🌸 मन को बनाएं सुमन : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-कालबादेवी प्रवास का दूसरा दिन : आचार्यश्री ने प्रवृत्ति के साधनों को किया व्याख्यायित
-महाप्रज्ञ पब्लिक स्कूल के बच्चों ने दी आचार्यश्री के स्वागत में भावपूर्ण प्रस्तुति
18.12.2023, सोमवार, कालबादेवी, दक्षिण मुम्बई (महाराष्ट्र) : जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी मुम्बई महानगर की उपनगरीय यात्रा करते दक्षिण मुम्बई में पधारे हैं। वर्तमान में आचार्यश्री कालबा देवी में विराजमान हैं। यह स्थान व्यापारिक दृष्टिकोण से काफी सघन है। इसे स्थानीय लोग मुम्बई का दिल भी कहते हैं। इसी क्षेत्र में मां मुम्बा का प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित है, जिसके नाम पर इस महानगर का नाम मुम्बई हुआ। ऐसे स्थान में आचार्यश्री का पंच दिवसीय प्रवास इस क्षेत्र में रहने वाले श्रद्धालुओं के लिए सारे उत्सव एक साथ लाना वाला है। कालबा देवी मंे स्थित महाप्रज्ञ पब्लिक स्कूल में विराजमान आचार्यश्री के दर्शन, सेवा व उपासना को पूरे दिन भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। हर वर्ग, समुदाय के लोग आचार्यश्री के दर्शन का लाभ उठा रहे हैं। रविवार को रात आठ बजे जब आचार्यश्री के चरणस्पर्श का समय हुआ तो उससे पूर्व ही स्कूल का पूरा विशाल हॉल ही नहीं, आसपास की गलियों में भी लोग पंक्तिबद्ध रूप में खड़े थे। मानों यह व्यापारिक क्षेत्र पूरी तरह से आध्यात्मिक क्षेत्र बना हुआ है। सोमवार को मुम्बा देवी पार्किंग कम्पाउण्ड के महाप्रज्ञ महाश्रमण समवसरण में उपस्थित जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि जीवन में आत्मा के साथ-साथ तीन चीजों का भी संयोग है। शरीर, वाणी और मन। आत्मा मूल तत्त्व है, दूसरा तत्त्व शरीर। इसके साथ जुड़ी हुई चीजें हैं वाणी और मन। शरीर से आदमी कोई भी कार्य करता है। शरीर प्रवृत्ति का साधन है। मन से आदमी विचार व चिंतन करता है। मन की शक्ति सभी प्राणियों को प्राप्त भी नहीं होती है। वाणी से अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है। मनुष्य अपने मन का कैसे अच्छा उपयोग कर सके, इसका प्रयास करना चाहिए। मन में अति चंचलता, मन में मलीनता हो तो वह आदमी का नुक्सान कराने वाला होता है। मन में बुरे विचार भी आ सकते हैं और भले विचार भी आ सकते हैं। आदमी को अपने मन को स्थिर, दुर्गुणों से दूर, बुरे विचारों से दूर रखने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए योग, ध्यान और साधना का अभ्यास करने का प्रयास करना चाहिए। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने प्रेक्षाध्यान की बताई थी। प्रेक्षाध्यान के द्वारा आदमी अपने शरीर को स्थिर करे तो मन की चंचलता भी कम हो सकती है। नियमित अभ्यास के द्वारा मन को स्थिर करने का प्रयास किया जा सकता है। मन में बुरे विचार न आएं, इसके लिए आदमी को आध्यात्मिक-धार्मिक कार्यों में समय का नियोजन करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को अपने मन को सुमन बनाने का प्रयास करना चाहिए। विद्यार्थियों का मन भी एकाग्र हो, पढ़ाई में मन रमे, ज्ञान का विकास हो, इसके साथ सद्विचार भी आएं तो उनका जीवन भी अच्छा बन सकता है। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुनि जयेशकुमारजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। आचार्य महाप्रज्ञ विद्यानिधि फाउण्डेशन के अध्यक्ष श्री किशनलाल डागलिया, महाप्रज्ञ पब्लिक स्कूल के चेयरमेन श्री एस.के. जैन, डायरेक्टर श्रीमती वनिता मनसुखानी, दक्षिण मुम्बई के तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री नितेश धाकड़ व विद्यार्थी महक जैन ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ समाज ने गीत का संगान किया। महाप्रज्ञ पब्लिक स्कूल के बच्चों ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी विभिन्न प्रस्तुतियां दीं।