




🌸 पाप कार्यों से बचे पुनर्जन्म की सोचे – आचार्य महाश्रमण🌸
- पुज्यवर ने किया चार गतियों का वर्णन
- जय तुलसी विद्या पुरस्कार समारोह
02.11.2023, गुरुवार, घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र)
युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण एक ऐसे संत शिरोमणि जिनके उपदेशों, प्रवचनों, प्रेरणाओं से व्यक्ति न केवल सम्यक मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित होता है अपितु अपने जीवन में बदलाव लाकर अपने आचरण को संवारता है। आचार्य श्री का मुंबई चातुर्मास अब संपन्नता में एक माह भी अवशेष नहीं है, ऐसे में अब भी गुरुदेव से आशीर्वाद पाने हेतु निरंतर देश–विदेश से लोगों का आवागमन नंदनवन में जारी है। अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षा ध्यान शिविर में जहां प्रतिदिन विदेशी संभागियों को ध्यान कराया जा रहा है। वहीं प्रशिक्षक साधु–साध्वियों द्वारा विभिन्न कक्षाएं एवं ध्यान–योग से जुड़े प्रशिक्षण उन्हें दिए जा रहे है।
कार्यक्रम में जैन विश्व भारती लाडनूं द्वारा आज ‘जय तुलसी विद्या पुरस्कार’ समारोह आयोजित किया गया। जिसके तहत चौथमल कन्हैयालाल सेठिया चेरिटेबल ट्रस्ट, सूरत द्वारा प्रायोजित यह पुरस्कार सन् 2022 हेतु श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी बाल विहार, चुरू को प्रदान किया गया। जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अमरचंद लुंकड़ आदि पदाधिकारियों ने गुरुदेव के समक्ष यह पुरस्कार प्रदान किया।
मंगल प्रवचन में आचार्य श्री ने कहा– जैन धर्म में पुनर्जन्म का सिद्धांत मजबूती से स्वीकृत है, पूर्वजन्म व वर्तमान जीवन भी। आत्मा और शरीर का योग होना जीवन व वियोग होना मृत्यु है। यह आत्मा का कुछ समय के लिए होने वाला संयोग व वियोग है। मोक्ष प्राप्ति के बाद कोई भी शरीर साथ नहीं रहता व सदा सदा के लिए शरीर का आयान्तिक वियोग हो जाता है। प्रश्न किया गया कि मनुष्य कहाँ से व किस जन्म से आता है। उत्तर में बताया गया मनुष्य नरक, तीर्यंच, देव और मनुष्य चारों ही गतियों से आकर जन्म ले सकता है। देवता मरकर न देव व न नरक गति में जा सकते हैं, बस मनुष्य या तीर्यंच गति में ही जाते है।
गुरुदेव ने आगे बताया कि भगवती व पन्नवणा सूत्र में तत्व ज्ञान का भंडार है। पूर्वजन्म में जो हो गया हो गया वह अतीत व्यतीत बन गया, पर पूर्व जन्म के संस्कारों का कुछ प्रभाव वर्तमान जीवन में संभव है। हमें ज्यादा ध्यान आगे के जन्म पर देना चाहिए कि आगे दुर्गति में न जाना पड़े व पुनर्जन्म नरक या तीर्यंच योनि में न हो। इस जीवन में धन, परिवार, नाम, ख्याति, स्वास्थ्य व सुखी परिवार पिछले जन्म के पुन्य से मिलता है, पर आगे मैं क्या कर रहा हूँ ? यह चिंतन होना चाहिए। पिछली पुण्याई तो खर्च होती जा रही है। व्यक्ति इस यथार्थ को, सत्य को समझ कर जीवन में पाप कार्यों से बचे और अपने इस भव और अगले भव को सुधारने का कार्य करे यह काम्य है।
तत्पश्चात जैविभा के मंत्री श्री सलिल लोढ़ा ने पुरस्कार की घोषणा की, ट्रस्ट की ओर से विजयसिंह सेठिया, बाल विहार की ओर से श्री अशोक पारख ने अपने विचार रखे।




