*🌸 क्षमा धर्म जीवन में रहे पुष्ट : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸 **
*-प्रचण्ड गर्मी में भी महातपस्वी महाश्रमण का महाश्रम **
*-प्रातः व सान्ध्य दोनों कालों में अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री कर रहे विहार **
-13 कि.मी. का विहार कर महावीर जिनिंग मिल में पधारे तेरापंथ के अधिशास्ता
02.05.2024, गुरुवार, मुरमा, जालना (महाराष्ट्र) :
जन-जन को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का कल्याणकारी संदेश देने वाले, भारत, नेपाल व भूटान में अहिंसा यात्रा के माध्यम से जनकल्याण करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी महाराष्ट्र राज्य की यात्रा के दौरान वर्तमान में छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) की ओर गतिमान हैं। यहां तेरापंथ धर्मसंघ के महनीय अक्षय तृतीया का आयोजन निर्धारित है। भारतीय संस्कृति में अक्षय तृतीया का दिन बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। सनातन संस्कृति में अक्षय तृतीया के दिन जहां भगवान परशुराम के प्रकाट्योत्सव से संबंधित होता है, साथ ही इस तिथि में किए किए समस्त कार्य अक्षय हो जाते हैं, वहीं जैन धर्म में अक्षय तृतीया के दिन भगवान ऋषभ का लम्बी तपस्या के बाद ईक्षु रस से पारणा हुआ था। इस दिन वर्षीतप करने वाले देशभर के व्रती पूज्य सन्निधि में उपस्थित होते हैं। अपने गुरु को ईक्षु रस का दान कर अपना व्रत पूर्ण करते हैं। वर्ष 2024 की अक्षय तृतीया तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता की मंगल सन्निधि में यह आयोजन छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) मंे समायोजित है।
महाराष्ट्र में इस समय गर्मी अपने चरम पर है, किन्तु जन-जन का कल्याण करने वाले आचार्यश्री इस समय कई दिनों से प्रायः सुबह और सायंकाल विहार कर रहे हैं। प्रचण्ड गर्मी के बावजूद भी महातपस्वी आचार्यश्री लगभग पन्द्रह से अधिक किलोमीटर का विहार कर रहे हैं। गुरुवार को प्रातःकाल आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ वाडीगोद्री के श्री गुरुदेव विद्या मंदिर से मंगल प्रस्थान किया। विहार के थोड़ी देर बाद ही गर्मी का तल्ख तेवर दिखाई देने लगा, बावजूद इसके अडोल रूप से आचार्यश्री के पावन चरण अपने गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे थे। लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री मुरमा में स्थित महावीर जिनिंग मिल में पधारे।
प्रचण्ड गर्मी में जहां आमलोग घरों में छिपे रहने को मजबूर हैं, ऐसी प्रखर गर्मी के लम्बा विहार करने के उपरान्त भी मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी मानव के कल्याण के मंगल प्रवचन करते हैं। आज भी आचार्यश्री अल्प समय में ही प्रवचन के लिए पधार गए। उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रबोध प्रदान करते हुए कहा कि दस श्रमण धर्म बताए गए हैं। उसमें सबसे पहला धर्म क्षमा को बताया गया है। क्षमा धारण करने वाला का भला ही होता है, ऐसा विश्वास है। क्षमा की साधना करने वाला का हित निश्चित होता है, ऐसा माना गया है। हमारे यहां तो संवत्सरी का पर्व क्षमा का ही मनाया जाता है। सभी प्राणियों को क्षमा करना और सभी प्राणी क्षमा करें। सभी प्राणियों के प्रति मैत्री की भावना बहुत बड़ी बात होती है। क्षमा की साधना बहुत कल्याणकारी होती है।
जो कभी हमारा बुरा भी करे उसे यदि हम क्षमा कर दें, तो बहुत बड़ी बात होती है। क्रोध मानव की कमजोरी होती है। आदमी को गुस्से से बचने का प्रयास करना चाहिए। क्षमता होने के बाद भी क्षमा करना परम श्रेयस्कर होती है। भगवान महावीर, आचार्य भीखणजी आदि के जीवन में आने वाली कठिनाई, प्रतिकूलता में भी समता, शांति और क्षमा की प्रेरणा ली जा सकती है। क्षमा धर्म आदमी के जीवन में पुष्ट रहे, इसका प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त मिल के मालिक श्री पारस ओस्तवाल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। जालना ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।