सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर ,Key Line Times
-भगवती सूत्र में वर्णित दस प्रकार की वेदनाओं को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित
-मुम्बई ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने गुरुमुख से स्वीकार की मंत्र दीक्षा
-पावन पाथेय, महाप्राणध्वनि का प्रयोग के साथ सुगुरु से बच्चों ने प्राप्त किया पावन आशीर्वाद
-ट्रान्सफार्म कार्यक्रम के तहत आचार्यश्री ने अच्छी दिशा में विचारों को ट्रान्सफार्म करने की दी प्रेरणा
09.07.2023, रविवार, मीरा रोड (ईस्ट), मुम्बई (महाराष्ट्र) : वर्षों की पुण्याई के अर्जन से प्राप्त अपने आराध्य के चतुर्मासकाल का लाभ उठाने को मानों सम्पूर्ण मुम्बई की जनता लालायित नजर आ रही है। तभी तो अन्य दिनों के साथ ही रविवार को तो जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में पहुंचने वाले दर्शनार्थियों में होड़-सी मच जा रही है। क्या बच्चे, किशोर व युवा, प्रौढ़ और वयोवृद्ध लोग भी अपने सुगुरु के दर्शन की आस लिए नन्दनवन पहुंच रहे हैं। यहां पहुंचकर लोग आचार्यश्री व साधु-साध्वियों के दर्शन सहित आचार्यश्री के कल्याकारी मंगलवाणी से भी लाभान्वित हो रहे हैं। रविवार को नन्दनवन परिसर में बना भव्य और विशाल प्रवचन पण्डाल आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंचासीन होने से पूर्व ही जनाकीर्ण बन गया था। इस विशाल परिषद में हजार से अधिक की संख्या में तो मुम्बई के सभी ज्ञानशालाओं के ज्ञानार्थी, ज्ञानशाला के प्रशिक्षक व प्रशिक्षिकाएं उपस्थित थे, क्योंकि आज मंत्र दीक्षा का कार्यक्रम भी समायोजित था तो दूसरी ओर मुम्बई के प्रतिष्ठित लोगों की उपस्थिति भी थी। वे लोग भी चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के द्वारा आयोजित ट्रन्सफार्म कार्यक्रम में आचार्यश्री से प्रेरणा प्राप्त करने की उत्सुकता से आए थे। निर्धारित समयानुसार मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी भव्य एवं विशाल तीर्थंकर समवसरण में पधारे तो पूरा वातावरण जयघोष से गुंजायमान हो उठा। परमाराध्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित विशाल जनमेदिनी को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि चार गतियां बताई गई हैं। नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव - इन चार गतियों में संसारी जीव परिभ्रमण करता रहता है। अनंत जीव तो ऐसे भी हैं जो अनादिकाल से वनस्पति योनी में ही स्थित हैं। सिद्ध जीव जन्म-मरण की परंपरा से मुक्त होकर परमात्मा बन गए हैं। मनुष्य अपने कर्मों के आधार पर कभी नरक, तिर्यंच, मनुष्य अथवा देव गति में जा सकता है। भगवती सूत्र में स्वर्ग और नरक की चर्चा करते हुए बताया गया कि नारकीय गति के जीव दस प्रकार की वेदना अनुभूत करते हैं। उनमें सुख संवेदन तो कदाचित् कभी-कभी होता है। दस वेदनाएं इस प्रकार हैं- सर्दी, गर्मी, धूप, प्यास, खुजली, परवशता, ज्वर, दाह, भय और शोक। ज्यादा सर्दी हो तो कठिनाई की बात होती है। अत्यधिक गर्मी लगे तो कठिनाई की बात होती है। मनुष्य भी अपने जीवन में अनेक प्रकार के कष्ट भोगते हैं। कभी सर्दी की कठिनाई तो कभी गर्मी, कभी प्यास आदि की कठिनाई आती है। गृहस्थ जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाइयां आती हैं। कभी आर्थिक तंगी हो जाती है, कर्ज बढ़ जाता है तो आदमी तनाव में चला जाता है और मानसिक रूप से परेशान हो जाता है। ऐसे में आदमी को मानसिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। चित्त शांत रहेगा तो कोई रास्ता भी प्राप्त हो सकता है। जो कार्य अपने वश में न हो, उसके लिए परेशान नहीं होना चाहिए। अपने मन को अनेक रूपों में समझाने का प्रयास हो। कोई समस्या हो भी जाए तो उसे समता भाव से सहन करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री तुलसी को श्वास की तकलीफ हो गई थी। उन्होंने मानों उससे मित्रता-सी कर ली। समस्या भी रही, उनका कार्य भी चलता रहा। श्वास की समस्या के बाद भी उन्होंने कितनी यात्राएं की। वेदना को शांति से सहन करने का प्रयास हो तो कर्म निर्जरा भी हो सकती है। आध्यात्मिक चिंतन और भगवती सूत्र जैसे आगम से प्रेरणा लेकर परेशानी और कठिनाइयों में समता रखने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने हजार से अधिक की संख्या में उपस्थित मुम्बई व आसपास की ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों को मंत्र दीक्षा प्रदान की। अपने सुगुरु के मुख से मंत्र दीक्षा प्राप्त कर ज्ञानार्थी हर्षविभोर थे। आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों को विविध प्रेरणाएं भी प्रदान करते हुए महाप्रयाण ध्वनि का प्रयोग कराया। ज्ञानार्थियों ने आचार्यश्री को विधि अनुसार वंदन किया। ज्ञानशाला-मुम्बई की आंचलिक संयोजिका श्रीमती अनिता परमार ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखाजी ने विद्यार्थियों को अपने जीवन में बेस्ट बनने को अभिप्रेरित किया। साध्वीवर्याजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा ट्रान्सफार्म कार्यक्रम का समायोजन हुआ। इस संदर्भ में चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मदनालाल तातेड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस कार्यक्रम के संयोजक डॉ. सौरभ जैन, व डॉ. दिलीप सरावगी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को अपनी प्रवृत्ति को असत् से सत् की ओर, हिंसा से अहिंसा की ओर तथा अच्छे चिंतन की ओर ट्रान्सफार्म करने की प्रेरणा प्रदान की। ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं व ज्ञानार्थियों ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी विविध प्रस्तुतियां देते हुए आचार्यश्री के समक्ष संकल्पों का उपहार भेंट किया। मुनि मोहजितकुमारजी ने आचार्यश्री ने नौ की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।