोग धर्म की कला को नहीं जानते। जो जीवन जीने की कला नहीं जानते, धर्म की कला को नहीं जानते, वे अपंडित ही रह जाते हैं। जीवन जीने की कला में एक महत्त्वपूर्ण कला है ईमानदारी। लेन-देन, धंधा, व्यापार में ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। ईमानदारी रखनी है तो आदमी को झूठ और चोरी दोनों से विरत रहना होगा। इन दोनों से विरत होने वाला आदमी ईमानदार हो सकता है। झूठ नहीं बोलना और चोरी नहीं करना ईमानदारी के दो आयाम हो जाते हैं। ईमानदारी के मार्ग में पेरशानियां, कठिनाइयां व संघर्ष भी आ सकते हैं, किन्तु अंतिम विजय सच्चाई की ही होती है। सच्चाई व ईमानदारी परेशान हो सकती है, किन्तु पराजित नहीं हो सकती। थोड़ी कठिनाई आए तो आए, किन्तु ईमानदारी के मार्ग पर चलने का उत्साह जाग जाए तो रास्ते में आने वाली कठिनाइयों को भी उत्साह के साथ पार किया जा सकता है। पराए धन को आदमी धूल के समान समझने का प्रयास करना चाहिए। ईमानदारी धर्मयुक्त जीवन का एक सूत्र बन सकता है। दूसरा सूत्र है- अहिंसा। आदमी को यह प्रयास रखना चाहिए कि वह अहिंसा का पालन करना चाहिए। गृहस्थ जीवन में कुछ सामान्य रूपेण हिंसा हो सकती है, किन्तु आदमी को संकल्पपूर्वक हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में जितना संभव हो सके, हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। छोटे-छोटे से प्राणी के प्रति दया और अनुकंपा की भावना के साथ उसे कष्ट देने से बचने का प्रयास करना चाहिए। परहित को धर्म और दूसरे को कष्ट पहुंचाने को अधर्म कहा गया है। इसलिए आदमी को जितना संभव हो सके, जीवन में अहिंसा के पथ पर चलने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा को परम धर्म भी कहा गया है। तीसरा सूत्र संयम को बताया गया। खान-पान में संयम, जुबान पर लगाम हो तो संयम का प्रयास हो। मन, वचन और इन्द्रियों पर संयम हो। यह भी कलापूर्ण जीवन का एक सूत्र है। चौथा सूत्र बताया गया कि धर्मोपासना का। चौबीस घंटे में जितना संभव हो सके, धर्म की साधना में समय लगाने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार ईमानदारी, अहिंसा, संयम व धर्मोपासना जीवन में आ जाए तो जीवन का कल्याण हो सकता है। यहां के लोगों में खूब अच्छी धार्मिक भावना बनी रहे, सबका कल्याण हो। विद्यालय तो ज्ञान के मंदिर होते हैं। विद्यार्थियों में ज्ञान के साथ-साथ अच्छे संस्कारों का भी विकास हो और जीवन नशामुक्त हो, बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने बुलढाणावासियों को उद्बोधित किया। आचार्यश्री के अभिनंदन में शिवानी व खुशी सांखला, संखला परिवार, स्वर साधना मण्डल, स्वर्ण गीत मण्डल ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। एडिशनल कलेक्टर श्री निर्भय जैन, बुलढाणा अर्बन के प्रमुख श्री राधेश्याम चाण्डक, एसपी श्री सुनील कड़ासने, श्री संघ बुलढाणा के श्री राजेश देसरला, श्रीमती निशा सांखला, महाराष्ट्र केमिस्ट ऐसोसिएशन के सचिव श्री अनिल नावदार, डॉ. उमेश सांखला व श्री प्रकाशचंद चोरड़िया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।