सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
Key Line Times
कोबा, गांधीनगर (गुजरात) ,जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में वर्ष 2025 का चतुर्मास सुसम्पन्न कर रहे हैं। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में प्रतिदिन नवीन आयोजनों के साथ-साथ आध्यात्मिकता भी मानों ठाट लगा हुआ है। नवरात्रि के दौरान भी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आध्यात्मिक अनुष्ठान का प्रयोग चल रहा है, जिसमें प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं और अपने जीवन को आध्यात्मिकता से भावित बना रहे हैं। इसके साथ ही गत वर्ष से प्रारम्भ हुए प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के सम्पन्नता समारोह का भी उपक्रम रहा।मंगलवार को भी प्रातःकाल ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ को अनेक आध्यात्मिक मंत्रों के जप का प्रयोग कराया। तदुपरान्त प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष सम्पन्नता समारोह के संदर्भ मंे मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने प्रेक्षा गीत का संगान किया।प्रेक्षा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने इस अवसर समुपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि ‘आयारो’ आगम में बताया गया है कि अच्छी तरह प्रतिलेखन करके सत्य का ही अनुशीलन करो। प्रश्न हो सकता है कि सत्य का साक्षात्कार कैसे हो सकता है? आदमी को स्वयं सत्य को खोजने का प्रयास होना चाहिए। सच्चाई के साक्षात्कार के लिए प्रेक्षाध्यान एक माध्यम बन सकता है। जहां ग्रंथ, और पंथ की आवश्यकता नहीं, जहां ध्यान होता है, वहां शब्द की आवश्यकता नहीं होती। ध्यान के लिए शरीर की चंचलता को कम करने का प्रयास होना चाहिए। मन की चंचलता को कम करना है तो तन की चंचलता को पहले ही कम करने का प्रयास करना चाहिए। शरीर की चंचलता कम हो जाए और शरीर स्थिर हो जाए तो ध्यान की बहुत अच्छी पृष्ठभूमि मानों तैयार हो सकती है। दूसरी बात होती है कि आदमी को मौन की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। शरीर की स्थिरता के साथ मौन भी जाए तो ध्यान की साधना अच्छी हो सकती है।प्रेक्षाध्यान से अध्यात्म की साधना से प्रेम रखने वाले लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान व जीवन विज्ञान हमारे गुरुओं द्वारा मानव समाज को दी गई अमूल्य निधि है, जिससे सम्पूर्ण मानव समाज लाभान्वित हो सकता है। इनमें आज प्रेक्षाध्यान विदेशों में फैल रहा है। भारतीय वहां जाते हैं और अनेक विदेशी यहां भी आते हैं। प्रेक्षाध्यान के माध्यम से आत्मशुद्धि का प्रयास करना चाहिए। आगे योगक्षेम वर्ष है तो प्रेक्षाध्यान के विकास पर कोई चिंतन, गोष्ठी व मंथन आदि हो सकते हैं। हालांकि प्रेक्षाध्यान से संदर्भित कार्यक्रम का जिम्मा मैंने साध्वीप्रमुखाजी को दे रखा है। ध्यान आदमी को एकाग्रता की स्थिति में ले जाने वाला होता है। शरीर में जो स्थान मस्तक का है, उसी तरह जीवन में ध्यान का महत्त्व होता है। प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष को प्रारम्भ हुए 50 वर्ष हो गए हैं। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के कितने ग्रंथ उपलब्ध हैं। साधु समाज में प्रेक्षाध्यान का जिम्मा कुमारश्रमणजी हैं। आदमी को अपने व्यक्तिगत जीवन के साथ प्रतिदिन के लिए ध्यान को जोड़ देने का प्रयास करना चाहिए।आचार्यश्री ने प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष की सम्पन्नता के संदर्भ मंे कहा कि आज इसकी सम्पन्नता का दिन आ गया है। आचार्यश्री तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञजी द्वारा जो कार्य प्रारम्भ हुआ है, उसके यथायोग्य विकास व संरक्षण का प्रयास करें। आचार्यश्री की मंगलवाणी के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने इस अवसर पर उपस्थित जनता को प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के संदर्भ में उद्बोधित किया। तदुपरान्त साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने अपना उद्बोधन प्रदान किया। इस संदर्भ में प्रेक्षा फाउण्डेशन, जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अमरचंद लुंकड़, प्रेक्षा इण्टरनेशनल के अध्यक्ष श्री अरविंद संचेती, प्रेक्षा विश्व भारती के अध्यक्ष श्री भैरुलाल चौपड़ा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री के मंगल आशीष के साथ प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष सुसम्पन्न हुआ। आज के इस कार्यक्रम का संचालन प्रेक्षाध्यान के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमारश्रमणजी ने किया।