🌸 जीवनशैली के साथ जुड़े ध्यान साधना : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-उरण प्रवास के दूसरे दिन आचार्यश्री ने नवदीक्षित मुनि को प्रदान की छेदोपस्थापनीय चारित्र
-उरणवासियों ने अपने आराध्य के अभ्यर्थना दी भावनाओं को अभिव्यक्ति
07.02.2024, बुधवार, उरण, नवी मुम्बई (महाराष्ट्र) :
तीन ओर से समुद्री जल से गिरे हुए उरण को तारने के लिए द्विदिवसीय प्रवास के लिए पधारे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अणुव्रत यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रवास के दूसरे दिन उरण की जनता को जीवन में ध्यान के संबंध में पावन प्रेरणा प्रदान की। साथ ही आचार्यश्री ने सात दिन पूर्व नवदीक्षित मुनि मुकेशकुमारजी को सामायिक चारित्र से छेदोपस्थापनीय चारित्र (बड़ी दीक्षा) प्रदान किया। इस दौरान उरणवासियों ने अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
उरण प्रवास के दूसरे दिन बुधवार को उरण एजुकेशन सोसायटी के परिसर में बने प्रवचन पण्डाल में उपस्थित जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अध्यात्म जगत की साधना में अनेक प्रयोग निर्दिष्ट किए गए हैं। स्वाध्याय भी साधना का मार्ग है। इससे ज्ञान के अर्जन के साथ-साथ एकाग्रता बढ़ती है, आदमी कर्मों का निर्जरा करता है। उसी प्रकार ध्यान की साधना की सुप्रसिद्ध पद्धति है। ध्यान के द्वारा आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास किया जाता है। दुनिया में योग और ध्यान बहुत प्रसिद्ध हैं। ध्यान की अनेक पद्धतियां पूरी दुनिया में प्रचलित हैं। इन वर्षों में योग का भी बहुत प्रसार हुआ है। दुनिया में योग दिवस का आयोजन किया जाता है। अनेक यौगिक क्रियाएं चिकित्सा के काम भी आती हैं।
जैन दर्शन में बताया गया कि मोक्ष की प्राप्ति के जो भी उपाय हैं, वे सभी योग है। ज्ञान योग, दर्शन योग, चारित्र योग। धर्म के सारे कार्य जो जीव को मोक्ष से जोड़ता है, वे सभी योग कहलाते हैं। एक स्थान पर यह भी कहा गया कि शरीर, वाणी और मन की प्रवृत्ति भी योग है। इस स्थान पर मोक्ष की प्राप्ति के लिए आदमी को अयोग की साधना करनी पड़ेगी।
ध्यान का अध्यात्म की दुनिया में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। सभी जगह ध्यान का प्रयोग कराया जाता है। सभी पद्धतियों के नाम अलग-अलग हो सकते हैं, किन्तु सभी के मूल तत्त्वों में समानता होती है। ध्यान का अच्छा प्रयोग है कि आदमी की भावक्रिया अच्छी हो। जिन्हें ध्यान के लिए अलग से समय नहीं मिलता, वे सोने से पूर्व कुछ क्षण के लिए ध्यान का प्रयोग कर सकते हैं। अपने इष्ट, देव और गुरु के ध्यान का आलम्बन ले सकते हैं। चलते समय नहीं बोलना, ध्यानपूर्वक चलना, इसी प्रकार अपने प्रत्येक दैनिक कार्य के साथ यदि ध्यान को जोड़ दिया जाए तो जीवन अध्यात्ममय बन सकता है। जीवनशैली के साथ ध्यान जुड़े, ऐसा प्रयास करना चाहिए। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ में प्रेक्षाध्यान की साधना बताई जाती है। कायोत्सर्ग, दीर्घ श्वास प्रेक्षा आदि बहुत सुन्दर प्रयोग हैं।
सात दिन पूर्व कोपरखैरणा में मुनि दीक्षा ग्रहण करने वाले नवदीक्षित मुनि मुकेशकुमारजी की आज बड़ी दीक्षा का भी समायोजन हुआ। आचार्यश्री ने उन्हें बड़ी दीक्षा (छेदोपस्थापनीय चारित्र) प्रदान करने से पूर्व बड़ी दीक्षा के महत्त्व को व्याख्यायित करते हुए नवदीक्षित मुनिजी को विस्तारपूर्वक आर्षवाणी का समुच्चारण करते हुए पंच महाव्रतों व रात्रि भोजन परित्याग व्रत प्रदान कर दिया। नवदीक्षित मुनिजी ने आचार्यश्री को सविधि वंदन का पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
दूसरी ओर आचार्यश्री के अभिनंदन में अणुव्रत समिति-मुम्बई के अध्यक्ष श्री रोशनलाल मेहता, उरण व्यापारी के संघ के सेक्रेट्री श्री हस्तिमल मेहता व पूर्व एमएलए श्री मनोहर भोईर ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी मोहक प्रस्तुति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल व तेरापंथ युवक परिषद ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। तेरापंथ किशोर मण्डल व तेरापंथ कन्या मण्डल ने अपनी प्रस्तुति दी। विदेश यात्रा कर गुरु सन्निधि में पहुंची समणी मधुरप्रज्ञाजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।