अहिंसा से चित्त की प्रसन्नता बढ़ती है मुनिश्री जिनेश कुमार जी
साउथ कोलकाता
आचार्य श्री महाश्रमण के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमार जी ने तेरापंथ भवन में सभा को संबोधित करते हुए कहा कि दुनियां में आलोक का बहुत
बड़ा मूल्य है। आलोक बिना जीवन अंधकार मय है। अंधकार व्यक्ति को पतन की ओर ले जाता है। अंधकार में अनेक पाप होते हैं। जो दुर्गति की ओर ले जाते हैं। प्रकाश सदगती की ओर ले जाता है। यहाँ अंधकार और प्रकाश से तात्पर्य है कुमार्ग व सुमार्ग । हिंसा कुमार्ग है अहिंसा सुमार्ग है। अहिंसा प्रकाश है, हिंसा अंधकार है। अहिंसा अमरत्व है, विराग है, हिंसा मृत्यु है, राग है प्रमाद है जबकि अहिंसा जागरुक अप्रमत्त है। व्यक्ति अहिंसा का विकास करें। साधु के लिए अहिंसा पालनीय है जब कि श्रावक स्थूल हिंसा का त्याग करे और अहिंसा की जितनी पालना कर सके उतनी करनी चाहिए। मुनिश्री ने आगे कहा भगवान महावीर ने दो प्रकार का धर्म बताया है- आगार धर्म व अणगार धर्म श्रावक धर्म व साधु का धर्म। अहिंसा चित्त की प्रसन्नता है, तेजो वृद्धि है, समाधि है, मानासिक पवित्रता है। पांच अणुव्रतों में प्रथम अणुव्रत अहिंसा है। अहिंसा जल है बाकी के व्रत पानी की सुरक्षा के लिए पाल के समान है व्यक्ति हिंसा से बचे दूसरों के साथ दुर्व्यवहार न करे। मन में करुणा का भाव रखे। क्रूरता में शोषण है। करुणा में पोषण है। मुनिश्री परमानंदजी ने विचार रखे व मुनि कुणाल कुमारजी ने गीत का संगान किया।