







🌸 दुकानदार हो ईमानदार : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचा व्यापारी वर्गों का समूह, प्राप्त की पावन प्रेरणा
-जीवन में शांति प्राप्ति के आचार्यश्री ने बताए सूत्र
-जनता ने भी दी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति
20.12.2023, बुधवार, कालबादेवी, दक्षिण मुम्बई (महाराष्ट्र) : मानव-मानव को आध्यात्मिक प्रेरणा प्रदान करने जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में दक्षिण मुम्बई के कालबा देवी में पंचदिवसीय प्रवास कर रहे हैं। इस प्रवास के तीसरे दिन यानी मंगलवार को महातपस्वी की मंगल सन्निधि में बाम्बे हॉस्पिटल के डाक्टर्स और अनेकानेक क्षेत्रों के गणमान्य लोगों के मध्य ड्रग्स से मुक्ति के लिए एलिवेट का महनीय कार्यक्रम आयोजित हुआ तो दूसरे तीन मानवता के मसीहा की मंगल सन्निधि में कालबादेवी क्षेत्र के व्यापारिक संगठनों से जुड़े लोग उपस्थित हुए। व्यापारी वर्ग को भी आचार्यश्री ने विशेष जीवनोपयोगी प्रेरणा प्रदान की। जिसका श्रवण करने के उपरान्त जब व्यापारी वर्ग ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया तो उनकी प्रसन्नता उनके मुख पर स्पष्ट दिखाई दे रही थी। बुधवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम का आयोजन पूर्व के दिनों की भांति मां मुम्बादेवी पार्किंग ग्राउण्ड में आयोजित हुआ। आज के कार्यक्रम में कालबादेवी क्षेत्र के व्यापारिक संगठनों के प्रमुखजन व व्यापारी भी उपस्थित थे। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में शांति का बड़ा महत्त्व है। जिसके जीवन में शांति का अभाव हो, उसका जीवन कष्टों से भरा हो सकता है। दो बात बताई गई- एक सुविधा और दूसरी शांति। सुविधा साधनों से प्राप्त होती है और शांति साधना से प्राप्त होती है। भौतिक रूप में प्राप्त साधन, जैसे-घर, कार, मोबाइल, कपड़े आदि से सुविधा हो सकती है, किन्तु शांति की प्राप्ति तो साधना से ही हो सकती है। गुस्सा शांति का सबसे बाधक तत्त्व है। भय व लोभ भी आदमी की शांति में बाधक बनते हैं। इसलिए आदमी को साधना के माध्यम से गुस्से को नियंत्रित, संतोष भाव का विकास और अभय की बात हो तो शांति की प्राप्ति संभव हो सकती है। आचार्यश्री ने व्यापारी वर्ग को विशेष उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि अर्थार्जन का साधन व्यापार होता है। जनता के आवश्यकता के सामनों की पूर्ति व्यापारी द्वारा की जाती है। इससे जनता को सहयोग मिलता है तो जनता से प्राप्त धन से व्यापारी का व्यवसाय चलता है। व्यापार में ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। न्याय, नीति से प्राप्त धन अर्थ और अन्याय, अनीति से प्राप्त धन अर्थाभास होता है। इसलिए व्यापारियों को व्यवसाय में शुद्धता रखने का प्रयास करना चाहिए। व्यापार में ईमानदारी, नैतिकता व प्रमाणिकता हो तो शुद्धता बनी रह सकती है। दुकानदारी में ईमानदारी और दुकानदार ईमानदार हो तो अर्थ में शुद्धता रह सकती है। इस प्रकार यह व्यापार का कार्य भी निर्मल बन सकता है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित एडिशनल कमिश्नर ऑफ पुलिस डॉ. अभिनव देशमुख ने कहा कि परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन कर जीवन धन्य हो गया। आपके सामने बोलने की आवश्यकता तो नहीं है। आचार्यश्री द्वारा प्रदान की गई प्रेरणा केवल व्यापारी वर्ग के लिए ही नहीं, बल्कि हम सभी के जीवन के जरूरी है। इण्डिया बुलियन ज्वेलरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट श्री पृथ्वीराज कोठारी ने कहा कि मैं आचार्यश्री महाश्रमणजी का हार्दिक स्वागत करता हूं। आपका यहां आगमन हम सभी के लिए परम सौभाग्य की बात है। आपके दर्शन लोगों के लिए दुर्लभ होते हैं और हम लोग तो इतने भाग्यशाली हैं कि आपके दर्शन, प्रवचन के उपरान्त आपश्री के समक्ष बोलने का सौभाग्य भी प्राप्त हो गया। लायंस क्लब के पीडीजी श्री प्रदीप कापड़िया ने आचार्यश्री के स्वागत में कहा कि आचार्यश्री महाश्रमणजी के मुम्बई में आगमन से व्यापार से लेकर सेंसेक्स सबसे तेजी ही देखने को मिल रही है। आपका मंगल दर्शन से हम सभी का कल्याण हो रहा है। स्थानीय तेरापंथ कन्या मण्डल व तेरापंथ किशोर मण्डल ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया।






