



संथारा समाचार
- संथारा साधना में श्रद्धा की प्रतिमूर्ति श्रीमती गटुदेवी बोथरा का स्वर्गवास*
4-5-2023 दिल्ली
संयम के शिखर युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा श्रद्धा की प्रतिमूर्ति संबोधन अलंकरण प्राप्त स्व. श्रीमती गटुदेवी श्रद्धानिष्ठ श्रावक स्व. श्री जतनलाल बोथरा ( सरदारशहर निवासी सिलीगुड़ी धुलाबारी प्रवासी) की धर्मपत्नि थी।इस दम्पति ने नेपाल ,बिहार, झारखण्ड व बंगाल में जैन धर्म से जन्म कल्याण के सघन कार्यकिये।तेरापंथी सभाएं, अणव्रुत समितियां, महिला मण्डल, युवक परीषद व ज्ञानशालाओं की स्थापना की।जैन विश्वभारती विश्वविधालय से युवाओं को जोडा।चारित्रआत्माओं की रास्ते की विशेष सेवा की।दोनो की संयमित दिनचर्या में सदैव बारहव्रतों व चौदह नियमों का अहम स्थान रहा।अन्तिम छः महिनो मे सिर्फ पानी दवाई के अलावा पांच द्रव्यों का सेवन, चार वस्त्रों व दोनो बेटों के घरों को छोडकर समस्त संसार को त्याग करके संलेखना चल रहीथी। जीवन के अन्तिम समय मे * तिविहार संथारा साधना में श्रद्धाकी प्रतिमूर्ति गटुदेवी 88 वर्ष की आयु में सिलीगुडी (बंगाल )में 26-4-2023 को अन्तिम सांस ली।नश्वर देह का परित्याग कर* मोक्षमार्ग पर बढगयी, पर जाते जाते अपने नेत्रदान भी कर गई जो आज किसी दो व्यक्तियों को रोशनी दे रहे हैं।
परमश्रद्धेय आचार्यश्री महाश्रमण जी, श्रद्धेय साध्वी प्रमुखा श्रीजी
विश्रुतविभा जी *ने सुरत से परिवार को लिखित संदेशों के माध्यम से संबल प्रदान किया।
मांतुश्री गटू देवीद्वारा प्रदत्त शिक्षाओं को इनके सुपुत्र रवि वसुन्धरा, रमेश जयश्री एवं सुपुत्रियां रमन उदयचन्द , चन्दा व डॉ.कुसुम डॉ.धनपत लुनिया बखुबी आगे बढा रहें हैं।भारत सरकार के विज्ञान व प्रोधोगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान मन्त्रालय की संयुक्त राजभाषा सलाहकार समिति कि सदस्या एवं अणुव्रत विश्व भारती की संगठन मन्त्री सबसे छोटी पुत्री डॉ. कुसुम ने बताया कि मां पिताजी के संस्कारों से ही जीवन का विकास करते हुए उन्होने यह मुकाम पाया है। उन्ही की प्रेरणा से आज परिवार की पांच पीढियां नशामुक्त है और संघ व समाज के विभिन्न पदो पर सेवायें देते हुए आत्म कल्याण व जन कल्याण के कार्यो के माध्यम से समाजसेवा में संलग्न हैं।


