🌸 तीव्र राग-द्वेष व स्नेह हैं भयंकर पाश : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-इन पाश से बचकर आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
-बेंगलुरु से समागत ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी अनेक प्रस्तुतियां
31.12.2023, रविवार, चेम्बूर, मुम्बई (महाराष्ट्र) : तीव्र राग, द्वेष, स्नेह आदि भयंकर पाश हैं, इनको छिन्न करने का प्रयास हो। यह निर्देश देने वाली संतवाणी है। तीव्र राग, तीव्र द्वेष और तीव्र स्नेह ये तीनों भय पैदा करने वाली बन सकती हैं। समता की स्थिति उत्तम होती है। आदमी समता से जितना दूर होता है, अपने घर से दूर हो जाता है। अपने घर में जैसा आश्वासन होता है। एक आदमी किराए के मकान में रहता है और एक आदमी स्वयं के मकान में रहता है। किराए के मकान में उसे स्वतंत्रता, सहूलियत आदि प्राप्त होना कठिन होता है, जिसे वह अपने घर में सहजता से प्राप्त कर लेता है। समता को अपना घर कहा गया है। इसमें रहने से शांति से रह सकते हैं और यदि समता से दूर हो गए अर्थात् अपने घर से दूर हो गए तो उसे शांति की प्राप्ति संभव नहीं हो सकती। सामान्य राग अथवा थोड़ा द्वेष या गुस्सा हो तो ठीक भी है, किन्तु तीव्र राग, द्वेष और स्नेह भयंकर भय प्रदान करने वाले होते हैं। इसी राग-द्वेष के कारण जन्म-मरण का चक्र अनवरत चलता रहता है। सभी गृहस्थों के जीवन में साधुपन आ जाए, ऐसा संभव नहीं हो सकता तो गृहस्थ जीवन में राग-द्वेष और स्नेह के भावों की तीव्रता को कम करने का प्रयास होना चाहिए। जहां तीव्र मोह व राग होता है, वहां दुःख की बात होती है। आदमी को अनासक्त रहने का प्रयास करना चाहिए। आदमी संसार में रहते हुए भी कमल के पत्ते के समान संसार, परिवार और समाज में रहते हुए भी आसक्ति से अलिप्त रहने का प्रयास करे। मानव शरीर रूपी पींजरे में आत्मा रूपी पक्षी होता है। एक दिन शरीर का पिंजरा छूटता है और आत्मा मोक्ष की ओर गति कर जाती है अथवा अन्य जन्म की ओर चली जाती है। गृहस्थ इस जन्म-मरण की परंपरा से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करे, ऐसी कामना करने का प्रयास करना चाहिए। परिवार, समाज और अपने जीवन में आदमी अपने समय का नियोजन इस प्रकार करे कि अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास भी हो सके। एक अवस्था आने के बाद आदमी को धर्म की कमाई की ओर ज्यादा ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ समाज के लोग पचास वर्ष के बाद प्रतिदिन एक सामायिक का प्रयास करें। हो सके तो एक सामायिक से ज्यादा हो तो अच्छी बात हो, लेकिन कम से कम तो होनी ही चाहिए। गृहस्थ जीवन की दिनचर्या धर्म से कैसे भावित रहे, इसका प्रयास होना चाहिए। शनिवार की सामायिक का क्रम चलता है। इस प्रकार अपने गृहस्थ जीवन को धर्म से भावित बनाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के जीवन में कार्य करने के अनेक क्षेत्र हो सकते हैं। अपने कार्य क्षेत्रों में आदमी सेवा करने का प्रयास करना चाहिए। उक्त पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने चेम्बूर प्रवास के चौथे दिन ज्योतिचरण समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान की। मंगल प्रवचन के उपरान्त जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। बेंगलुरु ज्ञानशाला से संबद्ध श्री दीक्षांत ललवाणी व ऋद्धि बोहरा ने अपनी अभिव्यक्ति दी, तदुपरान्त बालक-बालिकाओं ने गीत का संगान किया। कुछ ज्ञानार्थियों ने परिसंवाद भी प्रस्तुत किया। मुम्बई चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री महेश बाफना ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी।