जीवन में प्रामाणिकता का विकास करे मुनिश्री जिनेश कुमार जी
साउथ कोलकाता
आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमार जी ने तेरापंथ भवन में सभा को संबोधित करते हुए कहा कि पांच अणुव्रतों में तीसरा अणुव्रत अचौर्य व्रत है, अचौर्य व्रत का अर्थ है चोरी नहीं करना। साधु के लिए अचौर्य व्रत अनिवार्य है। श्रावक स्थूल चोरी का त्याग करता है। दूसरे का स्वत्व का हरण करना, दूसरों की वस्तु पर अपना अधिकार जमाना उसे हड़प लेना बिना दिए हुआ लेना यह है अदत्तादान अर्थात् चोरों। चोरी का प्रत्याख्यान करना नैतिकता आचार का सूत्र है। मुनिश्री ने आगे कहा चोर द्वारा चुराई हुई वस्तु लेना चोर को चोरी करने में सहयोग करना, राज्य निषिद्ध वस्तुओं का आयात-नियति करना, असली वस्तु के स्थान पर नकली वस्तु देना, खाद्य पेय आदि पदार्थों में मिलावट करना श्रावक के लिए वर्जनीय है। अणुव्रत का भी एक नियम है मै वस्तुओं में मिलावट नहीं करूंगा मिलावट करना बहुत बड़ा पाप है।अपने सुख के खातिर दूसरों के सुखों का हनन करना बहुत बड़ा अपराध है। जो व्यक्ति चोरी करता है झूठा तोल माप करता है वह बड़ी संपदा से वंचित होता और दुर्गति में जाता है। जीवन में प्रामाणिकता का विकास करें। धोखा धड़ी व बेईमानी से बचे। मुनिश्री कुणाल कुमारजी ने गीत का संगान किया।