🌸 *अर्थार्जन में निष्ठुर, निर्दय कार्य से बचने का हो प्रयास : महातपस्वी महाश्रमण
Surendra munot, Associate editor all india {west bengal}
कोबा, गांधीनगर (गुजरात) ,कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती वर्तमान समय में आध्यात्मिक नगरी बनी हुई है। अहमदाबाद, गांधीनगर जैसे आधुनिक शहरों से निकटता होने के बाद भी यह स्थान धर्ममय बना हुआ है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में उमड़ने वाले श्रद्धालु अपने जीवन को आध्यात्मिकता से भावित बना रहे हैं।सोमवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी सुख पाने के लिए प्रयत्न करता है। मुझे समृद्धि मिले, मुझे सुख-सुविधा के साधन मिले, खूब पैसा मिले, अच्छा पद मिल जाए- इन आकांक्षाओं के साथ आदमी प्रयत्न करता है। कई बार आदमी अच्छा-बुरा का भान किए बिना ही कुछ निष्ठुर कार्य भी कर लेता है, किन्तु आदमी को साध्य और साधन पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन में पैसा प्राप्त करना भी एक साध्य हो सकता है, किन्तु उसके लिए साधन कैसा होना चाहिए, इस पर भी ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए।एक आदमी अर्थार्जन के लिए निष्ठुर हिंसा, बेईमानी को अपना साधना बना ले और धनार्जन भी प्राप्त कर ले तो उसमें साधन गलत भी हो सकता है। इसके कारण वह आदमी को तो प्रयास सुख प्राप्ति का कर रहा था, किन्तु उसे कभी उसे दुःख भी प्राप्त हो सकता है। दो प्रकार के साध्य बताए गए हैं- पहला आध्यात्मिक साध्य और दूसरा सांसारिक अथवा लौकिक साध्य। आध्यात्मिक साध्य की दृष्टि से मोक्ष की प्राप्ति परम साध्य है।गृहस्थ जीवन का साध्य धन आदि हो सकता है। गृहस्थ को अपने साध्य के लिए साधन की शुद्धता ध्यान रखना चाहिए। साधन अहिंसा से युक्त हो, नैतिकता से परिपूर्ण हो। ईमानदारीपूर्ण अर्थार्जन का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, अहिंसा, ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन के साध्य को पाने के लिए जो भी व्यापार, बिजनेस और साधन आदि है, उसमें निर्मलता रह सकती है। आदमी को संयम भी रखने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा, संयम और ईमानदारी से युक्त साधन के माध्यम से प्रयास करे तो उसका जीवन भी निर्मल बन सकता है। इसलिए शास्त्रकार ने कहा कि सांसारिक साध्य को पाने के लिए आदमी को निष्ठुर कर्म नहीं करना चाहिए।गृहस्थ जीवन में जितना धर्म हो जाए, वह मानों बहुत बड़ी संपत्ति होती है। चतुर्मास में मानों धर्म का कितना माहौल है। कितने-कितने लोग तपस्या कर रहे हैं। आदमी अपने जीवन में जितना धर्म कर ले, वह उसके जीवन की आध्यात्मिक पूंजी होती है। वह वर्तमान जीवन में ही नहीं, आगे के जीवन में भी काम आ सकेगी। अहिंसा, संयम, व्रत, जप, तप आदि कर ले तो वह मानों धर्म की पूंजी एकत्रित कर लेता है। एक सामायिक भी करे तो उसके पास मानों धर्म की पूंजी एकत्रित हो सकती है। त्याग, प्रत्याख्यान के द्वारा भी धर्म की कमाई की जा सकती है। इस प्रकार अनेक रूपों में धर्म की पूंजी एकत्रित की जा सकती है। अपने जीवन में लिए हुए त्याग न टूटे तो और अच्छी बात हो सकती है। अपने लिए हुए नियमों को पालन करने का प्रयास करना चाहिए और कभी दोष लग जाए तो उसका प्रायश्चित भी करना चाहिए।इसलिए शास्त्रकार ने कहा कि निर्दय और निष्ठुर कार्य करने वालों को दुःखी की प्राप्ति होती है। इसलिए आदमी को निष्ठुर और निर्दय कार्य करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने ‘तेरापंथ प्रबोध’ आख्यान से जनता को लाभान्वित किया। श्री राजू बैद ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मुनि मदनकुमारजी ने तपस्या के संदर्भ में जानकारी दी।