


प्रवचन बड़ौत 16/9/2023
सज्जन – दुर्जन की पहचान : जीवनवृत्ति- आचार्य विशुद्ध सागर
दिगम्बराचार्य गुरूवर भी विशुद्धसागर जी ने ऋषभ सभागार मे धर्मसभा में कहा कि चील मत बनो, चकोर बनो। चील उतंग आकाश में उड़ता है, पर भूमि पर पड़े मृत पशु को देखता है, दुर्गंधित मांस के टुकड़े को निहारता है और चकोर भूमि पर बैठा-बैठा उतंग आकाश में उदित चंद्र को निहारता है। सज्जन सुगति को प्राप्त करता है और दुर्जन दुर्गति में गिरता है।
ऐसे ही सज्जन पुरुष गुणग्राही होते हैं, वह महा-पुरुषों में गुण ही खोजते हैं, गुणों को प्राप्त करते हैं, सद्- विचार करते हैं, शुद्ध आचरण करते हैं, परन्तु दुष्ट प्रकृति के दुर्जन नीच पुरुच सज्जनों की भी बुराई और निन्दा करते हैं। जैसे एक सुअर मन ही पसंद करता है, वैसे दुर्जन पुरुष बुराईयाँ टी देखता है। दोष दृष्टि दुर्जन का चिह्न है। दुर्जनों की दुर्गुण ही पसंद आते हैं। दुर्जनों को दुष्टता ही पसंद आती है। दुर्जन को क्रूरता, हिंसा, कलह, चुगलखोरी, निंदा ही पसंद आती है। जैसो करोगे वैसा ही फल मिलेगा। मत चुभाओं किसी को कांटे, नहीं तो कष्ट भोगना पड़ेगा।
सज्जन हमेशा गुणों पर ही दृष्टि रखता है। सज्जन मानव सार-सार ग्रहण करता है, निस्सार को छोड़ देता है। सज्जन-साधु जन स्व-पर हितकारी, “स्वजन हिताय पर जन सुखाय ही कार्य करते हैं। परोपकारी करना सज्जनों की प्रथम पहचान है।
भोजन, भाषणा एवं भेष से सज्जन एवं दुर्जन की पहचान हो जाती है। शाकाक्षर, सात्विक, शुद्ध, प्रासुक, आप्पाहार सज्जनता का प्रतीक है। दुर्जन का भोजन भी विकृत, भाषा भी विकृत, भेष भी विकृत, भाव भी क्रूर ही होते हैं। दुर्जनों ‘ का मरण भी बुरा ही होता है। सज्जन हर पल, हर क्षण आनंद पूर्वक ही व्यतीत करता है।सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे प्रवीण जैन,सुनील जैन, विनोद एडवोकेट, धन कुमार जैन, धनेंद्र जैन,दिनेश जैन, वीरेंदर पिन्टी, राजेश जैन,विवेक जैन, प्रवीण जैन आदि उपस्थित थे।
वरदान जैन मीडिया प्रभारी
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