द्विदिवसीय ज्ञानशाला रिफ्रेशर कार्यशाला सम्पन्न
विकास का मूल सूत्र है – मुनिश्री जिनेश कुमार जी
साउथ कोलकाता
आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमारजी के सान्निध्य में तथा तेरापंथ सभा के तत्वावधान में द्विदिवसीय ज्ञानशाला प्रशिक्षिका रिफ्रेसर कार्यशाला का समापन तेरापंथ भवन में हुआ। इस अवसर पर मुनिश्री जिनेश कुमारजी ने प्रवचन में कहा कि व्यक्तित्व विकास के अनेक घटक है उनमें एक महत्त्वपूर्ण घटक अनुशासन है। अनुशासन जीवन का आधार है। विकास का मूल सूत्र अनुशासन है। अनुशासन से व्यक्ति आत्मानुशासन को प्राप्त होता है। आत्मानुशासन विकास के लिए संयम की आवश्यकता रहती है। शरीर संयम, मनसंयम, वाणी संयम इन्द्रियसंयम श्वास संयम जरुरी होता है। इंन्द्रिय विजय की साधना सर्वोत्तम होती है। ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं के लिए अनुशासन जरुती है। प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन जरुरी है। अनुशासन से व्यक्ति का प्रभाव निराला होता है। आचार्य श्री भिक्षु का संघ अनुशासित संघ है। गुरु की आज्ञा मे रहना, गुरु इंगित की आराधना जरूरी है। मुनिश्री ने हाजरी का वाचन किया। मुनि श्री परमानंदजी ने कहा प्रशिक्षिकाओं को धैर्य रखना जरूरी होता है। धैर्य से व्यक्ति सफलता को प्राप्त होता है। कार्यक्रम का शुभारंभ ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं के मंगल गीत से हुआ। संचालन मुनिश्री परमानंद जी ने किया। समापन समारोह में मुनिश्री जिनेश कुमार ने कहा, दो दिन की कार्यशाल बहुत महत्वपूर्ण रही। प्रशिक्षिकाएं समय का दान देकर संघ की सेवा कर रही है नौनिहाल पीढ़ी को संस्कारी बना रहे हैं। व्यवस्थापको व कार्यकर्ताओं ने अपने कर्तव्य का निवर्हन किया शिविर में ज्ञानशाला राष्ट्रीय संयोजक सोहन लाल चौपड़ा व राष्ट्रीय प्राध्यापक डालमचंद नवलखा ने सम्यक् रूप से प्रशिक्षण दिया। शिविर में प्रशिक्षिकाओं ने अपने अनुभव बताएं। दक्षिण बंगाल ज्ञानशाला संयोजिका डॉ. प्रेमलता चौरड़िया ने संचालन किया व उसका तेरापंथ सभा द्वारा सम्मान भी किया गया।