🌸 जीवन में ज्ञान का है परम महत्त्व : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-जसाई से सीवुड्स में स्थित एस.एस. हाईस्कूल एण्ड जूनियर कॉलेज में पधारे महातपस्वी महाश्रमण
-जनता ने अपने आराध्य का किया भावभीना अभिनंदन
-तेरापंथ के तीसरे आचार्यश्री रायचंदजी के महाप्रयाण दिवस पर आचार्यश्री ने अर्पित की श्रद्धाप्रणति
09.02.2024, शुक्रवार, सीवुड्स, नवी मुम्बई (महाराष्ट्र) : जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की आचार्य परंपरा के ग्यारहवें पट्टधर, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के संग वर्तमान में नवी मुम्बई के विभिन्न उपनगरों को अपनी चरणरज से पावन बना रहे हैं। नवी मुम्बई के वाशी में तेरापंथ धर्मसंघ के महाकुम्भ 160वें मर्यादा महोत्सव के लिए 11 जनवरी को मंगल प्रवेश से पूर्व शुक्रवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जसाई में स्थित शिव समर्थ स्मारक से मंगल प्रस्थान किया। एक ओर आसमान में गतिमान सूर्य तो दूसरी ओर नवी मुम्बई के विभिन्न मार्गों पर गतिमान अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी दोनों ही अपनी निर्धारित मंजिल की ओर समता भाव से गतिमान थे। दिन चढ़ने के साथ बढ़ता सूर्य का आतप लोगों को परेशान कर रहा था तो दूसरी ओर शांतिदूत की मधुर मुस्कान के साथ करकमलों की आशीषवृष्टि सुख प्रदान कर रही थी। आज आचार्यश्री सीवुड्स की ओर गतिमान थे। स्थानीय जनता आचार्यश्री की अभिवंदना को आतुर नजर आ रही थी। हालांकि यह क्षेत्र नेरुल से काफी सन्निकट है। जहां पूर्व में आचार्यश्री का दो दिवसीय प्रवास हो चुका है। आचार्यश्री ने अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते जैसे ही सीवुड्स की एरिया में पधारे, प्रतीक्षारत श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य का भावभीना अभिनंदन किया। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री सीवुड्स में स्थित एस.एस. हाईस्कूल एण्ड जूनियर कॉलेज के परिसर में पधारे। स्कूल परिसर के पास ही बने प्रवचन पण्डाल में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि मानव के जीवन में ज्ञान का परम महत्त्व है। दुनिया में ज्ञान प्राप्ति के लिए कितने-कितने प्रयास चलते हैं। कितने-कितने विद्यार्थी घरों से दूर विदेशों में भी जाकर ज्ञान अर्जन करते हैं। इसके अलावा भी कितने-कितने विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, आवासीय विद्यालय आदि के माध्यम से लोग ज्ञानार्जन का प्रयास करते हैं। ज्ञान एक पवित्र चीज है। ज्ञान की प्राप्ति में अनेक बाधक तत्त्व भी बताए गए हैं। उनमें पहला अहंकार। ज्ञान के प्रति सम्मान होने के साथ-साथ ज्ञानार्थी में ज्ञानप्रदाता के प्रति भी सम्मान का भाव होना चाहिए। विनम्रतापूर्वक ज्ञानार्जन का प्रयास करना चाहिए। विद्वतजनों के प्रति आदर व सम्मान का भाव होना चाहिए। आदमी को अपने ज्ञान के अहंकार से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। अहंकार के भाव से मुक्त होकर ज्ञान का अच्छा उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान होने पर भी आदमी को मितभाषी बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को मौन रखने का प्रयास करना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर ही बोलने का प्रयास करना चाहिए। शक्ति होने पर भी क्षमा को धारण करना वीरता की निशानी होती है। ज्ञान प्राप्ति में गुस्सा भी एक बाधक तत्त्व है। ज्ञान प्राप्ति के लिए आदमी को गुस्से का परित्याग कर देना चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के दौरान आगे कहा कि आज का दिन तेरापंथ धर्मसंघ के तृतीय आचार्यश्री रायचंदजी के महाप्रयाण की वार्षिक दिवस है। उनका जन्म मेवाड़ के रावलिया में हुआ था। वे प्रथम आचार्यश्री भिक्षु के समय में दीक्षित हुए। उन्हें पहले भिक्षु स्वामी और उसके बाद आचार्यश्री भारमलजी स्वामी का सान्निध्य प्राप्त हुआ। उनको युवावस्था (लगभग तीस वर्ष) में ही आचार्य पद प्राप्त हो गया था। उनका आचार्यकाल भी लगभग तीस वर्षों का रहा। उन्हें श्रीमज्जयाचार्यजी जैसे उत्तराधिकारी प्राप्त हुए। उन्होंने आज के ही दिन अंतिम श्वास ली। हम सभी उन्हें अध्यात्म-साधना की प्रेरणा ले। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने एकबार मेरे जन्मदिवस रावलिया में आया था तो उन्होंने मुझे आचार्यश्री रायचंदजी जैसे बनने का आशीष प्रदान किया था। आज के दिन हम उनका श्रद्धा के साथ स्मरण करते हैं और उनके प्रति प्रणति अर्पित करते हैं। आचार्यश्री ने स्थानीय जनता को भी पावन आशीर्वाद प्रदान किया। कार्यक्रम में स्थानीय स्वागताध्यक्ष श्री आनंद सोनी, एस.एस. हाईस्कूल एण्ड जूनियर कालेज के श्री कमलेश पटेल आदि ने अपनी अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ किशोर मण्डल व ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी संयुक्त प्रस्तुति दी। तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल ने चौबीसी की प्रथम गितिका का संगान किया। तेरापंथ किशोर मण्डल ने अपनी प्रस्तुति दी।