🌸 *ज्ञान और आचार के योग से जीवन परिपूर्ण : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर आल इंडिया ( पश्चिम बंगाल)
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात), जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2025 का चतुर्मास अहमदाबाद के कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में कर रहे हैं। प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपने अराध्य की मंगलवाणी का श्रवण कर अपने जीवन को उन्नत बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यह चतुर्मास अहमदाबाद के तेरापंथी नौनिहालों के लिए मानौं कोई विशेष आध्यात्मिक सौगात लेकर आया हुआ है। प्रत्येक रविवार को ज्ञानशाला के बच्चों की विराट उपस्थिति होती है। बच्चे अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देकर अपनी भक्तिभावों को प्रगट करते हैं तो शांतिदूत आचार्यश्री भी बच्चों को अपने मंगल आशीष व कल्याणीवाणी से आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान करते हैं। आज भी रविवार था तो अहमदाबाद व आसपास क्षेत्रों से सैंकड़ों की संख्या में ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों की विशेष उपस्थिति थी। इतना ही नहीं आज के रविवार के साथ ‘ज्ञानशाला दिवस’ का अवसर भी जुड़ा हुआ था तो ज्ञानार्थियों की विशेष उपस्थिति जन-जन के मानस को आह्लादित करने वाली थी।वीर भिक्षु समवसरण में मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान सर्वप्रथम साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने जनता को उद्बोधित किया। तदुपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित नौनिहालों व विशाल जनमेदिनी को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि प्राणी का जीवन अशाश्वत होता है। जैनिज्म में दो प्रकार के जीव बताए गए हैं- एक सिद्ध और दूसरा प्रकार है संसारी। जो आत्माएं कर्म मुक्त हो गई हैं और मोक्षावस्था को प्राप्त हो गई हैं, वे मुक्त जीव हैं, सिद्ध जीव हैं। वे जीव कभी वापस जन्म-मरण की प्रक्रिया में नहीं आते। उनके शरीर, वाणी और मन नहीं होता। सिद्ध जीव को शरीर नहीं होता।संसार में जन्म-मरण करने वाले शरीरधारी प्राणी संसारी जीव होते हैं। उनका जन्म और मरण भी होता है। शास्त्र में ऐसे संसारी प्राणियों का जीवन कुश के अग्र भाग पर टिके और हवा से प्रकंपित गिरे हुए जलकण की तरह होते हैं। संसारी प्राणियों का जीवन शाश्वत नहीं हो सकता, अशाश्वत होता है। मृत्यु होना तो निश्चित है, किन्तु कब होना, यह अनिश्चित होता है। जन्म-मृत्यु का जोड़ा है। जन्म अकेला नहीं होता, जन्म अपने साथ मृत्यु को लेकर ही आता है। आयुष्य पूरा होता है तो बालावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और फिर वृद्धावस्था भी आती है। किसी-किसी को परिपूर्ण आयुष्य भी नहीं हो पाता।इस अशाश्वत जीवन में बालावस्था कुछ अर्जन करने का समय होता है। इसमें विद्या का अर्जन किया जाता है। पच्चीस वर्ष तक जीवन की पहली अवस्था मानी जाए तो इसमें बच्चों को ज्ञानार्जन के लिए विद्यालयों, महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों आदि में विद्यार्जन करता है। इस उम्र में ज्ञान और विद्या का अच्छा अर्जन किया जा सकता है। बच्चों को विभिन्न विषयों का ज्ञान भी दिया जाता है। ज्ञान का बहुत बड़ा यज्ञ विद्या संस्थानों द्वारा चलाया जाता है। विभिन्न विषयों का ज्ञान रखने वाला विद्यार्थी बहुत विशेष होता है, जिसे बहुश्रुत भी कहा जाता है। वह विद्यार्थी ज्ञान सम्पन्न हो सकता है। जीवन में ज्ञान का विकास होना, एक हिस्सा है। ज्ञान के साथ आचार भी अच्छा हो तो परिपूर्णता की बात हो सकती है। विद्या और आचार- दोनों के होने से मुक्ति की प्राप्ति संभव है। ज्ञान और अच्छे आचरण अर्थात् शिक्षा और संस्कार दोनों होते हैं तो विद्यार्थी का जीवन बहुत अच्छा हो सकता है। सभी अपने साथ पूर्वजन्मों से कुछ न कुछ लेकर आते हैं, क्योंकि कोई-कोई बच्चा बहुत संस्कारी, शील, विनय के गुण से संपन्न होता है तो कोई बच्छा कुसंस्कारी और उद्दण्ड भी होता है। वर्तमान समय में भी बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार देने का भी प्रयास करना चाहिए। इससे बच्चों के जीवन में परिपूर्णता की बात आ सकती है। आदमी को बालपीढ़ी, युवा पीढ़ी पर सद् पुरुषार्थ करना चाहिए। बच्चे संस्कारी बनते हैं तो बच्चों का आगे का जीवन भी बहुत अच्छा रह सकता है। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों की संख्या भी बढ़े, इसका प्रयास हो। ज्ञानशाला का कार्यक्रम अच्छा फलदायक प्रतीत हो रहा है। ज्ञानशाला में पढ़े हुए कितने बालक-बालिकाएं हमारे धर्मसंघ में साधु-साध्वियां भी बन गए हैं। यह उपक्रम प्रवर्धमान रहे, ऐसा प्रयास करना चाहिए। ज्ञानशाला का कार्य करने वाले उत्साह के साथ अपनी धार्मिक-आध्यात्मिक सेवाएं देते रहें और क्रम अच्छे ढंग से आगे बढ़ता रहे।महासभा के ज्ञानशाला प्रकोष्ठ द्वारा ‘ज्ञानशाला: एक प्रारूप’ के नवीन संस्करण को पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित किया गया। ज्ञानशाला के राष्ट्रीय प्रभारी श्री सोहनराज चौपड़ा व श्री विमल घीया ने अपनी अभिव्यक्ति दी।अहमदाबाद व आसपास क्षेत्र के ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों को पुनः मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए बच्चों को प्रतिदिन 21 बार नमस्कार महामंत्र का जप करना संकल्प भी स्वीकार कराया। श्री कुलदीप नौलखा ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम के उपरान्त आचार्यश्री स्व. जबरमल दूगड़ व डॉ. जतनमल बैद परिवार को आध्यात्मिक संबल प्रदान किया।