🌸 इहलोक और परलोक को सुखी बनाने के लिए करें धर्म की साधना : महातपस्वी महाश्रमण 🌸
-सांताक्रूज का चार दिवसीय प्रवास सुसम्पन्न कर बान्द्रा वेस्ट में पधारे शांतिदूत
-महातपस्वी के दर्शन को पहुंचे फिल्म निर्माता सुभाष घई व पूर्व क्रिकेटर सुनील गावस्कर
12.12.2023, मंगलवार, बान्द्रा (पश्चिम), मुम्बई (महाराष्ट्र) : मायानगरी को आध्यात्मिकता से भावित बनाने के लिए गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी मंगलवार को सांताक्रूज का चार दिवसीय प्रवास सुसम्पन्न कर अगले गंतव्य की ओर गतिमान हुए। सांताक्रूजवासी अपने आराध्य के चरणों में अपने कृतज्ञ भावों को व्यक्त कर रहे थे। आचार्यश्री वहां से गतिमान हुए तो मार्ग में आने वाले श्रद्धालुओं के मकान, दुकान, प्रतिष्ठान, कार्यालय इत्यादि भी पड़े तो श्रद्धालुओं ने अपने-अपने स्थान के पास अपने आराध्य के मंगलपाठ का श्रवण कर पावन आशीर्वाद भी प्राप्त किया। जन-जन पर आशीष बरसाते हुए आचार्यश्री भव्य स्वागत जुलूस के साथ बान्द्रा वेस्ट के पाली हिल्स में स्थित चोरड़िया परिवार के निवास स्थान में पधारे। अपने आंगन में अपने आराध्य को पाकर चोरड़िया परिवार अभिभूत नजर आ रहा था। चोरड़िया परिवार के सदस्यों ने अपने आराध्य का भावभीना अभिनंदन किया। निकट ही स्थित ऑक्सलियम कान्वेंट हाईस्कूल के प्रांगण में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि कोई प्रश्न कर सकता है कि धर्म क्यों करना चाहिए? इसके उत्तर में बताया गया कि जीवन में दो तत्त्व हैं- आत्मा और शरीर। शरीर अस्थाई तथा आत्मा शाश्वत है। आत्मा और शरीर का योग ही जीवन है। आत्मा की सुख-शांति के लिए तथा इहलोक के साथ-साथ परलोक में होने वाले पुनर्जन्म को भी सुखमय बनाने के लिए धर्म-अध्यात्म की साधना की जाती है। सुख भी दो प्रकार के बताए गए हैं-भौतिक सुख और आध्यात्मिक सुख। भौतिक सुख पदार्थ जनित होते हैं, जो क्षण मात्र के लिए होते हैं, किन्तु आध्यात्मिक सुख भीतर से प्रस्फुरित होने वाला वह सुख है, जो स्थायी होता है। आत्मिक सुख की प्राप्ति के लिए धर्म-अध्यात्म की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा, संयम और तप धर्म हैं। जीवन में अहिंसा का पालन हो। सभी जीवों के प्रति मैत्री का भाव पुष्ट हो। शरीर, वाणी और मन का संयम हो। शुभ योग में रहना भी तप होता है। शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म को जीवन उतारने का प्रयास हो तो आदमी इहलोक के साथ-साथ अपने परलोक को भी सुधार सकता है और सुख-शांति की प्राप्ति कर सकता है। सभी साधु-साध्वियां न बनें, लेकिन सद्गृहस्थ तो जरूर बनने का प्रयास करें। जीवन में भौतिकता इतनी भी हावी न हो जाए कि मानव धर्म से दूर हो जाए। इसलिए आदमी को अपने जीवन में धर्म की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने बान्द्रा के इस क्षेत्र में 20 वर्ष पूर्व पधारे परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के संस्मरणों को भी वर्णित किया। कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता को मंगल प्रतिबोध प्रदान किया। महाराष्ट्र के पर्यटन, कौशल विकास व उद्यमिता मंत्री श्री मंगल प्रभात लोढ़ा की धर्मपत्नी श्रीमती मंजू लोढ़ा ने भी आचार्यश्री के दर्शन कर अपनी भावनाओं को व्यक्त किया और पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। चोरड़िया परिवार की ओर से श्रीमती मोहनीदेवी चोरड़िया व श्री विजयसिंह चोरड़िया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। श्री मफतराज मुणोत ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मंगल प्रवचन के उपरान्त आज फिल्म निर्माता श्री सुभाष घई आचार्यश्री के दर्शनार्थ पुनः पधारे। कुछ समय उपरान्त पूर्व भारतीय क्रिकेटर श्री सुनील गावस्कर भी आचार्यश्री की पावन सन्निधि में उपस्थित हुए। उन्होंने आचार्यश्री को वंदन किया तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।
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