सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात),सम्पूर्ण भारत में इस दौरान नवरात्रि में शक्ति की आराधना के नवमें दिन बुधवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में नवरात्रि के संदर्भ में आयोजित आध्यात्मिक अनुष्ठान भी आज के जप के साथ सुसम्पन्नता की आचार्यश्री ने घोषणा की। दूसरी ओर आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का प्रारम्भ हुआ। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को मंगल प्रेरणा प्रदान की। इसके साथ बेंगलुरु से समागत ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने भी अपनी प्रस्तुति के द्वारा अपने आराध्य के श्रीचरणों की अभिवंदना कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।बुधवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ को सर्वप्रथम युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आध्यात्मिक अनुष्ठान के अंतर्गत मंत्र जप का प्रयोग कराया। तदुपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में कहा गया है कि आदमी आराम को जाने और आराम को जानकर आत्मलीन और आत्मजयी रहे। सामान्य भाषा में विश्राम करने के लिए आदमी आराम शब्द का प्रयोग करता है। यहां आराम शब्द का अर्थ है, आत्मरमण के रूप में किया गया है। तप, नियम, संयम और वैराग्य आदि में भी अच्छी तरह से रमण करने वाला होता है। इसका सारांश यह निकलता है कि आदमी को आत्मा में रमण करने वाला होना चाहिए। हालांकि जीव का, मानव का पदार्थों में भी रमण होता है, लेकिन आदमी का रुझान आत्मा में मरण करने का होना चाहिए। इन्द्रियजयी होने व आत्मालीन होने वाला ही आत्मा में रमण कर सकता है। पांच प्रकार की इन्द्रियों के पांच विषय हैं और पांच ही व्यापार भी होते हैं। आदमी को अपनी इन्द्रियों को कैसे वश में किया जाए, इसका प्रयास करना चाहिए। पांचों इन्द्रियों के विषयों पर विशेष आसक्ति से बचने का प्रयास करना चाहिए। मनोज्ञ में राग और अमनोज्ञ में द्वेष की भावना आती है तो उससे कर्मों का बंधन होती है। जैसा भी सामने आ जाए, उसकी निंदा और प्रशंसा नहीं करना चाहिए, उससे बचने का प्रयास करना चाहिए। जिस वस्तु को खाने में ज्यादा रुचि हो, उसे छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। जो आदमी आत्मालीन होता है, वह इन विषयों से दूर रह सकता है।रसनेन्द्रिय की भांति ही श्रवण शक्ति पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए। जिन चीजों को सुनने से लाभ मिले, कोई भजन, वीतरागता से संदर्भित आदि जो हो, उसे सुनने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार श्रुति संयम हो सकता है। इसी प्रकार आदमी को चक्षुरेन्द्रिय का भी संयम करने का प्रयास करना चाहिए। आंखों से क्या देखना, अथवा अन्य किसी विषय को देखने का भला क्या लाभ। आंखों से गुरु का दर्शन हो, ईर्या समिति में देख-देखकर चलना अच्छा प्रयोग है। आंखों से ग्रंथों को पढ़ने का प्रयास हो। घ्राणेन्द्रिय का संयम रखने का प्रयास होना चाहिए। साधु को तो ईत्र क्या आवश्यकता। कहीं सुगंध हो अथवा दुर्गंध, नहीं ही राग में जाएं और न ही द्वेष का भाव न हो। इसी प्रकार स्पर्श के प्रति समता का भाव होना चाहिए। इस प्रकार आत्मा में रमण करना ही आराम है, इसे जानकर इन्द्रियों पर विजय पाने का प्रयास होना चाहिए।आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज से अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का प्रारम्भ हुआ। इसका प्रथम दिन अणुव्रत प्रेरणा दिवस एवं अणुव्रत गीत महासंगान के रूप में आयोजित हुआ। इस संदर्भ में अणुव्रत समिति-अहमदाबाद की अध्यक्ष श्रीमती डिम्पलजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अणुव्रत समिति-अहमदाबाद के सदस्यों ने अणुव्रत गीत का संगान भी किया। इस संदर्भ में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि आज से अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह प्रारम्भ हुआ है। एक अक्टूबर से सात अक्टूबर का समय अणुव्रत के लिए मानों आरक्षित किया हुआ है। आचार्यश्री तुलसी के समय अणुव्रत को व्यापकता प्राप्त हुई। यह आन्दोलन 75 वर्ष पूर्ण कर आगे बढ़ रहा है। इन सात दिनों मंे अणुव्रत का खूब अच्छा प्रसार करने का प्रयास हो। श्री पारसमल भंसाली, श्री विनोद छाजेड़, श्री माणकचंद संचेती व दीपक कातरेला ने अपनी अभिव्यक्ति दी। बेंगलुरु ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। बेंगलुरु ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने गीत को प्रस्तुति दी। बेंगलुरु ज्ञानशाला के कुछ ज्ञानार्थियों ने ‘भिक्षुअष्टकम्’ को प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।