पर्व पर्युषण
है उपकार प्रभु का
मिला ये जीनशासन
आये है ये दिन पावन
आतम को जगाने वाले
क्षमा हीं तो आतम का श्रींगार है
आया पर्व पर्युषण है
महावीर के वचनों से हम आतम को निखारेंगे
क्षमा धर्म आराधन से हम जीवन को सजायेंगे
इस काल में जो धर्म करेगा भव भव तर जायेगा
तेरे पथ पर चलकर वीर पाऊ मै भी मुक्ती महल
क्षमा हीं तो आतम ……
अपने जो बैठे है क्रोध की शमा दिल मे दबाये
मान देकर उनको मनाये जो बातो से रुठे है
सृष्टि के सब जीवो से करते क्षमायाचना है हम
तभी तो सार्थक होगा ये क्षमा धर्म आराधन
क्षमा हीं तो आतम………
तर्ज – ये बन्धन तो प्यार का बन्धन है
स्वरचित – नंदिनी जैन गोलछा
वारासिवनी जि.बालाघाट मध्यप्रदेश