“यौवन लाई वर्षा रानी”
उमड़ -घुमड़ कर बदरा बरसे
जन-जन के चेहरे है हरसे
प्रकृति का कण -कण है सरसे
पीत -हरित लगे मनभानी
यौवन लाई वर्षा रानी।
तपती धरती राहत पाई
टूटे पत्तों पर कोंपल छाई
तकते नयनों की प्यास बुझाई
झमाझम बरसा, बदरा पानी
यौवन लाई , वर्षा रानी।
खिल गई धरती, पंछी गाते
महकी बगिया, तरु लहराते
नव यौवन, संगान सुनाते
धरणी ओढ़ी चुनर, सतरंगी धानी
यौवन लाई, वर्षा रानी।
जगा है मन में नव उल्लास
हर प्राणों में, नव मधुमास
सुखद अनुभूति, बसंत आभास
उदासीन चेहरों पर, छाई मस्तानी
यौवन लाई, वर्षा रानी।
कनक पारख
विशाखापट्टनम