



🌸 इंद्रियों का हो संयमपूर्वक प्रयोग – आचार्य महाश्रमण🌸
- अणुव्रत अनुशास्ता ने दी कषायों के अल्पीकरण की प्रेरणा
18.10.2023, बुधवार, घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र)
जाति, वर्ण, समुदाय से ऊपर उठकर सामाजिक समुत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर देने वाले संत शिरोमणि युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के उपदेशों से जन समुदाय एक नई दिशा को प्राप्त कर रहा है। सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति इन तीन आयामों के साथ आचार्य श्री महाश्रमण अणुव्रत यात्रा द्वारा स्वस्थ समाज, उन्नत राष्ट्र बनाने का महनीय कार्य कर रहे है। आचार्य श्री का मुंबई चातुर्मास एक ऐतिहासिक चातुर्मास के रूप में ख्याति प्राप्त करता जा रहा है। बुधवार को प्रातः मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री नवरात्रि का विशेष अनुष्ठान कराने के पश्चात जैन आगम भगवती पर उद्बोधन प्रदान किया।
मंगल प्रवचन में आचार्य श्री ने कहा – दो प्रकार के यमनीय होते है – इन्द्रिय यमनीय व नो इन्द्रिय यमनीय। हमारे पांच इन्द्रियां है श्रोत, चक्षु, घ्राण, रस व स्पर्श। इन इन्द्रियों पर काबू पाना व इन्हें नियंत्रित करना इन्द्रिय यमनीय की श्रेणी में आता है। इन इन्द्रिय से अलग चार प्रकार के कषाय है जैसे क्रोध, मान, माया व लोभ। इनको नियंत्रित करना व इन पर संयम करना नो इन्द्रिय के यमनीय की कोटि में आता है। हमारी इन्द्रियां सक्षम हो तब उनको संयमित करना ही संयम है। यदि इन्द्रियां अक्षम हो तो संयम अपने आप ही हो जाता है, उस संयम का उतना मूल्य नहीं होता।
आचार्यप्रवर ने कथानक के माध्यम से आगे कहा कि यदि फिल्मी गाने कानों को अच्छे व प्रिय लगते हों तो आगम स्वाध्याय की जगह उन्हें सुनना कानों का असंयम है। व्यक्ति कानों सदुपयोग करे। अच्छी बाते सुने, शास्त्र वाणी सुने। खाने में भी संयम रहे कि अनावश्यक या अभक्ष्य का सेवन नहीं करे। संक्षेप में कहें तो इन्द्रियों का संयम इन्द्रिय यमनीय व कषायों पर नियंत्रण नो इन्द्रिय यमनीय है। व्यक्ति जीवन में इन्द्रिय यमनीय व नो इन्द्रिय यमनीय दोनों को साथ लेकर चले। साधुओं के तो पूर्ण संयम होता ही है, गृहस्थ भी जितना संभव हो इसके लिए जागरूक रहें। हमारी इंद्रिया बाह्य जगत और चेतना के जुड़ाव का माध्यम होती है। इंद्रियों के उपयोग में विवेक रखे, संयम रखे यह आवश्यक है।






